दिसंबर में होने वाली लोकतांत्रिक देशों की वर्चुअल समिट के लिए अमेरिका ने ताइवान को भी आमंत्रित किया है। राष्ट्रपति जो बाइडन के आह्वान पर हो रही इस समिट में दुनिया के 110 लोकतांत्रिक देश हिस्सा लेंगे। अमेरिका द्वारा ताइवान को आमंत्रित किए जाने से चीन भड़क उठा है। चीन ने इस आयोजन को अमेरिका का प्रभाव बढ़ाने का तरीका बताया है।
राष्ट्रपति बाइडन की पहल पर दुनिया में लोकतांत्रिक देशों का इस तरह का सम्मेलन पहली बार होने जा रहा है। इसे वैश्विक नेतृत्व करने की अमेरिका की योजना का हिस्सा माना जा रहा है। इस सम्मेलन के जरिये अमेरिका चीन और रूस को नीचा दिखाना चाहता है। साथ ही दुनिया के ज्यादातर देशों को अपने साथ नीतिगत आधार पर जोड़ना चाहता है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने कहा है कि चीन ताइवान को लोकतंत्र के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए अमेरिकी अधिकारियों द्वारा ताइवान के निमंत्रण का कड़ा विरोध करता है। दुनिया में सिर्फ एक चीन है और पीपुल्स रिपब्लिक आफ चाइना की सरकार चीन का प्रतिनिधित्व करने वाली एकमात्र कानूनी सरकार है। झाओ ने आगे कहा कि ताइवान चीन का एक अविभाज्य हिस्सा है और वन चाइना पालिसी अंतरराष्ट्रीय संबंधों का एक व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त मानदंड है। ताइवान को चीन का हिस्सा होने के अलावा अंतरराष्ट्रीय कानून में कोई अन्य अंतरराष्ट्रीय दर्जा नहीं है।
अमेरिका के आमंत्रण का स्वागत करते हुए ताइवान के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि समिट में ताइवान का प्रतिनिधित्व डिजिटल मामलों के मंत्री आड्रे तांग और वाशिंगटन में ताइवानी राजदूत सियाओ बाइखीम करेंगे। कहा है कि ताइवान को यह सम्मान दशकों से लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों के सिद्धांतों का पालन करने की वजह से मिला है। जबकि चीन के विदेश मंत्रालय ने ताइवान को मिले अमेरिकी आमंत्रण पर कड़ा विरोध जताया है। चीनी प्रवक्ता झाओ लिजियन ने कहा है कि अमेरिका अपने हितों को मजबूत करने के लिए दुनिया को बांट रहा है। वह अपने क्षेत्रीय हितों को साधने के लिए नए-नए हथकंडे अपना रहा है। जबकि ताइवान की सरकार ने कहा है कि चीन को उससे जुड़े मामलों पर कुछ भी बोलने का अधिकार नहीं है।