48 साल पूरे हो चुके हैं देश में इमरजेंसी लगे, जानिए क्या क्या हुआ ?

26 जून 1975 की सुबह। ऑल इंडिया रेडियो पर जो सबसे पहली आवाज आई वो देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की थी। उनके शब्द थे, ‘राष्ट्रपति ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी है। इसमें घबराने की कोई बात नहीं है।’
देश में इमरजेंसी लगे 48 साल पूरे हो चुके हैं। इंदिरा गांधी ने एक इंटरव्यू में कहा था- जब मैंने इमरजेंसी लगाई, एक कुत्ता भी नहीं भौंका।इमरजेंसी की पटकथा लिखी गई थी 12 जून 1975 को। इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इस दिन इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को रद्द कर दिया था।
साथ ही 6 साल के लिए किसी भी संवैधानिक पद के लिए अयोग्य घोषित कर दिया। इंदिरा के खिलाफ राय बरेली से चुनाव लड़ने वाले राज नारायण ने यह याचिका दायर की थी। आरोप लगाया था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया है।
24 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। जस्टिस कृष्णा अय्यर ने कहा कि जब तक कोर्ट में मामला चलेगा तब तक इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री पद पर बनी रह सकती हैं। लेकिन उन्हें संसद में किसी भी चर्चा और बिल पर वोट करने का अधिकार नहीं होगा।
कैथरीन फ्रैंक इंदिरा गांधी की जीवनी में लिखती हैं कि यह फैसला ना ही इंदिरा गांधी को रास आया ना ही उनके समर्थकों को। ये कुछ ऐसा था कि वो पद पर तो रहती, लेकिन उस पद की शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकती थीं।

इसी के अगले दिन यानी 25 जून को जयप्रकाश नारायण ने नई दिल्ली के रामलीला मैदान में सरकार के खिलाफ बड़ी रैली बुलाई थी। तब देश में महंगाई और भ्रष्ट्राचार के मुद्दे पर लोगों में गुस्सा पनप रहा था। जयप्रकाश पूरे देश में घूम-घूमकर सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।
25 जून की सुबह इंदिरा गांधी ने बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे को फोन किया। उस समय सिद्धार्थ शंकर दिल्ली में ही बंग भवन में रुके हुए थे। उन्होंने फोन उठाया तो दूसरी तरफ इंदिरा गांधी के सेक्रेटरी आर के धवन थे।
उन्होंने रे को बताया कि प्रधानमंत्री ने उन्हें 1 सफदरजंग रोड अपने आवास पर तुरंत बुलाया है। वो 1 सफदरजंग रोड पहुंचे। उन्होंने देखा इंदिरा गांधी स्टडी रूम में बैठी हुई थीं। कमरे में एक टेबल था जिस पर ढेर सारी फाइलें फैली हुई थीं। वो बैठे और दोनों करीब 2 घंटे तक देश की हालात पर बातें करते रहे।
प्रणब मुखर्जी अपनी किताब ‘द ड्रमैटिक डेकेड’ में जिक्र करते हैं कि रे ने शाह कमीशन के सामने अपने बयान में बाद में बताया कि जब वह पहुंचे तो इंदिरा ने उनसे कहा कि उन्हें कई रिपोर्ट्स मिली हैं। इनमें कहा गया है कि देश बड़ी मुसीबत में फंसने वाला है। सब तरफ अव्यवस्था फैली हुई है।
बिहार और गुजरात की विधानसभाएं भंग की जा चुकी हैं। विपक्ष सिर्फ आंदोलन पर उतारू है। इस तरह तो विपक्ष की मांगों का कोई अंत नहीं है। देश में कानून का राज नहीं रह गया है। इस समय कोई कड़ा कदम उठाने की सख्त जरूरत है।
इंदिरा गांधी ने उसी शाम जयप्रकाश नारायण की रामलीला मैदान में होने वाली सभा को लेकर भी एक इंटेलिजेंस रिपोर्ट दिखाई। रिपोर्ट में कहा गया था कि जयप्रकाश नारायण की योजना पूरे देश में विरोध प्रदर्शन का आह्वान कर एक सामानांतर प्रशासन चलाने की है। कोर्ट से लेकर पुलिस और सेना से लेकर सरकार की बात न मानने को कहेंगे।
इमरजेंसी की जांच के लिए बनी शाह कमीशन के सामने सिद्धार्थ शंकर रे ने यह खुलासा किया कि इंदिरा गांधी उनसे पहले भी दो-तीन मौकों पर कह चुकी थी कि भारत को ‘शॉक ट्रीटमेंट’ की जरूरत है। ठीक उसी तरह जब एक बच्चा पैदा होता है और उसमें कोई हरकत नहीं होती, तब उसमें जान लाने के लिए शॉक दिया जाता है। इंदिरा का कहना था कि देश में एक बड़ी शक्ति का उभरना जरूरी है।
सवाल उठता है कि इंदिरा गांधी ने इस बात की चर्चा के लिए बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे को क्यों बुलाया। दरअसल, रे संवैधानिक मामलों के जानकार माने जाते थे। दूसरी वजह वो इंदिरा गांधी के करीबी लोगों में से एक थे। 1969 में जब कांग्रेस टूटी थी तब से सिद्धार्थ बाबू इंदिरा फ्रैक्शन के साथ वफादार रहे।
इंदिरा गांधी इस मामले में रे पर कितना भरोसा करती थी, इसका अंजादा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उन्होंने अब तक अपने कानून मंत्री एस आर गोखले से कोई चर्चा नहीं की थी।
इंदिरा ने 2 घंटे चली बातचीत में कहा कि अमेरिकी प्रेसिडेंट रिचर्ड निक्सन की हेट लिस्ट में मैं सबसे ऊपर हूं। मुझे डर है कि CIA की मदद से मेरी सरकार ना गिरा दी जाए। ठीक वैसे ही जैसे अमेरिका ने चिली में जनरल ऑगस्टो पिनोचेट का तख्तापलट किया।

