सियासत में किस्मत आजमाने को नौकरी छोड़ रहे नौकरशाह

प्रशासनिक एवं पुलिस सेवा के बड़े अधिकारियों का रिटायरमेंट के बाद राजनीति में उतरने का सिलसिला पुराना है। मौजूदा सरकार में ही आधा दर्जन से ज्यादा मंत्री इसी पृष्ठभूमि वाले हैं। मगर, सियासत में अपनी किस्मत आजमाने के लिए अब नौकरशाह बीच में ही नौकरी छोड़कर चुनाव में उतर रहे हैं। इस बार के लोकसभा चुनाव में ऐसे कई उम्मीदवार मैदान में हैं।

नौकरी छोड़कर चुनाव में हाथ आजमाने वाले नौकरशाहों में पहला नाम 1996 बैच की आईएएस अधिकारी अपराजिता सारंगी का है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय में संयुक्त सचिव एवं मनरेगा कार्यक्रम की प्रभारी रह चुकी सारंगी ने पिछले साल सितंबर में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी। इसके बाद नवंबर में उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया। अब सारंगी भुवनेश्वर शहरी सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं हैं।

इसी तरह हरियाणा कैडर के आईएएस अधिकारी ब्रिजेंद्र सिंह हैं। केंद्रीय कैबिनेट मंत्री वीरेंद्र सिंह के पुत्र ब्रिजेंद्र को भाजपा ने हिसार लोकसभा सीट से टिकट दिया है। ब्रिजेंद्र ने हरियाणा के मुख्य सचिव को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन भेज दिया है। इस सूची में और भी कई नाम शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के आईपीएस अधिकारी कुश सौरभ ने अपनी नौकरी छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया है। सौरभ इस बार बांसगांव सुरक्षित सीट से मैदान में हैं। इसी तरह पिछले साल सीबीआई के संयुक्त निदेशक पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले वीवी लक्ष्मीनारायण आंध्र प्रदेश के क्षेत्रीय दल जन सेवा पार्टी में शामिल हो गए हैं। वह विशाखापत्तनम से प्रत्याशी हैं। इस सीट पर 11 अप्रैल को मतदान भी हो चुका है। कश्मीर के आईएएस अधिकारी रहे शाह फैसल हालांकि इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन वह अपनी राजनीतिक पार्टी बना चुके हैं।

टिकट मिलता तो नौकरी छोड़ देते
इसके अलावा कई और अफसर ऐसे भी हैं, जो विभिन्न दलों से संपर्क में थे, लेकिन टिकट हासिल नहीं कर पाए। अगर टिकट मिल जाता तो वे भी नौकरी छोड़ देते। दरअसल, हाल के दिनों में कई नौकरशाह राजनीतिक पारी में सफल हुए हैं। इनमें पूर्व गृह सचिव आर.के. सिंह, के.जे. अल्फोंस, हरदेव पुरी, सत्यपाल सिंह, अजुर्नराम मेघवाल और सी.आर चौधरी के नाम शामिल हैं। इन्हीं से प्रेरित होकर कुछ दूसरे नौकरशाह भी राजनीति में आने को आतुर हैं।

जोखिम भी बरकरार
रिटायरमेंट के बाद राजनीति नौकरशाहों के लिए एक सुरक्षित आरामगाह साबित हो चुकी है, लेकिन नौकरी छोड़कर राजनीति में आना हर बार सही फैसला साबित नहीं होता। कुछ महीने पहले हुए छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव इसकी नजीर है। 2005 बैच के आईएएस अधिकारी ओपी चौधरी ने चुनाव लड़ने के लिए रायपुर कलक्टर के पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा।