70 लाख किलो लोहे से बना एफिल टावर, हिटलर भी नहीं तोड़ सका

14 जुलाई को फ्रांस के पेरिस शहर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एफिल टावर को देखने जाएंगे। यह पहला मौका नहीं है, जब कोई भारतीय पीएम एफिल टावर देखने जा रहा हो। जून 1985 में भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी जब फ्रांस दौरे पर गए थे, तब वह भी एफिल टावर गए थे।
उन्होंने एफिल टावर से राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया था। एफिल टावर पर राजीव ने फ्रांस के पीएम फ्रांकोइस मिटर्रैंड को हाथी का एक बच्चा गिफ्ट किया था, जो वह भारत से अपने साथ लेकर गए थे।
पेरिस की जान कहे जाने वाले इस एफिल टावर को 134 साल पहले 1889 में बनाया गया था। 330 मीटर लंबे इस टावर को बनाने में 70 लाख किलो लोहे का इस्तेमाल हुआ। 300 मजदूरों ने 2 साल 2 महीने और 5 दिन कड़ी मेहनत कर इस भव्य ढांचे को तैयार किया था।
साल 1886 की बात है। दुनियाभर में मेले कराने वाली एक कंपनी ‘एक्सपोजिशन यूनिवर्सल’ ने 3 साल बाद पेरिस में एक शानदार मेले के आयोजन का ऐलान किया। कंपनी ने कहा कि फ्रांसिसी क्रांति के 100 साल पूरे होने पर 1889 में इस मेले का आयोजन होगा। इस मेले में एंट्री के लिए एक भव्य गेट बनाया जाना था। इस गेट की डिजाइन बनाने के लिए एक कॉम्पिटिशन आयोजित किया गया।
कॉम्पिटिशन में 100 से ज्यादा लोगों ने अपने डिजाइन भेजे, लेकिन सिलेक्ट सिर्फ एक हुआ। इस गेट को बनाने के लिए जिस शख्स का डिजाइन पास हुआ, उसका नाम था- एलेक्जेंडर गुस्तोव एफेल। एफेल पेशे से फ्रांस में एक आर्किटेक्ट थे। इन्हें एफिल टावर का डिजाइन इनके 2 इंजीनियर्स ने सुझाया था।

1887 में गेट बनाने पर काम शुरू कर दिया गया। दिलचस्प बात ये है कि आज जिस एफिल टावर को पेरिस के लोग अपने शहर की शान समझते हैं। उन्हीं लोगों ने इसके बनने के खिलाफ प्रदर्शन किए थे। प्रदर्शनकारियों को लगा था कि एफिल टावर का ढांचा उनके शहर की खूबसूरती को बिगाड़ देगा। हालांकि उनके प्रदर्शन के बावजूद एफिल टावर बना। 1930 तक दुनिया का सबसे बड़ा ढांचा होने का श्रेय एफिल टावर को ही जाता रहा।
फ्रांस की शान एफिल टवर वहां के लोगों की अपनी मेहनत का नतीजा नहीं, बल्कि इसे कैरेबियाई सागर स्थित देश हैती के लोगों का आर्थिक शोषण करके बनाया गया था। हैती फ्रांस का गुलाम था। फ्रांसीसी यहां के अश्वेतों से गन्ने के खेतों में गुलामी करवाकर मुनाफा कमाते थे। बाद में आजादी के लिए हैती के नागरिकों ने विद्रोह किया और नेपोलियन की सेना को हरा दिया।

आजादी के बदले हैती को डेढ़ लाख करोड़ रुपए देने के लिए कहा गया। हैती लंबे समय तक यह कर्ज चुकाता रहा और कंगाल हो गया। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक 25 सितंबर 1880 को वो दिन आया, जब हैती के राष्ट्रपति लिसियिस सालोमन ने हैती के पहले नेशनल बैंक की घोषणा की।
हालांकि ये बैंक सिर्फ नाम के लिए ही हैती का नेशनल बैंक था। इसके फाइनेंसर फ्रेंच थे। बैंक के जरिए फ्रांस हैती पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहता था। इस बैंक को फ्रांस के क्रेडिट इंडस्ट्रियल कॉमर्शियल बैंक के सहयोग से बनाया गया था।
क्रेडिट इंडस्ट्रियल बैंक हैती से कमाए पैसों का इस्तेमाल फ्रांस में कर रहा था। इसी बैंक ने एफिल टावर को बनवाने के लिए पैसे दिए थे। एक तरफ फ्रांस में हैती के पैसों से एफिल टावर बन रहा था, तो वहींं दूसरी ओर हैती फंड की कमी के चलते अपने लोगों के लिए स्कूल और अस्पताल तक नहीं बनवा पा रहा था।
14 जून 1940 को दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने फ्रांस की राजधानी पेरिस पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद हिटलर खुद पेरिस गया, जहां उसने एफिल टावर समेत कई मशहूर जगहों का दौरा किया। हालांकि वो एफिल टावर के ऊपर नहीं जा पाया।
फ्रांसीसियों ने जानबूझकर टावर की लिफ्ट केबल काट दीं ताकि हिटलर एफिल टावर के ऊपर तक न जा सके और नाजियों को अपना झंडा फहराने के लिए सीढ़ियां चढ़ने के लिए मजबूर होना पड़े। होलोकॉस्ट इंसाइक्लोपीडिया के मुताबिक हिटलर फ्रेंच कलाकृतियों और ढांचों को काफी पसंद करता था।

हालांकि 1944 में जब जर्मनी जंग हारने लगा तो हिटलर ने पेरिस को पूरी तरह से तबाह करने के आदेश दिए। जर्मनी की सेना ने एफिल टावर को गिराने के लिए विस्फोटक और माइन्स लगाने की पूरी योजना बना ली थी। ऐसा हो पाता उससे पहले ही पेरिस में मित्र देशों की सेनाएं पहुंच गईं और नाजी सेना अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाई।
1925 की बात है। विक्टर लुस्टिग नाम का एक व्यक्ति मई में पेरिस पहुंचता है। ये वो दौर था जब यूरोप में पहला विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद रेनोवेशन का काम चल रहा था। एफिल टावर की भी मरम्मत की जा रही थी।
लुस्टिग पेरिस के एक लग्जरी होटल में मेटल वेस्ट इंडस्ट्री के बड़े उद्योगपतियों के साथ मीटिंग करता है। उद्योगपतियों को इस मीटिंग के लिए लुस्टिग ने खुद को फ्रांसीसी सरकार का अधिकारी बताकर सरकारी स्टांप के साथ पत्र भिजवाया था। लुस्टिग ने मीटिंग में कहा, ‘खराब इंजीनियरिंग, खर्चीली मरम्मत और कुछ राजनीतिक समस्याओं की वजह से एफिल टावर का गिरना जरूरी है।’

उसने कहा, ‘टावर सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को दिया जाएगा।’ इस मीटिंग में मौजूद किसी भी व्यापारी ने लुस्टिग के ऑफर पर शक नहीं किया। सभी ने समझा कि उसे फ्रांस की सरकार की तरफ से भेजा गया है।

इसके बाद व्यापारियों ने बोली लगाई और सबसे ज्यादा बोली लगाने वाले व्यापारी को लुस्टिग ने एफिल टावर बेच दिया। उसने ऐसा एक बार नहीं बल्कि 2 बार किया था। व्यापारियों को बाद में पता चला कि लुस्टिग कोई सरकारी अधिकारी नहीं बल्कि एक ठग है। जिसे अमेरिका की जांच एजेंसी FBI तक ढूं