अफगानिस्तान में तालिबान की जीत से खुश पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के डायरेक्टर जनरल लेफ्टिनेंट फैज हमीद का जश्न कुछ ही दिनों में गायब होता दिख रहा है। दरअसल, तालिबान ने 130 साल पुरानी पाकिस्तान-अफगानिस्तान बॉर्डर डूरंड लाइन की वैधता पर सवाल उठा दिए हैं।
अफगानिस्तान के रक्षा मंत्री और तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर के बेटे मौलवी याकूब मुजाहिद ने कहा है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच का बॉर्डर सिर्फ ‘काल्पनिक रेखा’ है।
अफगान लोग चाहेंगे तब ये मामला उठाया जाएगा। अभी हम किसी के साथ नई जंग शुरू करना नहीं चाहते। 2021 में तालिबान ने पाकिस्तानी जवानों को तारबंदी करने से रोक दिया था।
अफगानिस्तान सीमा पार के पाकिस्तानी हिस्से वाले पश्तून क्षेत्रों पर संप्रभुता का दावा करता है। जिसमें पूर्व संघीय प्रशासित जनजातीय क्षेत्र और उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत के हिस्से शामिल हैं।
12 नवंबर 1893 को ब्रिटिश भारत के सचिव सर मोर्टिमर डूरंड और अफगानिस्तान के शासक अब्दुर रहमान खान के बीच यह सीमा समझौता हुआ था।
1947 में आजाद होने के बाद से पाकिस्तान इसे अपनी सीमा बताता है। 9/11 आतंकी हमले के बाद आम लोगों के डूरंड रेखा के पार आने-जाने पर रोक लगा दी गई है। जिससे पश्तून लोग परेशान हैं।
पाकिस्तान सुरक्षा और तस्करी रोकने का हवाला देते हुए 2,640 किमी लंबी डूरंड लाइन पर तारबंदी कर रहा है। जिसे लेकर अफगानिस्तान नाराज है।
अफगान पक्ष का दावा- पाक डूरंड लाइन को दुनियाभर से मान्यता दिलाना चाहता है
अफगानिस्तानी विशेषज्ञ अली आदिल का कहना है कि डूरंड लाइन ‘औपनिवेशिक रूप से थोपी’ हुई है। जो पश्तून जनजातियों के पैतृक घरों को दो देशों में बांट देती है। आदिल कहते हैं कि ब्रिटिश अधिकारियों और रहमान के बीच समझौते की 100 साल की समय सीमा थी, जो 1993 में समाप्त हो गई थी। सुरक्षा और तस्करी का बहाना करके पाकिस्तान डूरंड लाइन को वैश्विक स्तर पर स्थायी सीमा की मान्यता दिलाना चाहता है।
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार इलियास खान कहते हैं कि तालिबान को गंभीरता से लेना चाहिए। साफ है कि तालिबान के डूरंड लाइन मुद्दे पर पीछे हटने की संभावना नहीं है। मोहम्मद गनी और हामिद करजई सरकार ने भले ही संयम दिखाया हो, लेकिन, तालिबान का डिप्लोमेसी में कोई यकीन नहीं है। पहले यूएसएसआर और फिर अमेरिका जैसी महाशक्तियों को हराने के बाद दंभ में चूर तालिबान ताकत के इस्तेमाल से हिचकिचाएगा नहीं।
पाक को उम्मीद थी कि तालिबान के आने से डूरंड विवाद हमेशा के लिए शांत हो जाएगा। विश्लेषक आमेर खान का कहना है कि पाक धोखा खा गया। अगर हमारे पास प्रभावी विदेश नीति होती तो डूरंड का 130 साल पुराना भूत फिर से सामने नहीं आता।