हिंद महासागार में चीन का दबदबा खत्म हो जाएगा , जिनपिंग की उड़ गई नींद

श्रीलंका ने भारत को यह भरोसा देकर कि वह उसके दुश्मनों को अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं करने देगा, चीन को उसकी हैसियत बता दी है. इसके साथ ही श्रीलंका ने अपने संदेश से साफ कर दिया है कि हिंद महासागर में अब चीन के पनडुब्बियों और वॉरशिप की बढ़ती दखलअंदाजी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. दरअसल, नई दिल्ली पहुंचे श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुर कुमार दिसानायक ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को स्पष्ट रूप से भरोसा दिया कि द्वीप राष्ट्र की धरती का भारत के हितों के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने दिया जाएगा. यह भरोसा श्रीलंका पर प्रभाव बढ़ाने के चीन की कोशिशों पर भारत की चिंताओं के बीच आया है.

श्रीलंकाई नेता ने अपने बयान में कहा कि भारतीय प्रधानमंत्री ने श्रीलंका की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की हमेशा रक्षा करने का आश्वासन दिया है. इसके बाद उन्होंने कहा, “मैंने भी प्रधानमंत्री को यह भरोसा दिया है कि हम अपनी जमीन का इस्तेमाल किसी ऐसे काम के लिए नहीं होने देंगे जिससे भारत के हितों को नुकसान पहुंचे.” दिसानायक ने कहा, “भारत के साथ सहयोग निश्चित रूप से फलेगा-फूलेगा. और मैं भारत के लिए हमारे निरंतर समर्थन का आश्वासन देना चाहता हूं.”

भारत और श्रीलंका ने अपनी साझेदारी को विस्तार देने के लिए एक रक्षा सहयोग समझौते को जल्द अंतिम रूप देने का संकल्प लिया और बिजली ग्रिड कनेक्टिविटी एवं बहु-उत्पाद पेट्रोलियम पाइपलाइन स्थापित कर ऊर्जा संबंधों को मजबूत करने का निर्णय भी लिया. अगस्त 2022 में चीनी मिसाइल और सैटेलाइट ट्रैकिंग जहाज ‘युआन वांग’ के हंबनटोटा बंदरगाह पर डॉकिंग ने भारत और श्रीलंका के बीच कूटनीतिक विवाद को जन्म दिया था.

चीन ने हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल की लीज पर अपने कब्जे में ले लिया है क्योंकि कोलंबो के लिए 1.7 बिलियन डॉलर के कर्ज के लिए सालाना 100 मिलियन डॉलर चुकाना मुमकिन नहीं था. पिछले साल अगस्त में एक और चीनी वॉरशिप कोलंबो बंदरगाह पर आकर रुका था, जिससे इस क्षेत्र में बीजिंग की गतिविधियों को लेकर चिंताएं फिर से बढ़ गईं. भारत ने हाल के वर्षों में इस द्वीप राष्ट्र में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, खासकर 2022 में राजपक्षे के सत्ता से हटने के बाद.

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