दिल्ली विधानसभा चुनाव में अब सिर्फ 25 दिन बचे हैं. सभी 70 विधानसभा सीटों के लिए एक ही दिन 5 फरवरी को वोटिंग होनी है. नतीजे 8 फरवरी को आ जाएंगे. तब यह साफ हो जाएगा कि आम आदमी पार्टी (AAP) को दिल्ली की जनता तीसरी बार सत्ता में वापस लाती है या त्रिकोणीय मुकाबले फंसी आप का बेड़ा गर्क होता है. इंडिया ब्लॉक में पड़ी फूट और कांग्रेस के भाजपा की तरह आम आदमी पार्टी का दुश्मन बन जाने के कारण अरविंद केजरीवाल की राह आसान नहीं दिख रही. इस परेशानी को केजरीवाल भी भलीभांति समझ रहे हैं. केजरीवाल की छटपटाहट उनके बोल-वचन से भी जाहिर होती है.
कांग्रेस को ‘इंडिया’ से बाहर करने की धमकी
आम आदमी पार्टी के खिलाफ कांग्रेस के आक्रामक ढंग से मैदान में उतरने के कारण अरविंद केजरीवाल की बेचैनी बढ़ी हुई है. पिछले दो विधानसभा चुनावों में केजरीवाल की राह इसलिए आसान थी कि मुकाबला सिर्फ भाजपा के साथ होता रहा है. 2014 के संसदीय चुनाव में नरेंद्र मोदी की लहर भले रही, लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने दबंगता के साथ आम आदमी पार्टी का परचम दिल्ली में लहरा दिया. तब कांग्रेस मानसिक तौर पर संसदीय चुनाव में अपनी दुर्गति से पस्त हो गई थी. सिर्फ भाजपा से ही आम आदमी पर्टी का मुकाबला था. 2020 में भी मुकाबला भाजपा और AAP के बीच आमने-सामने का था. इस बार मुकाबला त्रोकणीय हो गया है। AAP के सामने भाजपा पूरी ताकत के साथ मैदान में है तो कांग्रेस के तेवर भी अब तक मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने वाले ही दिखते हैं. इससे खफा होकर अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस को इंडिया ब्लाक से बाहर करने की धमकी दी है. उन्होंने तो 24 घंटे की समय सीमा भी तय कर दी थी, पर अभी तक न कांग्रेस झुकती दिख रही है और न केजरीवाल पीछे हटने के मूड में हैं.
सात महीने पहले संसदीय चुनाव साथ लड़े
वर्ष 2024 में जब लोकसभा के चुनाव हुए तो इंडिया ब्लाक में AAP और कांग्रेस दोनों साथ थे. यह अलग बात है कि इस साथ का कोई कमाल दिल्ली में नहीं दिखा. भाजपा ने लगातार 2014 से दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीटों पर अपना दबदबा बरकरार रखा है. 2014 में भी दिल्ली की सभी संसदीय सीटें भाजपा की झोली में चली गईं. हरियाणा विधानसभा चुनाव से आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच खटास पैदा हुई, जो दिल्ली में भी शिद्दत से नजर आ रही है. हरियाणा में AAP ने कांग्रेस से साझीदारी करने की कोशिश की, लेकिन जिद के कारण इंडिया ब्लॉक को लीड करने वाली कांग्रेस ने उसे किनारे रखा. इसका खामियाजा भी कांग्रेस को भोगना पड़ा. एक प्रतिशत से भी कम वोट के कारण कांग्रेस सत्ता से दूर रह गई. अरविंद केजरीवाल हरियाणा का हश्र देख कर ही दिल्ली में परेशान हो गए हैं.
