बृजभूषण मामले में एक्शन में देरी के पीछे की वजह क्या सियासी रसूख और सपा से नजदीकी हो सकती है

बृजभूषण शरण सिंह। नाम में वजन है तो कद में हनक। 6 बार सांसद रह चुके हैं। इलाके में कोई इन्हें बाहुबली कहता है, कोई सांसदजी तो कोई नेताजी। इस वजन और हनक का अंदाजा आप सेक्सुअल हैरसमेंट (पॉक्सो ऐक्ट) के केस से भी लगा सकते हैं।
पहलवान 6 महीने से सड़क से संसद तक, खाप पंचायतों से खलिहानों तक सांसद के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन इस केस में सांसद बृजभूषण का रवैया अभी भी बिल्कुल अख्खड़ और कड़क मिजाज है, वो न झुके हैं और न झुकते दिखाई दे रहे हैं। इसकी बानगी दो दिन पहले महिला पत्रकार के सवाल वाले वीडियो में भी दिखाई दे रहा है।
बृजभूषण के इस मिजाज और रवैये के पीछे की वजह पार्टी (भाजपा) का सपोर्ट बताया जा रहा है। लेकिन सूत्रों के मुताबिक भाजपा हाईकमान बृजभूषण शरण सिंह को धीरे-धीरे फना करने के फिराक में है। इसकी प्लानिंग भी हो चुकी है।
इसीलिए पार्टी उनके खिलाफ सीधे कोई ऐक्शन न लेकर, कानूनी प्रक्रिया और जनआंदोलन द्वारा बने माहौल के जरिए उन्हें कमजोर करना चाह रही है। पार्टी की इस रणनीति के पीछे की वजह भी बृजभूषण का कद और जनाधार ही है। एक बड़े भाजपा नेता कहते हैं कि पार्टी में हर किसी पर समय और परिस्थिति के हिसाब से फैसला लिया जाता है। क्योंकि यहां व्यक्ति से ज्यादा पार्टी की छवि का सवाल होता है।
सूत्र बताते हैं कि भाजपा से बृजभूषण को किनारे किए जाने की पटकथा दिल्ली पुलिस ने कोर्ट में अपनी चार्जशीट पेश करके कर दी है। इस चार्जशीट में महिला रेसलर का 6 जगहों पर यौन उत्पीड़न होने की बात है। इतना ही नहीं, बृजभूषण के खिलाफ 21 लोगों ने गवाही दी है।

सबके बयान एक जैसे हैं और सभी ने आरोपों को सही बताया है। अब इस मामले में 18 जुलाई को बृजभूषण को कोर्ट में पेश भी होना है। सांसद को सजा भी संभव है। यही वजह है कि सांसद को गुस्सा भी ज्यादा आ रहा है।
बृजभूषण सिंह 90 के दशक से राजनीति में हैं। राम मंदिर आंदोलन में भी वह शामिल थे। 1991 में वह पहली बार भाजपा से सांसद चुने गए थे। छात्र राजनीति और जन्मभूमि आंदोलन की वजह से बृजभूषण क्षेत्र में काफी पहले से लोकप्रिय थे। उनका जनाधार धीरे-धीरे इलाके में और बढ़ता गया। मौजूदा समय में बृजभूषण का यूपी की 6 से 8 लोकसभा और करीब 20 से 22 विधानसभा सीटों पर मजबूत पकड़ बताई जाती है। इनमें बलरामपुर, गोंडा, बहराइच, श्रावस्ती, अयोध्या, सिद्धार्थनगर, संतकबीर नगर आदि जिले शामिल हैं।

बृजभूषण अब तक 6 बार सांसद रह चुके हैं। उनके गोंडा-बलरामपुर और आसपास के जिलों 50 से ज्यादा स्कूल-कॉलेज भी हैं। बृजभूषण के समर्थक और विरोधी, दोनों मानते हैं कि वो कुछ सीटों पर सीधे तौर पर चुनाव को प्रभावित करने की ताकत रखते हैं।

चुनाव में वो पार्टी नहीं खुद की ताकत से प्रचार करते हैं। उनके खुद के कार्यकर्ता हैं, जो पार्टी से ज्यादा उनके प्रति समर्पित रहते हैं। यही वजह है कि भाजपा बृजभूषण पर सीधे तौर पर कोई ऐक्शन नहीं लेना चाहती है। क्योंकि आम चुनाव नजदीक है और पार्टी बृजभूषण के खिलाफ कठोर कदम उठाकर उनके और अपने काडर में गलत मैसेज नहीं जाने देना चाहती।

बृजभूषण सपा से भी एक बार सांसदी जीत चुके हैं। कुछ दिन पहले तक सियासी गलियारों में काफी चर्चा थी कि यदि भाजपा उनके खिलाफ कार्रवाई करती है, तो वो सपा का दामन थाम सकते हैं। बृजभूषण शरण की सपा से काफी नजदीकी भी है। वह 2014 चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए थे।
बृजभूषण कभी अखिलेश के खिलाफ सीधे तौर पर हमलावर भी नहीं होते हैं। दो महीने पहले बृजभूषण ने कहा था कि मैं अखिलेश यादव का धन्यवाद करता हूं, मैं उन्हें बचपन से जानता हूं, मैं उनसे बड़ा हूं। हमारे बीच राजनीतिक मतभेद भी हैं, लेकिन अखिलेश सच्चाई जानते हैं। अगर यूपी में 10 हजार पहलवान हैं, तो उसमें से 8 हजार पहलवान यादव समुदाय से हैं और समाजवादी परिवार के हैं। इसलिए अखिलेश सच्चाई जानते हैं।’
इस बयान पर जब अगले दिन पत्रकारों ने अखिलेश यादव से सवाल पूछा कि बृजभूषण शरण सिंह आपकी तारीफ कर रहे हैं? तो जवाब में अखिलेश ने पूरी बात ही बदल दी। इससे आप बृजभूषण और अखिलेश की नजदीकियों को समझ सकते हैं। इस बात से भाजपा हाईकमान भी बखूबी वाकिफ है और यही वजह है कि पार्टी बृजभूषण पर कार्रवाई करके गेंद सपा के पाले में नहीं जाने देना चाह रही है।