कैथरीन फ्रैंक अपनी किताब ‘इंदिरा: द लाइफ ऑफ इंदिरा नेहरू’ गांधी में बताती हैं कि इंदिरा गांधी 1974 से ही जयप्रकाश नारायण पर यह आरोप लगाती रही थी कि उनके पीछे अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA का हाथ है। वह उनको फाइनेंस भी कर रहे हैं।
दरअसल इंदिरा गांधी का अमेरिका को लेकर यह डर बेवजह ही नहीं था। नवंबर 1971 इंदिरा गांधी अमेरिका के दौरे पर गई थीं। 1971 में भारत-पाक युद्ध से एक महीने पहले उनकी यात्रा का मकसद था कि अमेरिका पाकिस्तान में हथियार ना भेजे। पर निक्सन ने ऐसा करने से मना कर दिया।
साल 2022 में ‘डॉक्यूमेंट्स ऑन साउथ एशिया, 1969-1972’ सामने आया। यह 5 नवंबर की सुबह 8:15 से 9:00 बचे सुबह के बीच प्रेसिडेंट, NSA और ह्वाइट हाउस के चीफ ऑफ स्टाफ के बीच बातचीत है।

इस तारीख पर इंदिरा गांधी अमेरिकी दौरे पर थीं। निक्सन कहते हैं, ‘दिस इज द पॉइंट शी (इंदिरा गांधी) इज ए बिच।’ इस पर NAS किसिंजर कहते हैं, ‘वेल द इंडियन्स आर बास्टर्ड एनीवे। दे स्टार्टेड द वॉर एनीवे।’ इंदिरा गांधी को यह बात पता थी कि रिचर्ड निक्सन उनसे नफरत करते हैं
इंदिरा गांधी की सारी बातें सुनने के बाद सिद्धार्थ बाबू ने कहा कि उन्हें सोचने के लिए थोड़ा समय चाहिए। ताकि वो कोई समाधान सोच सकें। उन्होंने शाम 5 बचे तक का वक्त मांगा।
कमरे पर आकर सिद्धार्थ बाबू ने भारतीय संविधान के साथ अमेरिकी संविधान को उलटा-पलटा। दोपहर 12 बचे तक वो इसी काम में लगे रहे। शाम 3:30 बजे फिर 1 सफदरजंग रोड पहुंचे।
रे वापस पहुंचे और इंदिरा गांधी को तसल्ली से समझाने बैठे। रे ने कहा कि भारतीय संविधान की धारा 352 बाह्य और आंतरिक अव्यवस्था के समय इमरजेंसी लगाने की छूट देता है। रे ने साफ किया बाह्या और आतंरिक अव्यवस्था कैसे अलग है।
उदाहरण के लिए 1971 में भारत-पाक युद्ध के समय लगाए गए इमरजेंसी के बारे में इंदिरा को समझाया। बताया कि कैसे युद्ध एक देश के लिए बाह्य खतरा है। और जो देश के अंदर परिस्थियां हैं उसके लिए आंतरिक इमरजेंसी लगाना होगा।
यह सुनकर इंदिरा गांधी ने कहा कि ऐसा करने से पहले वो इस मामले को मंत्रिमंडल के सामने नहीं लाना चाहती। सिद्धार्थ रे ने कहा कि इसके लिए उन्हें राष्ट्रपति से कहना होगा कि मंत्रिमंडल को बुलाने के लिए उनके पास पर्याप्त समय नहीं था।
