आपको जानकर हैरानी होगी कि चुनाव आयोग 2,174 पंजीकृत गैरमान्यता प्राप्त दलों पर इस मामले में कार्रवाई करने जा रहा है। आयोग ने इन दलों की जांच करने के लिए सीबीडीटी से आग्रह किया है।
आयोग की ये कार्रवाई इन दलों की ओर से अपने दानदाताओं की सूची आयोग में जमा नहीं कराने के कारण की जा रही है। आयोग ने बताया कि 2,174 पंजीकृत गैरमान्यता प्राप्त दलों के खिलाफ कार्रवाई के लिए राजस्व विभाग को तब लिखा गया, जब इन दलों को लगभग 1,000 करोड़ रुपये का चंदा मिलने का मामला सामने आया।
आयोग ने यह कार्रवाई जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 29 ए और सी के तहत की है। धारा 29 सी के तहत गैरमान्यता प्राप्त पार्टी के लिए यह अनिवार्य है कि वह उसे मिले चंदे का ब्योरा चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 59 बी के तहत आयोग में पेश करे। इस चंदे को आयकर से 100 फीसदी छूट प्राप्त होती है, लेकिन यह छूट तभी हासिल होती है जब दल उसका ऑडिटेड ब्योरा आयोग को भेजें। इन दलों ने अगर 30 दिन के अंदर आयोग को ब्योरा नहीं दिया तो उन्हें भविष्य के चुनावों के लिए चुनाव चिन्ह नहीं दिया जाएगा।
|इससे पहले निर्वाचन आयोग 198 गैर मान्यताप्राप्त राजनैतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई कर उन्हें डीलिस्ट कर चुका है। डीलिस्ट किए गए दल, वे दल हैं जो जमीन पर मौजूद नहीं थे और एक बार पंजीकृत होने के बाद वे गायब हो गए। इसके अलावा ऐसे 111 दल और हैं, जो अस्तित्व विहीन हैं। जिन्हें आयोग की ओर से डीलिस्ट किया गया है।
आयोग ने इन दलों से यह भी पूछा था कि उन्होंने अब तक कोई चुनाव क्यों नहीं लड़ा है, लेकिन इन दलों ने इसका जवाब भी नहीं दिया है। आयोग में इस समय लगभग 2,800 दल पंजीकृत हैं। लेकिन सिर्फ 60 दल ही हैं, जो मान्यता प्राप्त हैं और गंभीरता से चुनाव लड़ते हैं। इनमें छह दलों में भाजपा, कांग्रेस, एनसीपी, टीएमसी, बसपा और सीपीएम को राष्ट्रीय मान्यता हासिल है। 2019 के लोकसभा चुनावों में 623 दलों ने ही चुनाव लड़ा था।
राजनैतिक दलों का पंजीकरण पिछले दो दशकों में 300 फीसदी से ज्यादा की दर से बढ़ा है। साल 2021 में 694 राजनैतिक दल थे, जिनकी संख्या बढ़कर अब करीब 2800 पहुंच गई है। सूत्रों के अनुसार, राजनैतिक दलों की संख्या में अंधाधुंध इजाफे का एक कारण इलेक्टोरल बांड की सुविधा भी है।
पार्टियों को अब 2000 हजार रुपये का चंदा ही नकद में दिया जा सकता है। इससे ऊपर की रकम (1000 रुपये, 10 हजार, एक लाख, 10 लाख और एक करोड़ रुपये) का चंदा इलेक्टोरल बांड के जरिये दिया जाता है, जिसे गोपनीय रखा जाता है। इलेक्टोरल बांड स्टेट बैंक के जरिये जारी किए जाते हैं, जिन्हें साल में कुछ विशेष दिनों में खरीदा जा सकता है।चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए इलेक्टोरल बांड की योजना 2018 में लाई गई थी। 2018 में ही इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, लेकिन उसके बाद इस पर सुनवाई नहीं हुई है। केंद्र सरकार ने इस योजना का बचाव किया है और कहा है कि बांड खरीदने वाले की जानकारी केवाईसी के रूप में बैंक के पास मौजूद रहती है, जिसे गोपनीय नहीं कहा जा सकता। पांच वर्षों के दौरान कुल 9208 करोड़ के बांड बिके, जिनमें 1987.55 करोड़ रुपये के बांड राजनैतिक दलों ने कैश करवा लिए। पांच वर्ष में बिके बांड- 2018: 1056 करोड़, 2019: 5091 करोड़, 2020: 363 करोड़, 2021: 1501 करोड़, 2022: 1213.26 करोड़ रुपये।निर्वाचन आयोग को कदाचारी दलों को खिलाफ कार्रवाई करने की शक्ति नहीं है। आयोग किसी दल आरपी एक्ट, 1951 के तहत दलों को पंजीकृत तो कर सकता है, लेकिन उसका पंजीकरण निरस्त नहीं कर सकता। निरस्तकीरण की इस शक्ति के लिए आयोग ने कई बार कानून मंत्रालय को लिखा है, लेकिन सरकार ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया है।