बृजभूषण शरण पर यदि आरोप सही साबित होते हैं और उन्हें कोर्ट से सजा सुनाई जाती है, तो वो किसी भी पार्टी में जाने की स्थिति में नहीं रहेंगे। भाजपा भी यही चाहती है। पार्टी यह भी चाहती है कि बृजभूषण खुद ही इस्तीफा दें।
यूपी में राजपूत (ठाकुर) वोटर 6-7 फीसदी तक हैं। आजादी के बाद यूपी में इस समुदाय से 5 सीएम रहे हैं। यूपी के दो ठाकुर नेता प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं। ब्राह्मणों के बाद सत्ता पर सबसे ज्यादा पकड़ ठाकुरों की ही रही है। इससे यूपी की राजनीति में ठाकुर नेताओं के कद को समझ सकते हैं।

बृजभूषण शरण सिंह की छवि भी एक कड़कमिजाज ठाकुर नेता की है। उनकी फैन फॉलोइंग भी ठीक है। भाजपा की टॉप लीडरशिप का भी यही मानना है कि यदि पार्टी बृजभूषण के खिलाफ सीधे कोई कार्रवाई करेगी तो उसके वोटबैंक पर इसका असर दिख सकता है। जो पार्टी किसी भी कीमत पर मोल नहीं ले सकती है।

बृजभूषण यूपी में स्टेट लीडरशिप के बजाय सेंट्रल लीडरशिप के ज्यादा करीब हैं। इसलिए भी उन पर आखिरी फैसला हाईकमान को ही लेना है। बृजभूषण भी पार्टी हाईकमान का जमकर हवाला दे रहे हैं। पार्टी ने कुछ दिनों तक उनके बोलने पर भी पाबंदी लगा रखी थी, लेकिन वक्त बदला, दिल्ली पुलिस ऐक्शन में आई और बृजभूषण सामने आए और अब खुलकर मुखर हैं। अब बृजभूषण इस्तीफे की बात पर कहते हैं कि ‘मोदीजी ही नहीं, अगर गृह मंत्री अमित शाह या भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी कह दें तो मैं इस्तीफा देने में देर नहीं करूंगा।’
बृजभूषण सिंह की हमेशा से अयोध्या और वहां की राजनीति में खासी दिलचस्पी रही है। ये आज से नहीं 1990 से है। जब भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी राम मंदिर आंदोलन की रथ यात्रा लेकर अयोध्या आए थे, उस वक्त बृजभूषण शरण सिंह रथ के ड्राइविंग सीट पर थे।

बृजभूषण समय-समय पर अयोध्या प्रेम और यहां के साधु-संतों के बीच अपनी पैठ की ताकत का एहसास भी करवाते रहते हैं। चाहें वह राज ठाकरे को अयोध्या आने से रोकने की चुनौती हो या पिछले महीने साधु-संतों का जमावड़ा हो।
बृजभूषण हनुमान गढ़ी मंदिर से भी जुड़े हैं। वो वहां भोजन भंडारा कराते हैं, महंतों के पैर छूते हैं, उनका आदर सत्कार करते हैं। वो नृत्य मणिराम छावनी के नृत्यगोपाल दास, लक्ष्मण किले के महंत मैथली रमण शरण के करीबी हैं।
अयोध्या पर बृजभूषण की पकड़ का अंदाजा आप इससे भी लगा सकते हैं कि जब इस साल अप्रैल में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अयोध्या आए तो बृजभूषण दोनों के साथ कंधे से कंधा मिलाते हुए नजर आए। इन सब वजहों से भी भाजपा बृजभूषण की बगावत मोल नहीं लेना चाहती है।
सीएम योगी पहलवानों के आंदोलन और बृजभूषण शरण सिंह पर लगातार खामोश ही रहे हैं। राजनीतिक जानकार इसके अलग मायने बताते हैं। कहते हैं कि यूपी और भाजपा में ठाकुर राजनीति के ये दो क्षत्रप हैं। कभी सीएम योगी आदित्यनाथ और बृजभूषण को करीबी माना जाता था। लेकिन, पिछले दिनों में दोनों नेताओं के बीच दूरी साफ दिखी। बुलडोजर एक्शन की चपेट में बृजभूषण फैमिली भी आई।
दरअसल, बृजभूषण ने यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में करीबियों के लिए टिकट मांगे थे, लेकिन उनके मन का नहीं हो सका। इसके बाद 2022 में गोंडा और बलरामपुर में बाढ़ के दौरान बृजभूषण ने जमकर योगी सरकार पर हमले किए। उन्होंने योगी सरकार और अधिकारियों को कटघड़े में खड़ा किया।
2023 की शुरुआत में भी जब योगी सरकार ने माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई शुरू की तो निशाने पर बृजभूषण भी आ गए। गोंडा में सरकारी जमीन पर कब्जा मामले में बृजभूषण के भाई शशिभूषण सिंह के बेटे सुमित सिंह के खिलाफ जालसाजी का केस दर्ज किया गया। इसमें 9 लोगों को नामजद बनाया गया। राजनीतिक जानकर कहते हैं कि भाजपा हाईकमान का ये बैलेंस गेम है। ताकि सत्ता बेलगाम न हो सके। यही वजह कि बृजभूषण हमेशा से हाईकमान के लाडले रहे हैं।