लंबी खींचतान के बाद अब कांग्रेस में सामूहिक नेतृत्व और फैसले का दौर शुरू हो सकता है। दरअसल, पिछले दो दिनों में दो बार पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने नाराज चल रहे वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर इसका संकेत दे दिया है। गुरुवार को राहुल गांधी और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की मुलाकात हुई थी, जिसमें केंद्रीय संगठन से लेकर हरियाणा प्रदेश इकाई तक में बदलाव का संकेत दिया गया था।
शुक्रवार को असंतुष्ट नेताओं के अगुआ गुलाम नबी आजाद और पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी की मुलाकात में शेष बदलावों को लेकर चर्चा हुई। खुद आजाद की बातों से इसका संकेत मिलने लगा है कि अध्यक्ष के लिए तो चुनाव होगा ही, लेकिन हर स्तर पर सामूहिक निर्णय से ऐसे लोगों को स्थान दिया जाएगा, जो प्रदर्शन का माद्दा रखते हैं। योग्यता अहम होगी, चाटुकारिता नहीं। नीतिगत फैसलों के लिए संसदीय बोर्ड को फिर से अस्तित्व में लाया जा सकता है
पिछले दिनों कपिल सिब्बल समेत कुछ असंतुष्ट नेताओं की ओर से भले ही गांधी परिवार से मुक्ति का लगभग एलान कर दिया गया था, लेकिन अब पूरी कोशिश यह है कि गांधी परिवार की मौजूदगी में ही सामूहिक नेतृत्व को स्थान मिल जाए। कोशिश दोनों तरफ से हो रही है। यही कारण है कि मुलाकात की शुरुआत राहुल गांधी की ओर से हुई, जो हर किसी के निशाने पर हैं।
दूसरी कोशिश सोनिया गांधी की ओर से हुई, जिनमें अब भी यह क्षमता है कि लोगों को इकट्ठा जोड़कर रख सकें। शुक्रवार को सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद आजाद ने भी कहा था कि उनके नेतृत्व पर किसी को कोई एतराज नहीं है। हमारी कुछ मांगें हैं, जो पार्टी के हित में हैं। हमने वही दोहराया है
संसदीय बोर्ड के गठन की मांग पुरानी है। नीतिगत निर्णय लेने की जिम्मेदारी इसी बोर्ड पर होगी, जो यह तय करेगा कि किस मुद्दे पर पार्टी को क्या लाइन लेनी चाहिए। इससे इतर किसी भी व्यक्ति को जाने की अनुमति नहीं होगी।
राज्यों में दूसरे दलों के साथ गठबंधन करने जैसे मुद्दे भी संसदीय बोर्ड के दायरे में आ सकते हैं। ध्यान रहे कि असम चुनाव हो या फिर बंगाल का चुनाव, असंतुष्ट नेताओं की ओर से गठबंधन को लेकर सवाल खड़े किए गए थे।
सुलह की दिशा में पहला बड़ा कदम गुरुवार को राहुल गांधी ने उठाया। उन्होंने असंतुष्ट खेमे के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ बैठक की।
इस बैठक में कांग्रेस नेतृत्व की ओर से पार्टी के संकट का समाधान करने के लिए असंतुष्ट नेताओं के सामने कुछ ठोस प्रस्ताव पेश किए गए।
राहुल से मुलाकात के बाद भूपेंद्र हुड्डा सीधे गुलाम नबी आजाद के घर गए। वहां आजाद और आनंद शर्मा के साथ सुलह-समाधान के प्रस्तावों पर चर्चा हुई।
इसके बाद गुरुवार को ही शाम सात बजे आजाद के घर असंतुष्ट नेताओं की एक और बैठक हुई, जिसमें पार्टी नेतृत्व के प्रस्तावों पर गहन विचार-विमर्श हुआ।
अगस्त-सितंबर तक हो जाएगा पार्टी अध्यक्ष का चुनाव
माना जा रहा है कि पार्टी अध्यक्ष का चुनाव अगस्त-सितंबर तक हो जाएगा। गुलाम नबी आजाद ने केंद्रीय चुनाव समिति में नियुक्ति को भी निर्वाचन से जोड़ने की बात कही है। यानी हर स्तर पर चुनाव के जरिये ऐसे लोगों को लाने की कोशिश होगी, जिन पर ज्यादा से ज्यादा लोगों को भरोसा है। जो अपनी क्षमता से जमीनी हालात में बदलाव ला सकते हैं और चाटुकारिता को योग्यता नहीं माना जाएगा।