सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीबीआई को विभिन्न राज्यों के अधिकार क्षेत्र में तैनात केंद्रीय अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए राज्य सरकारों की अनुमति की जरूरत नहीं है। जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने यह टिप्पणी आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को पलटते हुए की। हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामले में दो केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ सीबीआई जांच को रद्द कर दिया था। पीठ ने 2 जनवरी के अपने आदेश में कहा कि नियुक्ति की जगह पर ध्यान दिए बिना तथ्यात्मक स्थिति यह है कि वे केंद्र सरकार के कर्मचारी हैं और कथित रूप से उन्होंने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत गंभीर अपराध किया है, जो एक केंद्रीय कानून है। मामला आंध्र प्रदेश में कार्यरत केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ सीबीआई की ओर से दर्ज की गई एफआईआर का है। दोनों केंद्रीय कर्मचारियों ने सीबीआई के अधिकार क्षेत्र को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। उन्होंने याचिका में तर्क दिया था कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 (डीएसपीई अधिनियम) के तहत अविभाजित आंध्र प्रदेश राज्य की ओर से सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति विभाजन के बाद नवगठित आंध्र प्रदेश राज्य पर स्वतः लागू नहीं होती है। हाईकोर्ट ने दोनों कर्मचारियों के तर्क से सहमति जताते हुए एफआईआर रद्द कर दी और इस बात पर जोर दिया कि आंध्र प्रदेश से नए सिरे से सहमति लेना आवश्यक है। 32 पेज का फैसला लिखने वाले जस्टिस सीटी रविकुमार ने हाईकोर्ट की व्याख्या से असहमति जताई। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने सीबीआई की जांच के लिए राज्य से नए सिरे से सहमति मांगने की बात कह गलती की। सुप्रीम कोर्ट ने एक सवाल तैयार किया था। क्या सीबीआई को किसी केंद्रीय अधिनियम के तहत केंद्र सरकार के कर्मचारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए राज्य सरकार की सहमति की केवल इसलिए जरूरत है कि वह कर्मचारी किसी राज्य के क्षेत्र में काम करता है। शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा कि ऐसी सहमति आवश्यक नहीं है क्योंकि संबंधित अपराध केंद्रीय कानून के तहत हैं और इसमें केंद्रीय सरकार के कर्मचारी शामिल हैं।