लखनऊ के अपोलोमेडिक्स अस्पताल में ब्लड कैंसर की चपेट में आई महिला का बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने में डॉक्टर कामयाब रहे हैं। अस्पताल प्रशासन का दावा हैं कि 6 महीने के भीतर 5 बोन मैरो ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किए गए। इसमें से एक जटिल एलोजेनिक ट्रांसप्लांट भी शामिल है।
जानकारी के मुताबिक 38 साल की महिला रोगी कैंसर की चपेट में थी। बेहद गंभीर हालत में उसे अस्पताल लाया गया था। इस बीच कीमोथेरेपी से इलाज की शुरुआत हुई पर हालत बिगड़ते देख बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने का विशेषज्ञों ने मन बनाया। फिलहाल सफल ट्रांसप्लांट के बाद महिला सेहतमंद हैं पर डॉक्टर लगातार निगरानी कर रहे हैं।
हेमेटोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. सुनील दबड़घाव ने एलोजेनिक बोन मैरो ट्रांसप्लांट की जटिलता के बारें में बताया कि ऐसे ट्रांसप्लांट के लिए अत्यधिक कौशल और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। प्रत्येक ट्रांसप्लांट अपनी जटिलताओं के साथ अनूठी चुनौतियों भी प्रस्तुत करता है। उन्होंने बताया कि ऐसा ही एक मामला 38 साल की महिला का था। उसे एक्यूट मायलोजेनस ल्यूकेमिया के साथ अस्पताल में लाया गया था। कीमोथेरेपी के बाद रोग फिर से शुरू हो गया था और इसे नियंत्रित करने के लिए डॉक्टरों ने मरीज और उसके परिवार को बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने की सलाह दिया।
जांच के दौरान डॉक्टरों ने पाया कि मरीज में 40 फीसदी ब्लास्ट सेल्स (कैंसर सेल्स) थे। इससे पता चला कि वह हाईरिस्क कैटेगरी में आ गई है। मरीज के लिए उसके सगे भाई में एक आदर्श डोनर मैच मिला, जिसने ट्रांसप्लांट के लिए अपनी स्टेम सेल दान की थी। मरीज को 21 दिनों के बाद छुट्टी दे दी गई। 30वें दिन फॉलो-अप टेस्ट के दौरान पाया गया कि डोनर सेल 100% सक्रिय थी। आने वाले कुछ और महीनों तक रोगी फिलहाल फॉलो-अप में रहेगा।
अस्पताल के एमडी डॉ. मयंक सोमानी ने कहा कि ऑपेरशन करने वाली टीम के हर सदस्य की कड़ी मेहनत और समर्पण का नतीजा हैं। मरीज तेजी से रिकवर हो रहा हैं।
हेमेटोलॉजी ऑन्कोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट की कंसल्टेंट डॉ. प्रियंका चौहान ने बताया कि दुनियाभर में बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन के आंकड़े बताते हैं कि केवल 30 फीसदी व्यक्तियों के परिवारों में एचएलए-मैचिंग डोनर है। इस बाधा के बावजूद, ये प्रत्यारोपण कई रक्त विकारों के लिए सबसे प्रभावी उपचारों में से एक है। बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) भारत में लगातार बढ़ रहे हैं और लगभग 2500 प्रत्यारोपण सालाना किए जाते हैं। पांच साल पहले ये आंकड़ा 500 से भी कम था। उन्होंने बताया कि वैसे तो देश में बीएमटी केंद्रों की संख्या बढ़ रही है लेकिन यह वास्तविक जरूरत के मुकाबले 10% से भी कम है।
पैडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी एंड हेमेटोलॉजी की प्रमुख डॉ. अर्चना कुमार ने बताया कि समय से पहचान सफल उपचार के लिए महत्वपूर्ण है। जो रोगी अपने जोखिम से अवगत हैं या जो नियमित जांच के लिए अपने डॉक्टरों से मिलते हैं। उन्हें रक्त विकार के कोई भी संकेत होने पर तुरंत विशेषज्ञों के पास जाना चाहिए।