क्या डोनाल्ड ट्रंप को हटाया जा सकता है या उनके राजनीति करने पर लग सकती है पाबंदी

अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समर्थकों के संसद पर हमला करने के बाद लगातार मांग उठ रही है कि दंगा ‘भड़काने’ के चलते राष्ट्रपति को हटाया जाए.

वैसे भी रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप का कार्यकाल अब कुछ ही दिन का बचा है. 20 जनवरी को डेमोक्रेट जो बाइडन राष्ट्रपति के तौर पर उनकी जगह ले लेंगे.

लेकिन प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी समेत डेमोक्रेट्स चाहते हैं कि ट्रंप को उन क़दमों के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाए, जिनकी वजह से कइयों को लगता है कि 6 जनवरी की हिंसा हुई.

हालाँकि उनको हटाने में अब बहुत देर हो गई है, क्योंकि उनका कार्यकाल ख़त्म होने ही वाला है. ऐसे में डेमोक्रेट्स चाहेंगे कि उन पर प्रतिबंध लगाया जाए, जिसमें एक पूर्व राष्ट्रपति के तौर पर उन्हें मिलने वाली सुविधाओं और भविष्य में कोई पद मिलने की संभावना को रोकने जैसे प्रतिबंध शामिल हों.

कुछ तरीक़े हैं, जिनके ज़रिए राष्ट्रपति पर ऐसी कार्रवाई हो सकती है, हालांकि बहुत मुमकिन है कि ऐसा ना किया जाए.

चलिए इन पर एक नज़र डालते हैं.

25वाँ संशोधन

शीर्ष डेमोक्रेट सांसद और स्पीकर पेलोसी और सीनेट में डेमोक्रेटिक नेता चक शूमर ने उप-राष्ट्रपति माइक पेंस और ट्रंप की कैबिनेट से “फसाद के लिए उकसाने” के चलते राष्ट्रपति को हटाने की अपील की है.

पेलोसी ने सदन में एक प्रस्ताव लाने की मांग की है, जिसके ज़रिए उप-राष्ट्रपति पेंस से 25वाँ संशोधन लागू करने की मांग की जाएगी. इस पर पहला मतदान सोमवार को कराने की योजना है.

25वाँ संशोधन उप-राष्ट्रपति को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनने की उस समय अनुमति देता है, जब एक राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों को जारी रखने में असमर्थ होता है या जब वो शारीरिक या मानसिक बीमारी के कारण अपने काम में असमर्थ हो जाता है.

प्रस्ताव पास होने के बाद पेंस के पास संशोधन लागू करने के लिए 24 घंटे होंगे.

संशोधन के जिस भाग पर चर्चा हो रही है वो है सेक्शन चार, जो उप-राष्ट्रपति और कैबिनेट को बहुमत से राष्ट्रपति को अपने कर्तव्यों को निभाने में असमर्थ घोषित करने की अनुमति देता है.

उन्हें सदन की स्पीकर और सीनेट के पीठासीन अधिकारी को हस्ताक्षर करके एक पत्र देना होगा, जिसमें राष्ट्रपति को शासन के लिए अयोग्य या अपने कर्तव्यों और शक्तियों के निर्वहन में असमर्थ बताया गया होगा. उस वक़्त पेंस ख़ुद ब ख़ुद पद पर आ जाएँगे.

राष्ट्रपति को लिखित जवाब देने का मौक़ा दिया जाएगा और अगर वो विरोध करते हैं तो फिर कांग्रेस इसका फ़ैसला करेगी.

सीनेट और प्रतिनिधि सभा में राष्ट्रपति को हटाने के लिए कराए गए किसी भी मतदान में दो-तिहाई बहुमत की ज़रूरत होगी.

जब तक मामला हल नहीं हो जाता, उप-राष्ट्रपति राष्ट्रपति की जगह बने रहेंगे.

हालाँकि ऐसा कोई संकेत नहीं है कि पेंस और कम से कम कैबिनेट के आठ सदस्य संशोधन लागू करने का समर्थन करेंगे और ख़बरें हैं कि पेंस इस क़दम के ख़िलाफ़ हैं.

महाभियोग

अगर उप-राष्ट्रपति ऐसी कार्रवाई नहीं करते हैं तो पेलोसी संकेत दे चुकी हैं कि वो ट्रंप के ख़िलाफ़ महाभियोग की दूसरी कार्यवाही शुरू करने के लिए सदन बुलाएँगी.

राष्ट्रपति पर एक बार पहले भी महाभियोग चलाया जा चुका है. तब उनपर आरोप था कि फिर से राष्ट्रपति बनने की अपनी संभावना को प्रबल करने के लिए उन्होंने यूक्रेन से मदद मांगी. हालाँकि सीनेट ने उन्हें इन आरोपों से बरी कर दिया था.

ट्रंप दो बार महाभियोग का सामना करने वाले इतिहास के पहले राष्ट्रपति बन सकते हैं.

उसके लिए महाभियोग(आरोपों को) सदन में रखना होगा और एक मतदान के ज़रिए उन्हें पास कराना होगा.

