चंद्रयान 2 से संपर्क टूटने के बाद भले ही करोड़ों भारतीयों के दिलों में उदासी छागई हो लेकिन इस बात पर हर किसी को गर्व है कि भारत ने जो किया वो आज तक कोई नहीं कर सका। हर भारतीय को इसरो के वैज्ञानिकों और उनकी काबलियत पर हमेशा गर्व रहेगा। जिस वक्त चंद्रयान से संपर्क टूटा वह चांद की सतह छूने से महज दो किलोमीटर दूर था। सभी के चेहरे पर इससे पहले कामयाब होने की उम्मीद साफतौर पर झलक रही थी। हालांकि मिशन कंट्रोल रूम में बैठे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चिंता की भी लकीरें साफ देखी जा सकती थी। हर कोई बस यही दुआ कर रहा था कि विक्रम अपने मुकाम पर सही से पहुंच जाए।
जिसक डर था वही हुआ
आपको बता दें कि इसरो ने विक्रम की लैंडिंग के लिए शुरुआती 15 मिनट बेहद खतरनाक बताए थे। शुरुआत में सब कुछ ठीक चल रहा था। विक्रम की गति को भी काफी हद तक कम कर लिया गया था और उसके सभी चारों इंजन भी सही से काम कर रहे थे। लेकिन बाद में अचानक से विक्रम से मिलने वाले डाटा रुक गए, और इसरो वैज्ञानिकों का डर सही साबित हुआ। इसके बाद इसरो चेयरमेन ने अपनी घोषणा में बेहद दुखी मन से कहा कि विक्रम की लैंडिंग जैसी होनी चाहिए थी नहीं हो सकी। मिशन कंट्रोल रूम का संपर्क विक्रम से टूट गया है और अब विक्रम से मिले सभी आंकड़ों की बारिकी से जांच की जाएगी।
आखिर क्या हो सकता है
विक्रम से संपर्क टूटने और उसकी लैंडिंग के बीच यह सवाल सबसे बड़ा है कि आखिर वहां पर क्या हुआ और अब क्या होगा। इसके फिलहाल कयास ही लगाए जा सकते हैं लेकिन मुमकिन है कि विक्रम को जिस गति और जिस दिशा की तरफ से चांद की सतह पर उतरना चाहिए था वह संभव नहीं हो सका। ऐसे में यदि विक्रम किसी दूसरी दिशा की तरफ से चांद की सतह पर उतरा होगा तो चांद की सतह से उसको जबरदस्त टक्कर का सामना करना पड़ा होगा। मुमकिन है कि इस टक्कर से उसको कुछ क्षति भी पहुंची हो, जो इसरो के मिशन कंट्रोल रूम से संपर्क टूटने का कारण बनी हो। ऐसे में यदि विक्रम अपने अंदर लगे कंप्यूटर्स से निर्देश पा भी रहा होगा तो भी वह शायद रोवर प्रज्ञान को चांद की सतह पर न उतार सके। आपको बता दें कि विक्रम के अंदर मौजूद प्रज्ञान को लैंडिंग के कुछ घंटो बाद चांद की सतह पर उतारा जाना था। वही चांदकी सतह पर चलकर वहां से आंकड़े एकत्रित करता।
लैंडिंग पथ से भटक गया था विक्रम
इन कयासों को लगाने की एक बड़ी वजह है। दरअसल, मिशन कंट्रोल रूम में लगे ट्रेक डाटा पर नजर डालेंगे तो पता चल जाएगा कि आखिरी समय में विक्रम अपने लैंडिंग पथ से भटक गया था। फ्लाइट पथ और लैंडिंग पथ ट्रेक डाटा या ट्रेक स्क्रीन पर आने वाली वह लकीर होती है जो तय करती है कि कोई भी चीज अपने सही रास्ते पर है या नहीं। आखिरी समय में जब विक्रम इससे अलग हुआ तभी इस बात का अंदेशा जाहिर हो गया था कि कुछ गड़बड़ होने वाली है। यह इस लिए भी सही साबित हो सकती है कि क्योंकि इसरो चेयरमेन ने अपनी घोषणा में कहा था कि विक्रम तय मानक के मुताबिक लैंड नहीं कर सका। विक्रम के लैंडिंग से पहले क्रेश होने की कोई गुंजाइश नहीं है। वहीं, आपको ये भी बता दें कि विक्रम को चांद पर मौजूद दो क्रेटर्स के बीच के मैदान में उतरना था। इसके लिए उसको उतरने से पहले मैपिंग करनी थी और सही जगह चुननी थी।
पथरीली सतह पर लैंडिंग करना बेहद खतरनाक
इस दौरान विक्रम की गति और उसका लैंडिंग पथ बेहद मायने रखता था। लेकिन लैंडिंग पथ से भटक जाने पर मुमकिन है कि विक्रम की लैंडिंग किसी ऐसे क्रेटर में हो गई हो जिसकी वजह से वह खुद को संभाल नहीं पाया हो और कहीं फंस गया हो। ऐसे में विक्रम को क्षति भी पहुंच सकती है। विक्रम की इस तरह की संभावित लैंडिंग को क्रैश लैंडिंग की भी संज्ञा दी जा सकती है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि चांद पर 30 से अधिक बड़े क्रेटर्स या गड्ढे मौजूद हैं वहीं छोटे क्रेटर्स की गिनती करना ही संभव नहीं है। चांद की सतह बेहद पथरीली और उबड़ खाबड़ है, जिसकी वजह से वहां पर कोई भी गलती नुकसानदेह साबित हो सकती है। इसको हम कुछ चित्रों के माध्यम से भी समझ सकते हैं।