इंदिरा गांधी ने सिद्धार्थ बाबू से कहा कि उन्हें तुरंत प्रेसिडेंट के पास जाना होगा। इंदिरा की इस बात का रे ने विरोध करते हुए कहा कि वो एक मुख्यमंत्री हैं, देश के प्रधानमंत्री नहीं। हालांकि, रे इंदिरा के साथ राष्ट्रपति भवन जाने के लिए राजी हो गए।
शाम 5:30 बजे इंदिरा गांधी और सिद्धार्थ शंकर रे राष्ट्रपति आवास पहुंचे। तब देश के राष्ट्रपति थे फखरुद्दीन अली अहमद। इंदिरा गांधी और सिद्धार्थ बाबू ने राष्ट्रपति को सारी बात बताई।
राष्ट्रपति ने कहा कि आप मुझे इमरजेंसी के दस्तावेज पहुंचाइए। इंदिरा गांधी और सिद्धार्थ शंकर रे वहां से वापस 1 सफदरजंग रोड पहुंचे। सिद्धार्थ बाबू ने आते ही तुरत-फुरत में इंदिरा गांधी के सचिव पी एन धर को ब्रीफ किया।

धर ने अपने टाइपिस्ट को बुलाया और इमरजेंसी की घोषणा के दस्तावेज तैयार कराए। धर खुद ही ये दस्तावेज लेकर राष्ट्रपति भवन पहुंचे। अब तक रात हो चुकी थी। इधर इंदिरा गांधी ने निर्देश दिया कि यह बात मंत्रिमंडल को सुबह 5 बजे बताया जाए।
1 सफदरजंग रोड पर सिद्धार्थ शंकर रे इंदिरा गांधी को उनके सुबह दिए जाने वाले भाषण को लिखने में मदद कराने लगे। एक दूसरे कमरे में आर के धवन, संजय गांधी और ओम मेहता जो संसदीय राज्य मंत्री थे। वो सुबह गिरफ्तार किए जाने वाले विपक्षी नेताओं की लिस्ट बना रहे थे।

वहां इस बात की भी योजना बनाई जा रही थी कि कैसे सुबह अखबारों और कोर्ट की बिजली काट दी जाएगी। इंदिरा गांधी जब तक अपने भाषण को पूरा कर पाई, रात के 3 बच चुके थे। सिद्धार्थ शंकर रे अब तक वहीं थे। भाषण पूरा होने के बाद उन्होंने इंदिरा से विदा ली।

वो बाहर निकल रहे थे ओम मेहता से टकरा गए। ओम मेहता ने उन्हें बताया कि अगले दिन दिल्ली अखबारों की बिजली काटने और देश भर की अदालतों को बंद रखने का बंदोबस्त कर लिया गया है। रे ये सुनकर चौंके और विरोध करते हुए कहा कि ऐसा करना बेतुका है।

हमारी तो इस बारे में कोई बात भी नहीं हुई है। संविधान के आपातकाल को इस तरह से लागू नहीं कर सकते। रे वापस आर के धवन के पास पहुंचे और कहा कि वो इंदिरा गांधी से मिलना चाहते हैं।

धवन ने कहा कि वो तो सोने जा चुकी हैं। पर रे ने जोर देते हुए कहा कि मेरा उनसे मिलना जरूरी है। धवन जब तक इंदिरा को बुलाने गए ओम मेहता ने रे को बाताय कि अखबारों की बिजली काटने और कोर्ट को बंद करने का विचार संजय गांधी ने दिया था।

