कपूर खानदान से होने के बावजूद कभी महसूस नहीं हुआ कि मुझे एंट्री तो विरासत में मिली है- जहान कपूर

बॉलीवुड की फर्स्ट फैमिली कपूर खानदान की चौथी जनरेशन जहान कपूर का डेब्यू हंसल मेहता की फिल्म ‘फराज ’ से हो रहा है। इसकी कहानी साल 2016 में ढाका में हुई आतंकी घटना के इर्द गिर्द घूमती है। आतंकियों ने एक कैफे में कई लोगों की हत्या कर दी थी। परेश रावल के बेटे इसमें आतंकवादी का रोल निभाएगें। जहान कपूर फराज नामक मुस्लिम बने हैं, जो आतंकियों का मुकाबला करते हैं। पेश हैं उनसे खास बातचीत के प्रमुख मेरी जर्नी 15 साल से ही शुरू हो गई थी। पापा (कुणाल कपूर, जो शशि कपूर के बेटे हैं) ने कहा, चलो काम पर लग जाओ। पहला काम उन्हें असिस्ट करना था एक ऐड फिल्म के लिए। उसी उम्र में मैंने एक शॉर्ट फिल्म भी लिखी थी। मेरी दिलचस्पी बिहाइंड द कैमरा में जगने लगी। फिर मैंने थिएटर पर्सनैलिटी सुनील शानबाग को भी असिस्ट किया। मुझे कभी नहीं लगा कि मुझे इंडस्ट्री में एंट्री विरासत में मिली है। सुनील शानबाग जी के चलते मेरा रुझान अदाकारी में आया। हुनर बेहतर करने के लिए मैंने नसीरुद्दीन शाह सर के प्लेज की रिहर्सल में जाया करता था। एक रेपेट्री कंपनी भी जॉइन की। वहां ट्रेनिंग ली। लंदन में नैशनल यूथ थिएटर ऑफ ग्रेट ब्रिटेन से तीन महीने का कोर्स भी किया।
फिल्म ने दो लॉकडाउन, एक कोर्ट केस और प्रोड्यूसर में बदलाव सहा है। फिर भी हम सब डटे रहे। हमारी फिल्म के जो शुरूआती प्रोड्युस कर रहे स्टूडियो थे, उनके साथ कुछ फंड के मसले हुए। डायरेक्टर हंसल सर को लगा कि विजन मैच नहीं हो रहा। फाइनली अनुभव सिन्हा बोर्ड पर आए। वह आर्टिकल15, मुल्क जैसी फिल्मों में काम कर चुके हैं। भट्ट साहब का आशीर्वाद हालांकि अब भी है।
मैं पापा से बतौर एक्टर कैसे इंडस्ट्री में नैविगेट करना है, उसके लिए सलाह लेता हूं। रहा सवाल रोल का तो हंसल मेहता सर जैसे दिग्ग्ज डायरेक्टर साथ हैं तो उनसे लेता हूं, क्योंकि कहानी और विजन उनकी है। इस पिक्चर में कुरान शरीफ की काफी सुरहें यानी अध्याय से ली गई बातें हैं। वहां हमें हंसल सर के एसोसिएट एखलाक खान से काफी मदद मिली।
हमने इस्लाम पर किताबें पढ़ीं। उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ। मिडिल ईस्ट, पाकिस्तान, बांग्लादेश में मुस्लिमों की क्या स्थिति है? हाल के सौ सालों में इस्लाम को लेकर क्या परसेप्शन बना है, वह भी हमने जाना। बतौर एक्टर महसूस हुआ कि ये सब जानना हमारी जिम्मेदारी है।- आदित्य:- हमें बातें और गहराई से पता चलीं।महसूस हुआ कि जो यूथ आगे चलकर रैडिकलाइज यानी कट्टर होते हैं, उसकी वजह होती है। वैसे यूथ चरमपंथी इसलिए बनते हैं कि उनका जीवन शायद अति संवेदनशील और लोनली यानी एकाकी जीवन जीते रहें और सही समय पर उन्हें सही सपोर्ट नहीं मिला। पर गलत समय पर गलत लोगों वो प्रभावित होते गए।
उन्होंने यही कहा कि क्या कमाल की स्टोरी है? उन पर कहानी का असर गहरा था। यहां एक ऐसी कैयॉस की कहानी थी, जिसमें आतंकी हमले हैं। विचारधारा की लड़ाई है। पूरा देश स्टक है, जैसे 26/11 में भारत की हालत थी।
मुझे बचपन से डांट ही मिलती रही है कि भई ये इंडस्ट्री आसान नहीं है। साथ ही जो करना है खुद करो। फैमिली का सपोर्ट कम ही मिल सकेगा। मैं खुशकिस्मत ही हूं कि मेरे पापा और मम्मी डायरेक्टली इस एक्टिंग में न के बराबर रहे। तो खुद से सीखा। तो कभी जहन में नहीं था। यशराज, धर्मा सब शक की नजर से ही देखते थे। जरूर मुलाकात उनसे हुई पर, कभी एहसान नहीं मांगा उनसे। उनसे अच्छा लगेगा तो वो जरूर मौका देंगे।