केंद्रीय विद्यालयों में प्रवेश के लिए सांसदों को मिलने वाला कोटा अब उनके लिए ही आफत बन गया है। राज्यसभा में भाजपा नेता सुशील मोदी ने बुधवार को इस कोटे को खत्म करने की मांग को प्रमुखता से उठाया और कहा कि यह कोटा, सांसदों के चुनाव हारने का बड़ा कारण बन रहा है। यह इसलिए है, क्योंकि हर साल इस कोटे से केंद्रीय विद्यालयों में प्रवेश दिलाने के लिए उनके पास हजारों लोगों की सिफारिशें आती है जबकि वे तय कोटे के तहत सिर्फ 10 लोगों को ही खुश कर पाते हैं। जानें इस कोटे को खत्म किए जाने से क्या होगा आम लोगों को फायदा…
खास बात यह है कि भाजपा सांसद की इस मांग का राज्यसभा के अन्य सदस्यों ने भी समर्थन किया। फिलहाल मौजूदा नियमों के तहत केंद्रीय विद्यालयों में प्रवेश के लिए सभी सांसदों (राज्यसभा व लोकसभा के सभी सदस्यों) के पास दस सीटों का सालना कोटा होता है। जिसके तहत वे अपने संसदीय क्षेत्र या राज्य के किन्हीं दस बच्चों का नजदीक के किसी भी केंद्रीय विद्यालय में सीधे प्रवेश दिला सकते हैं।
वैसे तो केंद्रीय विद्यालयों में प्रवेश की अपनी तय प्रक्रिया है, जहां मेरिट के आधार पर ही प्रवेश दिया जाता है लेकिन सांसदों के इस कोटे से किसी को भी सीधे प्रवेश मिल जाता है। यही कारण है कि सांसदों के पास हर साल इस काम के लिए काफी सिफारिशें आती हैं।
भाजपा सांसद ने राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान इस मुद्दे को उठाते हुए शिक्षा मंत्री की तारीफ की और कहा कि उन्होंने अपना कोटा खत्म करके अच्छा काम किया है।
उन्होंने कहा कि यह कोटा इसलिए भी खत्म होना चाहिए, क्योंकि इसमें आरक्षण का भी कोई प्रविधान नहीं है। ऐसे में 788 से ज्यादा सांसदों की ओर से हर साल इस कोटे के तहत केंद्रीय विद्यालयों में 78 सौ से ज्यादा जो प्रवेश कराए जाते हैं, उससे कमजोर और पिछड़े वर्ग के बच्चों को नुकसान होता है। यदि ये सीटें ओपन कोटे में जाएंगी तो एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के करीब चार हजार बच्चों को प्रवेश मिलेगा।
गौरतलब है कि केंद्रीय विद्यालयों में प्रवेश दिलाने के लिए सांसदों को मिलने वाला यह कोटा पहले भी कई बार खत्म किया जा चुका है। हालांकि बाद में सांसदों की मांग पर ही इसे बहाल किया गया था। देश में मौजूदा समय में करीब 1,250 केंद्रीय विद्यालय है।