इधर थोड़ी झिझक के साथ धवन इंदिरा गांधी के पास गए और उन्हें बाहर लेकर आए। इंदिरा की आंखें लाल थी, जाहिर था वो रो रहीं थीं। रे ने इंदिरा गांधी को प्रेस की बिजली काटने की बात बताई।

इस पर इंदिरा ने कहा कि किसी अखबार की बिजली नहीं काटी जाएगी नहा कोई कोर्ट बंद होगा। इंदिरा गांधी के मुंह से इतना सुनने के बाद ही रे वहां से निकले। जो कि बाद में झूठ साबित हुआ।

दिल्ली के अखबारों की बिजली सप्लाई काट दी गई। 26 जून की सुबह बस हिंदुस्तान टाइम्स और स्टेट्समैन अखबार ही निकल पाए। किस्मत से उनके प्रेस में बिजली कनेक्शन दिल्ली म्युनिसिपालिटी की जगह नई दिल्ली से था।
सुबह के 6 बजे थे। 1 अकबर रोड पर इंदिरा गांधी के ऑफिस में 8 कैबिनेट मंत्री, 5 राज्य मंत्री मौजूद थे। बाकि 9 कैबिनेट मंत्री तब दिल्ली में नहीं थे। एक राउंड टेबल पर सभी नाम के अल्फाबेटिकल ऑर्डर में बैठे थे।
उन सबको इमरजेंसी के घोषणा की एक-एक कॉपी और विपक्ष के उन नेताओं की लिस्ट दी गई जो गिरफ्तार हुए थे। इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा की और ऐसा करने की वजहें बताई। वहां मौजूद सभी के लिए ये किसी सदमे की तरह था।
इससे पहले किसी को इस बात की कानो-कान खबर नहीं थी। वहां के माहौल में घुले तनाव को कोई भी महसूस कर सकता था। चूकि ये मीटिंग सिर्फ इमरजेंसी को अप्रूव करने के लिए बुलाई गई थी। इसलिए कोई वोटिंग नहीं हुई।
पी एन धर ने इस बारे में बाद में बताया कि वहां कोई चर्चा नहीं हुई। प्रधानमंत्री के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि आधी रात को ये इतना बड़ा कदम क्यों उठाया गया। पूरी मीटिंग सिर्फ 30 मिनट में खत्म हो गई
25 जून 1975 से 19 जनवरी 1977 तक भारत में इमरजेंसी लागू रहा। मेंनटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट यानी मीसा कानून और डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट के तहत करीब एक लाख से ज्यादा लोगों को जेल में डाला गया।
पर अक्सर सवाल उठाया जाता है कि देश में इसका किसी ने विरोध क्यों नहीं किया। इंदिरा गांधी ने खुद कहा कि जब मैंने इमरजेंसी लगाई, एक कुत्ता भी नहीं भौंका था।
कुलदीप नैयर अपनी आत्मकथा ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’ में कहते हैं कि आम लोगों को पता यह भी नहीं पता था कि आपातकाल का क्या मतलब होता है। लोग सकते और दुविधा में थे। सभी विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। या उन्हें हाउस अरेस्ट कर लिया गया।आंदोलन कर रहे जयप्रकाश नारायण से लेकर मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवानी, अरूण जेटली, जॉर्ज फर्नांडीस, चंद्रशेखर जैसे शीर्ष विपक्षी नेता शामिल थे। 25 जून की आधी रात को ही सभी राज्यों के मुख्य सचिव की गिरफ्तारी का आदेश दे दिया गया था।
जयपुर की महारानी और ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिंधिया को भी इमरजेंसी के दौरान तिहाड़ जेल में डाल दिया गया था। 65 साल की गायत्री देवी को फॉरेन एक्सचेंज और स्मगलिंग के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया।
वहीं, राजमाता सिंधिया पर पैसों की हेरा-फेरी का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया था। 26 संगठनों को एंटी-इंडिया कहकर उन पर बैन लगा दिया गया था। इसमें RSS से लेकर कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सिस्ट शामिल थे।
प्रेस पर पाबंदी लगा दी गई। हर अखबार के दफ्तार में सेंसर अधिकारी बैठा दिया गया। उसके देखने के बाद ही कोई भी खबर छपती थी। सरकार विरोधी समाचार छापने पर गिरफ्तारी हो जाती थी। 23 जनवरी 1977 तक सब ऐसे ही चलता रहा जब तक लोकसभा चुनाव की घोषणा नहीं हो गई।