अपने पड़ोसी देशों के साथ आक्रामक नीति जारी रखते हुए चीन ने भूटान के साथ लंबे समय से चले आ रहे सीमा को विवाद सुलझाने के लिए एक समझौते (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया है। आक्रामक रवैया अपना कर अपने पड़ोसी देशों पर अपनी बात मानने के लिए दबाव बनाना चीन की फितरत है। वह इसके लिए ‘सलामी स्लाइसिंग तकनीक’ का प्रभावी तरीके से इस्तेमाल करता है। यह तकनीक डरा-धमका कर और धौंस दिखाकर विरोधी से अपनी बात मनवाने को लेकर है।
यह पहली बार नहीं है कि चीन और भूटान ने सीमा विवाद सुलझाने के लिए ऐसा प्रयास किया है। वर्षो से चीन अपने कमजोर और छोटे पड़ोसी देश भूटान की सीमा में अतिक्रमण करता रहा है। अखबार के मुताबिक चीन ने भूटान के 764 किलोमीटर क्षेत्र पर अपना दावा किया है। इसमें भूटान के पश्चिमोत्तर क्षेत्र के डोकलाम, सिनचुलुंग, ड्रामाना और शाखतो और मध्य क्षेत्र के पसामलुंग और जकारलुंग घाटी शामिल हैं।
वर्ष 2016 तक चीन और भूटान के बीच सीमा विवाद सुलझाने को लेकर 24 दौर की बातचीत हुई थी। चीन लगातार भूटान पर दबाव बनाता है कि वह अपने मध्य क्षेत्र पर दावा छोड़ दे और बदले में पश्चिमी भूटान का क्षेत्र ले ले। लेकिन भूटान उसके इस एकतरफा प्रस्ताव को सिरे से खारिज करता रहा है।
चीन में सत्तारूढ़ चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) पड़ोसी देशों के प्रति आक्रामक रवैया अपना कर न सिर्फ सीमा पर अपने दावे को मजबूत करती है, बल्कि दूसरे देशों की जमीन पर धीरे-धीरे कर कब्जा भी करती जाती है। सीपीसी की इसी रणनीति पर चलते हुए चीन ने नेपाल के हुमला क्षेत्र में भी अतिक्रमण किया है। काठमांडू पोस्ट के मुताबिक चीन ने अपनी नीति पर चलते हुए तिब्बत में अपनी सैन्य सुविधाओं को मजबूत किया है और हेलीकाप्टर और मिसाइलें तैनात की हैं।