महात्मा बुद्ध के भिक्षापात्र को वापस लाने की मांग

गौतम बुद्ध को बिहार की धरती पर ज्ञान प्राप्त हुआ और यह उनकी कर्मस्थली भी रही लेकिन वैशाली के लोगों द्वारा महात्मा बुद्ध को उपहार स्वरूप एक भिक्षापात्र दिए जाने संबंधी किंवदंती चुनाव के इस सीजन में उस समय एक बार फिर चर्चा में आ आई जब यहां के लोगों ने उसे काबुल से वापस लाने की मांग दोहराई. यह भिक्षापात्र फिलहाल काबुल के नेशनल म्यूजियम में रखा है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) का एक दल करीब चार वर्ष पहले इसका सत्यापन करने पहली बार काबुल गया था. विशेषज्ञों का दल अब तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा है. वहीं, संस्कृति मंत्रालय का कहना है कि जब तक पुरातत्विक साक्ष्य के साथ यह प्रमाणित नहीं हो जाता कि यह वही भिक्षापात्र है जिसे वैशाली के लोगों ने महात्मा बुद्ध को भेंट स्वरूप दिया था तब तक इस पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता.

काबुल में रखे भिक्षापात्र के बारे में मान्यता है कि इसे वैशाली के लोगों ने भगवान बुद्ध को भेंट किया था. इस विषय को संसद से लेकर सरकार के विभिन्न स्तरों पर उठाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह की मांग है कि वैशाली और बौद्ध धर्म के अनुयायियों की आशा के अनुरूप इस पात्र को केंद्र सरकार देश में वापस लाने का प्रयास करे. भिक्षापात्र को वापस लाने के लिए वज्जिकांचल विकास मंच ने एक हस्ताक्षर अभियान भी चलाया है. वोट मांगने आने वाले उम्मीदवारों से वैशाली से जुड़े बौद्ध स्थलों के विकास को प्राथमिकता देने का संकल्प व्यक्त करने को कहा जा रहा है. मंच के संयोजक देवेन्द्र राकेश ने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं है भिक्षा पात्र अफगानिस्तान में है. केंद्र सरकार की विदेश नीति की प्रामाणिकता के लिए धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व के, महात्मा बुद्ध से जुड़े इस भिक्षा पात्र को लाना जरूरी है.

उन्होंने कहा कि क्षेत्र में महात्मा बुद्ध से जुड़े अनेक स्थल हैं जिनके विकास से यह क्षेत्र न केवल वैश्विक पटल पर आएगा बल्कि पर्यटन बढ़ने से रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे. भिक्षापात्र का सच जानने के लिए काबुल गए विशेषज्ञों ने दो अलग-अलग तरह की रिपोर्ट पेश की, जिससे समस्या हुई है. पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने बताया कि उन्होंने यह विषय केंद्रीय पर्यटन मंत्री महेश शर्मा के समक्ष उठाया है. लेकिन इसका अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है. काबुल जाने वाले दल में पुरातत्व विशेषज्ञ डॉ फणिकांत मिश्रा और पुरातत्व विशेषज्ञ जी एस ख्वाजा शामिल थे.

डॉ फणिकांत मिश्र ने कुछ समय पहले बताया था कि कुशीनगर में महापरिनिर्वाण के पहले भगवान बुद्ध को वैशाली के लोगों ने यह भिक्षापात्र दान में दिया था. एएसआई के पहले महानिदेशक सर अलेक्जेंडर कनिंघम की वर्ष 1883 में लिखी गई पुस्तक के 16वें खण्ड में वृति भिक्षापात्र के जैसे ही काबुल के पात्र का वर्णन है. इसकी उंचाई चार मीटर, वजन 350-400 किलोग्राम, मोटाई 18 सेंटीमीटर और गोलाई 1.75 मीटर है.

ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, दूसरी शताब्दी में राजा कनिष्क इसे पुरषपुर (वर्तमान में पेशावर) ले गए. इसके बाद इसे गंधार (कंधार) ले जाया गया. फिर 20वीं शताब्दी में इसे काबुल के म्यूजियम में रखा गया. चीनी यात्री फाह्यान और ह्वेनसांग ने भी अपने यात्रावृतांत में इस भिक्षापात्र की चर्चा की है.

पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा ”हम सरकार से आग्रह करते हैं कि इस विषय पर गंभीरता से ध्यान दिया जाए ताकि यह ऐतिहासिक धरोहर भारत लाई जा सके.”

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