डिप्रेशन देता है अंधविश्वास को जन्म,जानिए इस रोग से जुड़ी सभी बातें

आप शारीरिक रूप से बीमार हैं तो आप अपने शरीर में हो रही बीमारियों का इलाज करा सकते हैं. कुछ दवाइयां लेनें के बाद आप शायद ठीक भी हो जाएं, लेकिन क्या आपने कभी उन लोगों के बारे में सोचा है जो डिप्रेशन से जूझ रहे हैं आज के वक्त में ज्यादातर लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं, क्या आप जानते हैं कि किन तरीकों से आप इस बीमारी से दूरी बना सकते हैं. पहले हम आपको बताते हैं कि ये बीमारी है क्या.

डिप्रेशन यानी अवसाद है क्या ?

डिप्रेशन को एक डिसऑर्डर के रूप में माना जाता है. यह उदासी, नुकसान या गुस्से की भावनाओं में देखा जाता है. यह बीमारी लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करती है. लोग अलग अलग तरीकों से डिप्रेशन का अहसास करते हैं. डिप्रेशन के कारण आपको आर्थराइटिस, अस्थमा, हार्ड डिजीज, कैंसर, डायबिटीज और मोटापा जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं. आपको यह बता दें दुख और दुखदायक घटना हर किसी के जीवन में होती है. वहीं लगातार दुखी और निराश महसूस करना सामान्य नहीं है. इसे ही डिप्रेशन कहा जाता है.
कैसे पहचाने की आप डिप्रेशन का शिकार हैं

डिप्रेशन में आप लोगों से कटने लगते हैं. आप खुद से नफरत करते हैं और अपने आपको खत्म कर लेना जैसी भावनाओं के साथ जीते हैं. साथ ही अगर आप खुदकुशी के तरीके ढूंढ रहे हैं तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें,

अगर आपको यह याद नहीं है कि आप आखिरी बार खुश कब थे तो यह डिप्रेशन के लक्षण हैं. आपको बिस्तर से उठने या डेली रुटीन का काम करना एक बहुत बड़ा टास्क लगता है तो इसे इग्नोर न करें.

कैसे करें डिप्रेशन को दूर

शुरुआती दौर में आपका इलाज सिर्फ थेरेपी या काउंसलिंग से भी हो सकता है. वहीं अगर आपकी बीमारी गंभीर है और आपको अजीबो-गरीब आवाजें सुनाई पड़ती हैं. आप कुछ ऐसा देख या सुन रहे हो जो दूसरे नहीं देख सकते. या फिर आप अपने आपको नुकसान पहुचाने की कोशिश करते हैं तो ऐसे मामलों को अंधविश्वास से ना जोड़ें…डॉक्टर की सलाह लें

डिप्रेशन को लेकर गलत धारणा

लोगों के दिलों में डिप्रेशन को लेकर यह धारणा है कि डिप्रेशन या दिमागी लकलीफ सिर्फ उसे होती है. जिसकी जिंदगी में कोई बहुत बड़ा हादसा हुआ हो या जिसके पास दुखी होने की बड़ी वजह हो. आपको बता दें कि डिप्रेशन के दौरान हमारे शरीर में खुशी देने वाले हॉर्मोन्स (ऑक्सिटोसीन) बनना बंद हो जाता है. जिसकी वजह से हम चाहकर भी खुश नहीं रह पाते. इसे दवाईयां, थेरेपी और लाइफ स्टाइल बदलाव कर बेहतर किया जा सकता है.

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