चुनावों में महीनों पहले प्रत्याशी उतारने वाली बसपा इस बार आम चुनाव से पहले सन्नाटे में है

“न खेलब, न खेले देब…. खेलवे बिगाड़ देब” पूर्वांचल में ये कहावत बहुत प्रचलित है। कुछ ऐसा ही हाल यूपी में बसपा और मायावती का है। चुनावों में महीनों पहले प्रत्याशी उतारने वाली बसपा इस बार आम चुनाव से पहले सन्नाटे में है।
ये वही बसपा है, जो 2022 विधानसभा और 2019 आम चुनाव से पहले के चुनावों में महीनों और सालों पहले प्रत्याशी उतार देती थी। चुनाव आने तक तमाम सीटों पर 3-4 बार प्रत्याशी भी बदल देती। बड़ी-बड़ी चुनावी रैलियां करती थी। लेकिन इस बार चुनावी सरगर्मी के बीच लखनऊ स्थित बसपा का पार्टी मुख्यालय वीरान है।
पार्टी मुखिया मायावती मौन हैं। सड़कों से बसपा का नीला झंडा भी नदारद है। मैदान में बसपा कार्यकर्ता भी नहीं दिख रहे हैं। अब तक पार्टी ने एक भी चुनावी रैली नही की है, न ही प्रत्याशियों की आधिकारिक लिस्ट जारी की है।
हालांकि अब तक बसपा की ओर से चार सीटों पर प्रत्याशियों के नाम सामने आए हैं। ये सभी मुस्लिम हैं।
तस्वीर लखनऊ स्थित बसपा मुख्यालय की है। जब यूपी में चुनावी पार्टियों के कार्यालयों पर कार्यकर्ताओं की भीड़ है, तब बसपा के मुख्यालय का मेन गेट बंद है।
ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि मायावती टिकट जारी करने में इतना देर क्यों कर रही हैं? वह किस बात का इंतजार कर रही हैं? सूत्रों के मुताबिक बसपा, सपा और कांग्रेस के फाइनल लिस्ट का इंतजार कर रही है। उनके प्रत्याशी उतारने के बाद ही मायावती अपने प्रत्याशियों के नाम घोषित करेंगी।
राजनीतिक जानकार इसके पीछे जातीय और ध्रुवीकरण की राजनीति को मुख्य आधार बता रहे हैं। उनका कहना है कि मायावती मुस्लिम और दलित कार्ड खेलने के लिए वेट एंड वॉच मोड पर हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में मायावती ने मुस्लिम बहुल सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर सपा को काफी डेंट पहुंचाया था
इसके अलावा दलित वोटर्स ने एकजुट होकर बसपा को वोट किया था। यही वजह है कि विपक्षी नेता बसपा को भाजपा की बी-टीम बता रहे हैं। वहीं, बसपा के कई मौजूदा सांसदों ने बगावत कर दी। जबकि बसपा दूसरे दलों के बागियों की ओर नजर गड़ाए बैठी है।
हालांकि मायावती ने 10 मार्च को अपनी लंबी चुप्पी तोड़ी थी, लेकिन एक्स (X) पर। यहां उन्होंने लिखा कि बसपा अपने बलबूते अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ेगी। चुनावी गठबंधन और तीसरा मोर्चा बनाने की खबरें पूरी तरह गलत हैं। उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाया है कि वे ही इस तरह की अफवाहें फैलाकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दूसरे दलों में टिकट बंटवारे और उलटफेर पर बसपा की नजर है। बसपा की नजरें उन नेताओं पर भी है, जिन्हें सपा, कांग्रेस और भाजपा ने टिकट नहीं दिया है। बसपा इस इंतजार में भी है कि भाजपा, सपा, कांग्रेस में यदि टिकट के दावेदारों को टिकट नहीं मिलता है, तो उन्हें हम टिकट दे देंगे।
पिछले आम चुनाव में सपा से गठबंधन होने के चलते बसपा ने आधी से ज्यादा सीटों पर अपने प्रत्याशी नहीं उतारे थे, इस वजह इस बार उसे नए सिरे से इन सीटों पर प्रत्याशी चयन के लिए मेहनत करनी पड़ रही है।
सूत्रों के मुताबिक पिछली कई बैठकों में कई सांसदों को बुलाया तक नहीं गया है। यह वे नेता हैं, जो लगातार दूसरे दलों के संपर्क में थे। बसपा ने कोर कमेटी की बैठक में सभी 10 लोकसभा सीटों पर पर्यवेक्षकों के माध्यम से पूरा जमीनी फीडबैक भी लिया है। बसपा का पूरा फोकस मुस्लिम और दलित वोटर्स बहुल सीटों पर है।
