साल 1911. इस साल पहली बार भारत में एक ऐसी क्रिकेट टीम बनी थी, जिसमें हिन्दू और पारसी सभी खिलाड़ी थे. इस टीम को इंग्लैंड जाकर वहां की अलग-अलग क्रिकेट टीमों के खिलाफ मैच खेलने थे. टीम का कप्तान बनाया गया था पटियाला के नए नवेले राजा भूपेंद्र सिंह को. ये टीम लंदन पहुंची. वहां का मौसम और परस्थितियां सब अलग थीं. भारतीय टीम को वहां सामंजस्य बिठाने के लिए अच्छी रणनीति की जरूरत थी. लेकिन, टीम के कप्तान हर दिन अपने पांच नौकरों और सचिव केके मिस्त्री को लेकर सैर पर निकल जाते थे. मिस्त्री उस समय भारत के सबसे बढ़िया बल्लेबाज थे. राजा साहब घूमने में व्यस्त थे, तो ऐसे में रणनीति कहां बननी थी? एक दिक्क्त और हो गई. कप्तान के टीम पर ध्यान न देने से टीम, हिंदू और पारसियों के गुटों में बंट गई. और फिर इस टीम का बंटाधार हो गया. मैच हुए तो भारतीय बल्लेबाज अंग्रेजी गेंदबाजी के सामने ताश के पत्तों की तरह बिखर गई. इंग्लिश काउंटी की टीमों के साथ कुल 14 मैच खेले गए. भारत से गई टीम केवल दो ही जीत पाई. लेकिन, इस भारतीय टीम में एक खिलाड़ी ऐसा था जिसका इस दौरान खूब डंका बजा. ये था एक गेंदबाज, जब ये स्पिन गेंदबाजी करने आता तो इंग्लिश टीम इसका सामना न कर पाती. कहर बरपाती गेंदें, तीर जैसी निकलतीं. तीर भी ऐसे जो हवा में किधर मुड़ेंगे, बल्लेबाज को समझ न आता. इस गेंदबाज ने उस पूरे दौरे पर अकेले 114 विकेट लिए. कहर बरपाकर रख दिया, लेकिन अकेला चना कैसे भाड़ फोड़ता, इसलिए टीम हार गई.
उस समय पूरी ब्रिटिश क्रिकेट बिरादरी इसकी गेंदबाजी की मुरीद हो गई थी. कौन था ये गेंदबाज? ये वो गेंदबाज था जिसे कभी उसकी टीम के सदस्य छूते तक नहीं थे, मैदान में उसके लिए एक ‘अछूत’ पानी लेकर जाता था. चाय भी पूरी टीम से अलग बैठकर मिट्टी के बर्तन में पीता. इसका नाम था- ‘पालवंकर बालू’. बालू पालवंकर का जन्म 1876 में ब्रिटिश सरकार के शासित बॉम्बे प्रेसिडेंसी में हुआ था। इन्होंने अंग्रेजों के इस्तेमाल किए गए बैट और बॉल से क्रिकेट खेला था।
आजादी के पहले एक दलित युवा अपनी स्पिन बॉलिंग से अंग्रेजों की नाक में दम कर चुका है. इसकी घूमती गेंदों का सामना करना अंग्रेज बैटर्स के सिरदर्द से कम नहीं था. इस दलित क्रिकेटर का नाम था बालू पालवंकर , आजादी से पहले जब छुआछूत के चलते सवर्ण समाज किसी दलित के साथ खाना तो दूर, साथ रखना भी पसंद नहीं करता था, बालू ने अपने खेल कौशल से इनके साथ उच्च स्तर का क्रिकेट खेला और कई बार अपने प्रदर्शन से देश के सम्मान के प्रतीक बने. बाद में वे राजनीति से जुड़े और देश में सामाजिक बदलाव और छुआछूत की बुराई को दूर करने में रोल निभाया.
बालू की लाइफ स्टोरी इतनी रोचक है कि उनके जीवन पर बॉलीवुड मूवी बनने जा रही है. मशहूर इतिहासकार और क्रिकेट जानकार रामचंद्र गुहा की बुक ‘ए कॉर्नर ऑफ ए फॉरेन फील्ड’ पर केंद्रित इस फिल्म को फिल्ममेकर तिग्मांशु धूलिया बनाएंगे. फिल्म में बालू के अलावा उनके तीन अन्य क्रिकेटर भाई शिवराम, गणपत और विट्ठल के संघर्ष को भी दिखाया जाएगा.