मामला फिर सीनेट में जाएगा, जहाँ राष्ट्रपति को हटाने के लिए मतदान में दो-तिहाई बहुमत की ज़रूरत होगी. अगर उन्हें दोषी ठहराया जाता है, तो सीनेट में ट्रंप को दोबारा कोई सार्वजनिक पद संभालने से रोकने के लिए भी एक मतदान कराया जा सकता है.

वो 1958 के पूर्व राष्ट्रपति अधिनियम के तहत एक पूर्व राष्ट्रपति के तौर पर मिलने वाली सुविधाओं को भी खो देंगे. इनमें पेंशन, हेल्थ इंश्योरेंस और करदाताओं के ख़र्च पर सिक्योरिटी डिटेल जैसी सुविधाएँ शामिल हैं.

अमेरिका के इतिहास में ऐसी नौबत कभी नहीं आई और ऐसा लग भी नहीं रहा है कि डेमोक्रेट्स को सीनेट में इसके लिए पर्याप्त संख्याबल मिलेगा. सीनेट में उनके पास सिर्फ़ आधी सीटें हैं.

सीनेट में रिपब्लिकन नेता मिच मैककोनेल के एक सहयोगी के ज्ञापन में कहा गया है कि ऊपरी चैंबर जितनी भी जल्दी करे, वो सदन से 19 जनवरी को ही महाभियोग का कोई भी आर्टिकल ले पाएगा, इसके एक दिन बाद तो वैसे भी ट्रंप का कार्यकाल समाप्त हो रहा है.

दस्तावेज़ में कहा गया है कि सीनेट के नियमों का मतलब है कि चैंबर, ट्रंप के ऑफ़िस छोड़ने से एक घंटे तक या एक दिन बाद तक उन पर ट्रायल नहीं शुरू कर सकता.

लेकिन हाउस के वरिष्ठ डेमोक्रेट्स का कहना है कि पार्टी बाइडन के कार्यकाल के पहले 100 दिन पूरे हो जाने तक सीनेट को महाभियोग का कोई आर्टिकल नहीं भेजेगी.

तब तक बाइडन अपनी नई कैबिनेट नियुक्त कर लेंगे और कोरोना वायरस से निपटने समेत कई अहम नीतियाँ शुरू कर लेंगे. लेकिन अगर सीनेट को पहले ही महाभियोग के आर्टिकल मिल गए, तो उन्हें ये सब करने के लिए इंतज़ार करना होगा.

संवैधानिक विशेषज्ञ इस बात पर बँटे हुए हैं कि क्या एक राष्ट्रपति के पद छोड़ने के बाद भी सीनेट में महाभियोग चलाया जा सकता है.

क्या ट्रंप ख़ुद को माफ़ी दे सकते हैं?

मीडिया रिपोर्ट्स में अनाम सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप अपने सहयोगियों से कह रहे हैं कि वो अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में ख़ुद को माफ़ी देने के बारे में सोच रहे हैं.

राष्ट्रपति पहले ही कई तरह की जाँच का सामना कर रहे हैं, जिसमें न्यूयॉर्क प्रांत की वो जाँच भी शामिल हैं, जिनमें उन पर आरोप है कि उन्होंने टैक्स अथॉरिटी, बैंकों या कारोबारी सहयोगियों को गुमराह किया.

तो क्या वो ख़ुद को माफ़ी दे सकते हैं?

इसका जवाब है – हमें नहीं पता है और अब तक किसी राष्ट्रपति ने इस तरह से ख़ुद को माफ़ नहीं किया है.

क़ानून के कुछ विशेषज्ञों ने पहले इसका जवाब ना में दिया था. उन्होंने रिचर्ड निक्सन के इस्तीफ़े से पहले न्याय विभाग की ओर से जारी एक राय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि वो ख़ुद को माफ़ नहीं कर सकते हैं, क्योंकि “मौलिक नियम कहता है कि कोई भी अपने मामले में ख़ुद जज नहीं हो सकता है.”

हालाँकि अन्य ने कहा कि संविधान किसी को ख़ुद को माफ़ करने से रोकता नहीं है.

इन में से कौन-सा तरीक़ा अपनाए जाने की सबसे ज़्यादा संभावना है?

हालाँकि ये नामुमकिन है कि बहुमत सदन में महाभियोग के लिए वोट करेगा, जैसा कि दिसंबर 2019 में हुआ था. ये भी मुश्किल लगता है कि सीनेट के दो तिहाई सदस्य राष्ट्रपति को हटाने के लिए वोट करेंगे.

सिर्फ़ कुछ रिपब्लिकन सीनेटरों ने ट्रंप को चले जाने के लिए कहा है और कहा है कि वो महाभियोग के आर्टिकल पर विचार करेंगे, लेकिन किसी ने भी ये स्पष्ट रूप से नहीं कहा है कि वो उन्हें कुछ ग़लत करने का दोषी ठहराएँगे.

जहाँ तक 25वाँ संशोधन लागू किए जाने की बात है, तो उसकी भी संभावना कम ही लगती है.

हालाँकि ऐसी ख़बरें हैं कि सीनियर स्तर पर इसे लेकर बात हो रही है, डोनाल्ड ट्रंप के क़दमों का विरोध करने वाले कैबिनेट के दो सदस्य अब इस्तीफ़ा दे चुके हैं और जो बचें हैं उनके इस मसले पर एकजुट होने की संभावना कम है