ताइवान में रूलिंग पार्टी के नेता और मौजूदा उपराष्ट्रपति विलियम लाई चिंग-ते ने राष्ट्रपति चुनाव जीत लिया है। यह वही नेता हैं, जिन्हें मतदान से पहले चीन ने खतरनाक अलगाववादी कहा था। चीन ने मतदाताओं को चेतावनी दी थी कि यदि वे सैन्य संघर्ष से बचना चाहते हैं, तो सही विकल्प चुनें।
दरअसल, उप राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ताइवान की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (DPP) के राष्ट्रपति पद के दावेदार थे। BBC के मुताबिक, चुनाव नतीजे सामने आने के बाद DPP पार्टी के समर्थकों ने कहा- इलेक्शन रिजल्ट चीन को संदेश है कि हम अपने नेताओं को चुनेंगे और हम आपकी धमकी के आगे नहीं झुकेंगे।
इससे पहले ताइवान के समय के मुताबिक लोगों ने सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक वोट दिए। ताइवान में करीब 70% मतदाताओं ने वोटिंग की। चुनाव के लिए देश में करीब 18 हजार पोलिंग स्टेशन बनाए गए थे। वहीं, न्यूज एजेंसी AFP के मुताबिक, वोटिंग के दौरान ताइवान के हवाई क्षेत्र में चीन के 2 रहस्यमयी गुब्बारे और फाइटर जेट को उड़ान भरते देखा गया था।
ताइवान के चुनाव में विपक्ष की कुओमिनतांग पार्टी (KMT) ने होउ यू इह पर अपना दाव खेला था। KMT वही पार्टी है जिसकी सरकार चीन के कम्युनिस्टों से गृह युद्ध में हारकर ताइवान द्वीप पर आ बसी थी। 66 साल के होऊ यू इह राजनीति में आने से पहले पुलिस फोर्स के हेड रह चुके हैं।
वो फिलहाल न्यू ताइपे के मेयर हैं। उनका वादा है कि वो सत्ता में आने के बाद देश की सुरक्षा को मजबूत करेंगे और चीन से फिर से बातचीत शुरू कर रिश्ते सुधारेंगे।
ताइवान चुनाव में राष्ट्रपति पद के लिए तीसरे अहम दावेदार को वेन जे हैं। उन्होंने 2019 में ताइवान पीपल्स पार्टी बनाई थी। को चीन के मामले में बीच का रास्ता अपनाने के समर्थक हैं। चुनावी कैंपेन में वो खुद को ऐसे कैंडिडेट के तौर पर पेश कर रहे थे जो चीन और अमेरिका दोनों को स्वीकार होगा।
1995 की बात है, ताइवान के राष्ट्रपति ली तेंग को अमेरिका की कॉर्नले यूनिवर्सिटी से उनके देश में लोकतंत्र को लेकर भाषण देने का न्योता मिला था। ली ने इसी यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी। उन्होंने ठान लिया था कि वो वहां जाकर भाषण जरूर देंगे। हालांकि, चीन को ये किसी सूरत में मंजूर नहीं की ताइवान का कोई नेता अमेरिका का दौरा करे।
ऐसे में तय था कि ली के अमेरिका जाकर भाषण देने को बीजिंग बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेगा। 9-10 जून 1995 को ली अमेरिका गए और वहां ताइवान को लेकर भाषण दिया। इससे चिढ़ कर चीन ने उन्होंने गद्दार घोषित कर दिया, जो चीन को 2 टुकड़ों में बांटना चाहता है। दरअसल, चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है।
अगले साल 1996 में ताइवान में चुनाव होने वाले थे। चीन नहीं चाहता था कि ली फिर ताइवान के राष्ट्रपति चुने जाएं। ऐसे में चुनाव से ठीक पहले ताइवान के लोगों को ली को वोट देने रोकने के लिए युद्धाभ्यास कर डाला। चीन ने नए-नए टेस्ट किए गए M-9 रॉकेट्स हफ्ते भर तक ताइवान के बंदरगाहों के पास दागे।
ताइवान में केवल 2 करोड़ 30 लाख लोग हैं। इसके बावजूद ताइवान चुनाव के नतीजों का असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा। दरअसल, चीन 36,193 स्क्वायर किलोमीटर में फैले ताइवान द्वीप पर अपना दावा ठोकता रहा है। ताइवान से ही दुनिया में 90% सेमीकंडक्टर्स की सप्लाई होती है।
ये चिप्स इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का दिमाग होती हैं। कंप्यूटर, लैपटॉप, कार, वॉशिंग मशीन, ATM, अस्पतालों की मशीन से लेकर हाथ में मौजूद स्मार्टफोन तक सेमीकंडक्टर चिप पर ही काम करते हैं। सेमीकंडक्टर्स पर न सिर्फ ताइवान बल्कि पूरी दुनिया की इकोनॉमी निर्भर करती है।
ट्रेंड फोर्स के मुताबिक सेमीकंडक्टर्स की तुलना तेल से होने लगी है। ताइवान में कुछ भी होगा तो उसका असर सेमीकंडक्टर्स की इंडस्ट्री पर पड़ेगा, जिससे पूरी दुनिया में इसकी सप्लाई चेन बाधित होगी।
ताइवान और चीन के बीच वर्तमान तनातनी दूसरे वर्ल्ड वॉर के बाद शुरू हुई। दरअसल, तब चीन में राष्ट्रवादी सरकारी सेनाओं और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच गृह युद्ध शुरू हो गया था।
1949 में कम्युनिस्ट जीत गए और उनके नेता माओत्से तुंग ने मेनलैंड चीन की राजधानी बीजिंग पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। वहीं हार के बाद राष्ट्रवादी पार्टी- कुओमिंतांग या Kuomintang के नेता ताइवान भाग गए। तब से ही कुओमिंतांग ही ताइवान की सबसे प्रमुख राजनीतिक पार्टी है और ताइवान पर ज्यादातर समय इसी पार्टी का शासन रहा है।
वर्तमान में केवल 14 देश ही ताइवान को संप्रभु देश के रूप में मान्यता देते हैं। ताइवान के समर्थन के बावजूद खुद अमेरिका उसे स्वतंत्र देश नहीं मानता है। चीन बाकी देशों पर ताइवान को मान्यता न देने के लिए राजनयिक दबाव डालता रहा है।
वर्तमान में चीन और ताइवान के रिश्ते बेहद तनावपूर्ण हैं। चीन-ताइवान के बीच विवाद 2022 में 1 अक्टूबर को चीन की स्थापना के उपलक्ष्य में मनाए जाने वाले नेशनल डे से तब शुरू हुआ था, जब 100 से ज्यादा चीनी जेट ने ताइवान के एयर डिफेंस क्षेत्र का उल्लंघन किया था।
चीन के इस कदम के बाद ही दुनिया में ये चर्चा शुरू हुई कि वह ताइवान पर जबरन कब्जा करने जा रहा है। फरवरी में यूक्रेन पर रूस के हमले और चीन द्वारा रूस के समर्थन ने ताइवान पर हमले के डर को और बढ़ाने का काम किया है।