कांग्रेस के रुख से तिलमिलाए हैं केजरीवाल
कांग्रेस के रुख से अरविंद केजरीवाल की तिलमिलाहट का आलम यह है कि उन्होंने कांग्रेस को अजय माकन जैसे लोगों के खिलाफ एक्शन लेने की पहले सलाह दी और अब उसे इंडिया ब्लाक से बाहर करने की धमकी दे रहे हैं. अजय माकन भी पीछे हटने का नाम नहीं ले रहे. उन्होंने केजरीवाल को देशद्रोही तक बता दिया है. कहा तो उन्होंने यह भी था कि वे केजरीवाल के देशद्रोही होने का सबूत भी पेश करेंगे, लेकिन इसके लिए होने वाला प्रेस कान्फ्रेंस अचानक रद कर दिया गया. सच तो यह है कि कांग्रेस भी अपनी औकात समझती है, पर उसे मुस्लिम और जाट वोटरों पर भरोसा है. कांग्रेस मान कर चल रही ह कि देश भर में जो हवा है, उसमें मुस्लिम वोटर उसके साथ खड़े दिखते हैं. हालांकि ऐसा सोचते वक्त कांग्रेस भूल जाती है कि मुस्लिम कांग्रेस को ही नहीं, बल्कि भाजपा विरोधी किसी भी पार्टी को पसंद करते हैं. अलबत्ता उनका वोट देने का पैरामीटर भाजपा को हराने वाला उम्मीदवार या दल होना चाहिए.
बंगाल के मुस्लिमों ने TMC को पसंद किया
पश्चिम बंगाल विधानसभा के पिछले चुनाव में यह साबित हो चुका है कि मुसलमान अब किसी खास दल के समर्थक नहीं रह गए हैं. उनकी पसंद इस बात पर निर्भर करती है कि भाजपा या उसकी सहयोगी पार्टी के उम्मीदवारों को कौन पार्टी हराने की स्थिति में है. पश्चिम बंगाल कांग्रेस और वामपंथियों का गढ़ रहा है. इसके बावजूद 2021 के विधानसभा चुनाव में बंगाल के मुसलमानों ने दोनों दलों को किनारे रखा और भाजपा से लोहा लेने वाली पार्टी के रूप में तृण मूल कांग्रेस (TMC) को देखा. बंगाल का वोटर दो खेमों तक ही सीमित रहा. भाजपा को बंगाल में विशुद्ध रूप से हिन्दू वोट मिले तो टीएमसी को मुसलमानों ने एकतरफा वोट किया. महाराष्ट्र में भी मुसलमान वोटों के भरोसे बैठी कांग्रेस के हाथ कुछ खास हाथ नहीं आया. इसलिए दिल्ली के मुसलमान एकतरफा कांग्रेस को ही वोट करेंगे, यह महज भ्रम है.
घबराहट में केजरीवाल दे रहे बेतुके बयान
अरविंद केजरीवाल की घबराहट अब छिपी नहीं रह गई है. वे भी जानते हैं कि मुस्लिम वोटों का AAP और कांग्रेस में विभाजन हुआ तो भाजपा की ही राह आसान होगी. यही वजह है कि वे अगर भाजपा के प्रवेश सिंह वर्मा के खिलाफ चुनाव आयोग से शिकायत कर रहे हैं तो कांग्रेस को इंडी अलायंस से बाहर करने का अल्टीमेटम जारी कर रहे हैं. इतना ही नहीं, केजरीवाल को अब पूर्वांचल के लोगों पर भी भरोसा नहीं रहा, जो दिल्ली में कम से कम ढाई-तीन दर्जन सीटों पर निर्णायक स्थिति में हैं. अब तो वे कहने लगे हैं कि भाजपा जान-बूझ कर पूर्वांचल के लोगों को दिल्ली ला रही है, ताकि उन्हें वोटर बना कर चुनावों में लाभ ले सके. पहले भी पूर्वांचल के लोगों के बारे में उनकी एक टिप्पणी से बवाल मचा था. तब उन्होंने कहा था कि बिहार-यूपी वाले पांच सौ का टिकट लेकर दिल्ली आते हैं और पांच लाख का इलाज कर चले जाते हैं.