अमेरिका ने कहा है कि तालिबान के साथ हुए समझौते की एक शर्त- यानी अमेरिकी फौजों की पूरी तरह से एक मई तक वापसी पर वो सोच विचार कर रहा है. तालिबान ने कहा है कि इसका मतलब होगा विदेशी फौजों पर हमले.
दोशान्बे में दिए गए अपने भाषण के दौरान अफ़ग़ान राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने ज़ोर देकर कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता में बदलाव चुनाव के ज़रिये ही होना चाहिए. अशरफ़ ग़नी ने कहा कि शांति वार्ता के बाद जो चुनाव हों, वो अंतरराष्ट्रीय समुदाय की देख-रेख में करवाए जाएं और वो समावेशी होना चाहिए.
अफ़ग़ानिस्तान के लिए अमेरिका के विशेष दूत ज़ल्मी ख़लीलज़ाद ने मार्च के महीमे में ही प्रस्ताव दिया था कि मुल्क में शांति की स्थापना के लिए एक कार्यवाहक सरकार बहाल की जानी चाहिए लेकिन अशरफ़ ग़नी ने, जिनका कार्यकाल अभी चार साल बाक़ी है, इस प्रस्ताव का विरोध किया था.
अशरफ़ ग़नी ने फिर से कहा है कि वो चुनाव के लिए तैयार हैं. दूसरी तरफ़, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में वॉशिंगटन में कहा था कि अमेरिकी फौजों की वापसी का एक मई के डेडलाइन को पूरा कर पाना मुश्किल होगा.
संघर्षविराम लागू करना
पहली मई तक अमेरिकी फौजों की वापसी तालिबान और डोनाल्ड ट्रंप के समय की अमेरिकी प्रशासन के फरवरी 2020 में हुए समझौते की एक अहम शर्त है. इस समझौते के बाद तालिबान ने विदेशी फौजों पर अफ़ग़ानिस्तान में हमले कम कर दिए हैं हालांकि सरकारी फौजें और संस्थाओं पर उसके हमलों में तेज़ी से इजाफ़ा हुआ है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, इन हमलों की तादाद पिछले 10 सालों में सबसे अधिक हो गई है. राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने कहा कि मुल्क में संघर्षविराम लागू हो और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसकी निगरानी करे.
मॉस्को में अफग़ानिस्तान पर हुई बैठक के बाद रूस, अमेरिका, चीन और पाकिस्तान ने एक साझा बयान जारी कर तालिबान से कहा था कि वो सर्दियों के पहले हमलों में जिस तरह की तेज़ी लाते हैं उसे रोकें और हिंसा खत्म करें. इस पर तालिबान ने जवाब दिया था कि वो इसके लिए तैयार है, लेकिन वो इसे संघर्षविराम नहीं चाहता.
हालांकि भारत मॉस्को में हुई वार्ता का हिस्सा नहीं था लेकिन दोशान्बे शांति वार्ता में वो शामिल है और भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि अफ़गानिस्तान में शांति की स्थापना के लिए ज़रूरी है कि उसके आसपास के क्षेत्र में भी शांति कायम रहे. उन्होंने अपने भाषण में डबल पीस (दोहरी शांति) की बात की.
इससे समझा जाता है कि एस जयशंकर कहना चाहते हैं कि पास के देशों को अफ़ग़ानिस्तान में शांति स्थापित करना ही चाहिए, साथ ही ये भी ज़रूरी है कि वो अपने पड़ोसियों से भी शांति स्थापित करें. भारतीय विदेश मंत्री ने राजनीतिक समाधान की बात भी कही.
चीन समर्थित प्रोजेक्ट
दोशान्बे में मौजूदगी के दौरान एस जयशंकर ने अफ़ग़ान राष्ट्रपति के अलावा तुर्की और ईरान के विदेश मंत्रियों से भी मुलाकातें कीं.
दूसरी तरफ़, पाकिस्तान और भारत को लेकर स्थानीय मीडिया में कहा जा रहा है कि ताजिकिस्तान में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच किसी तरह की बैठक की अब तक कोई योजना नहीं है. हालांकि सूत्रों के हवाले से कही गई ख़बर में ये बात भी है कि ऐसी कोई बैठक हो सकती है इससे पूरी तरह से मना नहीं किया जा सकता है.
इस बीच, पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने अफ़ग़ानिस्तान को चीन समर्थित प्रोजेक्ट में शामिल होने का न्योता दिया है.
शाह महमूद क़ुरैशी ने कहा, “बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट को लेकर जो पहल की गई है, पाकिस्तान उसका हिस्सा है. ये प्रोजेक्ट अफ़ग़ानिस्तान के लिए भी खुला है, इससे उसका फ़ायदा होगा.”
चीन के पैसे से तैयार हो रहे इस प्रोजेक्ट की दावत पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने अपने श्रीलंका के दौरे के बीच उस मुल्क को भी दी थी. भारत इस योजना को लेकर असहज रहा है. हालांकि हाल के दिनों में भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में बेहतरी होती दिख रही है.
दोनों मुल्कों ने नियंत्रण रेखा पर साल 2003 में किए गए युद्धविराम समझौते को फिर से लागू किया है. पाकिस्तान की एक खेल टीम भारत भी आई और दोनों मुल्कों के बीच नदियों के मामले पर बैठक भी हुई है.