पश्चिम बंगाल में गुरुवार को हुए नए घटनाक्रम में राजनीतिक रणनीतिकार व पीके के नाम से फेमस प्रशांत किशोर ने वहां की सीएम ममता बनर्जी से लंबी मुलाकात की। कहा जा रहा है कि आंध्र प्रदेश में जगनमोहन को सफलता दिलाने के बाद अब वे ममता बनर्जी के साथ काम करने को तैयार हैं। अचानक हुए इस घटनाक्रम से बिहार में सियासत तेज हो गई है। अभी प्रशांत किशोर एनडीए में शामिल जदयू में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर बने हुए हैं, जबकि ममता बनर्जी एनडीए के घोर विरोधी हैं। वहीं बिहार के राजनीतिक गलियारे में यह भी कहा जा रहा है कि पीके जल्द ही जदयू को बाय-बाय कह सकते हैं।
बाहर निकलने का बनाया रास्ता
दरअसल पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को सत्ता में बनाए रखने का कांट्रैक्ट लेकर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने जदयू से बाहर निकलने का रास्ता बना लिया है। वे जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। अंदरूनी विवाद के कारण पार्टी की गतिविधियों में शामिल नहीं हो रहे हैं। अब उनका जदयू में रहना इसलिए संभव नहीं है, क्योंकि पश्चिम बंगाल में ममता का सीधा मुकाबला भाजपा से है। जदयू के लिए भी असहज स्थिति बन सकती है कि पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तृणमूल कांग्रेस के जरिए वहां भाजपा से सीधा मुकाबला करेंगे।
खबर है कि दोनों नेताओं की मुलाकात तय हुआ कि पीके की एजेंसी आइपैक पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल की जीत के लिए रणनीति बनाएगी। वहां 2021 में विधानसभा का चुनाव होना है। हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में तृणमूल और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला हुआ था। भाजपा के सांसदों की संख्या दो से 18 पर पहुंच गई है। भाजपा की रणनीति पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने के लक्ष्य के साथ चल रही है।
नाम के लिए जदयू से जुड़े हैं
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ही पीके का जदयू से अलगाव हो गया था। चुनाव भर वे आंध्र प्रदेश में सक्रिय रहे, जहां उनकी एजेंसी वाइएसआर कांग्रेस के लिए काम कर रही थी। आंध्र में विधानसभा के अलावा लोकसभा में भी वाइएसआर कांग्रेस को शानदार कामयाबी हासिल हुई। चुनाव परिणाम के बाद जगन रेडडी ने पीके के प्रति आभार व्यक्त किया था। पिता के निधन के कारण पीके पिछले कुछ दिनों से पारिवारिक कार्यक्रम में व्यस्त थे। गुरुवार को ममता बनर्जी से मुलाकात के बाद चर्चा में आ गए।
खुद दे सकते हैं इस्तीफा
सूत्रों ने बताया कि पीके खुद जदयू से इस्तीफा दे सकते हैं, क्योंकि तृणमूल से उनका लगाव भाजपा के साथ जदयू के रिश्ते को प्रभावित कर सकता है। आंध्र विधानसभा चुनाव में भाजपा सभी 175 विधानसभा सीटों पर लड़ी थी। उसका खाता नहीं खुल पाया। उसके चार विधायक चुनाव हार गए, लेकिन पश्चिम बंगाल का मामला आंध्र से बहुत अलग है। वहां के मामले में भाजपा कतई न पसंद करेगी कि जदयू का पदधारक उसके खिलाफ काम करे।
कभी भाजपा की पसंद थे
पीके कभी भाजपा की पसंद हुआ करते थे। 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव के अलावा 2014 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा की जीत के लिए रणनीति बनाई थी। अगले साल उन्होंने बिहार में महागठबंधन और खासकर जदयू के लिए काम किया। नीतीश कुमार के पक्ष में चुनाव परिणाम आने के बाद उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दिया। लेकिन, कुछ महीने बाद ही नीतीश से उनकी दूरी बढ़ गई थी। वे दोबारा पिछले साल जदयू में शामिल हुए तो उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया। मुख्यमंत्री और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने स्वीकार किया था कि पीके को पार्टी में शामिल करने के लिए उनके पास भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का फोन आया था।
क्या बोल रहे दोनों दलों के प्रवक्ता
जदयू के प्रवक्ता डा. अजय आलोक ने कहा कि ममता बनर्जी और पीके के बीच मुलाकात और बातचीत उन दोनों का आपसी मामला है। जदयू को यह जानकारी भी नहीं है कि दोनों के बीच क्या बातचीत हुई है। इसका ब्यौरा पीके ही दे सकते हैं। भाजपा के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा कि पीके का एक व्यवसायिक संगठन भी है। वे उसी के काम से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मिले होंगे। इससे जदयू-भाजपा के रिश्ते पर कोई असर नहीं पड़ता है।
ममता के साथ पौने दो घंटे हुई बातचीत
लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में भाजपा को अच्छी सफलता मिली है। ऐसे में ममता बनर्जी को होनेवाले विधान सभा चुनाव में डर सताने लगा है। सूत्रों की मानें तो ममता की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने चुनावी नैया पार लगाने के लिए प्रशांत किशोर के साथ समझौता किया है। यह समझौता दो वर्षों का है। गुरुवार को ममता बनर्जी और प्रशांत किशोर के बीच लगभग पौने दो घंटे बातचीत हुई। मौके पर टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी भी मौजूद रहे। प्रशांत किशाेर की संस्था इंडियन पॉलीटिकल एक्शन कमिटी आगामी विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक रणनीति बनाएगी।
पीएम मोदी व सीएम नीतीश के लिए बना चुके रणनीति
प्रशांत किशोर इसके पहले साल 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के लिए सफल चुनावी रणनीति तैयार की थी। आगे 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने मुख्यीमंत्री नीतीश कुमार के लिए चुनावी रणनीतिकार की भूमिका निभाई। इस चुनाव में भी उनकी रणनीति सफल रही। हालांकि, आगे 2017 में कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश में उनकी रणनीति सफल नहीं रही, लेकिन आंध्र प्रदेश में वे एक बार फिर सफल रहे हैं। जगनमोहन के सत्ता में आने पर प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर बधाई भी दी थी।
बिहार के रहनेवाले हैं प्रशांत किशोर
- प्रशांत किशोर का जन्म बिहार के बक्सर जिले में हुआ। इनके पिता चिकित्सक थे। पिछले माह ही इनके पिता का निधन हुआ है। पीके के बड़े भाई पटना में बिजनेस करते हैं।
- ये बिहार में शुरुआती पढ़ाई के बाद इंजीनियरिंग करने हैदराबाद चले गए। पढ़ाई के बाद इन्होंने यूनिसेफ ज्वाइन किया, जहां उन्होंने ब्रांडिंग की जिम्मेदारी संभाली।
- साल 2011 में भारत वापस लौटकर प्रशांत गुजरात के चर्चित ‘वाइब्रैंट गुजरात’ आयोजन से जुड़े। वहां इनकी मुलाकात गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई।
- प्रशांत किशोर से प्रभावित नरेंद्र मोदी ने उन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने की जिम्मेदारी दी। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली भारी जीत का श्रेय प्रशांत किशोर को दिया गया।
- प्रशांत किशोर बाद में भाजपा से निराश होकर बिहार लौटे, जहां उनकी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नजदीकी बढ़ी। इसके बाद उन्होंने 2015 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए काम किया।