सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मृतक से जुड़े करीबी रिश्तेदारों या इच्छुक गवाहों को किसी मामले में गवाही के लिए खारिज नहीं किया जाना चाहिए। कानून भी ऐसे गवाहों को अयोग्य नहीं ठहराता।जस्टिस एसए नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने कहा कि विवाहित महिला पर ज्यादातर क्रूरता की घटना उसी घर की चारदीवारी में होती है, जहां पर किसी निष्पक्ष गवाह के मिलने की संभावना न के बराबर होती है।
पीठ ने कहा, यहां तक कि यदि कोई स्वतंत्र गवाह मिल भी जाए और वह गवाही देने को तैयार भी हो, तो बड़ा सवाल यह रहता है कि पीड़ित से न जुड़े होने के कारण वह कई वजहों से गवाह नहीं बनना चाहता।
पीठ ने कहा कि यह कोई अस्वाभाविक नहीं है कि घरेलू हिंसा की शिकार अपनी वेदना अपने माता-पिता, भाई-बहन या अपने करीबी रिश्तेदार के साथ साझा करती हैं।