सूत्रों के मुताबिक मायावती ने प्रत्याशियों के लिए मंडल और सेक्टर प्रभारियों के साथ बैठकें भी की हैं। पार्टी उन दावेदारों को तवज्जो दे रही है, जिन्हें बीते चुनावों में दो लाख से अधिक वोट मिले थे। पिछली बार ऐसे तकरीबन एक दर्जन चेहरे थे।
जिन सीटों पर ऐसे प्रत्याशी नहीं मिल रहे, वहां पार्टी अपने जोनल को-ऑर्डिनेटर को ही टिकट देने की रणनीति अपना सकती है। को-ऑर्डिनेटर्स ने बसपा सुप्रीमो को दावेदारों की सूची भी सौंप दी है, जिस परविचार चल रहा है।
बसपा प्रमुख अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी हैं, लेकिन हकीकत तो ये है कि अब तक किसी भी छोटे दल ने उसके साथ गठबंधन की पहल नहीं की है। अन्य दलों के बागी नेता भी बसपा में आने से कतरा रहे हैं।
2019 आम चुनाव में बसपा ने सपा के साथ गठबंधन किया था। बसपा 38, सपा 37 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, तीन सीटें रालोद को दी थीं। तब बसपा ने प्रत्याशियों की पहली लिस्ट 22 मार्च 2019 को जारी की थी। जिसमें वेस्ट यूपी की 11 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। 5 प्रत्याशी की दूसरी लिस्ट 9 अप्रैल 2019 को जारी की थी। इस बार बसपा कांशीराम की जयंती पर 15 मार्च को अपनी पहली लिस्ट जारी कर सकती है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बसपा फिलहाल अनिर्णय की स्थिति से गुजर रही है। मायावती तय नहीं कर पा रही हैं कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं करना है? 2019 से पहले के चुनाव में मायावती बड़ा शक्ति प्रदर्शन करती थीं। बड़ी-बड़ी रैलियां होती थीं। लेकिन अब बसपा इन सबसे दूर है।
बसपा के अंदर लगातार खींचतान मची हुई है। बसपा सांसद जहां लगातार भाजपा और सपा के संपर्क में हैं। वहीं, मायावती भी अपने ज्यादातर मौजूदा सांसदों को टिकट न देने का मन बना चुकी हैं। पिछले सप्ताह हुई बसपा की बैठक में कई बिंदुओं पर मायावती ने कार्यकर्ताओं को स्पष्ट संदेश और निर्देश भी दिए हैं। उसी आधार पर आगे की रणनीति तय की जा रही है।
2019 में बसपा को यूपी में 10 सीटें मिलीं थीं। इन 10 सांसदों में से अमरोहा से बसपा सांसद दानिश अली को पार्टी से निष्कासित कर दिया। जबकि गाजीपुर से बसपा के सांसद अफजाल अंसारी को सपा ने टिकट दे दिया। वहीं, अंबेडकरनगर से बसपा सांसद रहे रितेश पांडेय ने भाजपा ज्वॉइन कर लिया। भाजपा ने उन्हें टिकट भी दे दिया है। बताया जा रहा है कि बिजनौर से बसपा सांसद मलूक नागर भी पाला बदलने की तैयारी में हैं। उन्हें सपा टिकट दे सकती है।
बसपा के पास फिलहाल 6 सांसद बचे हैं। बताया जाता है कि इनमें भी कई दूसरे दलों के संपर्क में हैं। सहारनपुर से बसपा सांसद हाजी फजलुर रहमान की सपा से नजदीकियां बढ़ने की चर्चा थी। इसीलिए बसपा ने माजिद अली को सहारनपुर सीट का इंचार्ज बना दिया। बसपा में इंचार्ज को ही टिकट देने का चलन माना जा रहा है।
इस बार एक या दो सांसदों को छोड़कर किसी को भी दोबारा टिकट नहीं मिलने वाला है। नगीना से बसपा सांसद गिरीश चंद्र पर जरूर दोबारा दांव लगा सकती है। गिरीश बैठकों में शामिल भी हुए हैं।
मायावती की चुप्पी पर वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी कहते हैं कि उन्हें पता है कि आंधी चल रही है, इसलिए शांत और मौन रहना ज्यादा उचित है। दूसरी बात, इंडिया गठजोड़ में मायावती इसीलिए नहीं शामिल हो सकती हैं, क्योंकि उनकी महत्त्वाकांक्षा बहुत बड़ी है।
उन्हें प्रधानमंत्री पद की पेशकश के अलावा विपक्ष से कुछ नहीं चाहिए। उन्हें ये भी पता है कि 2024 चुनाव गठजोड़ का चुनाव नहीं है, इससे बहुत कुछ हासिल भी नहीं होने वाला है। इसलिए वह आगे राजनीति के बारे में सोच रही हैं, यानी 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही हैं।
आम चुनाव के लिए बसपा की ओर से अब तक चार प्रत्याशियों के नाम आए हैं। ये चारों ही मुस्लिम चेहरा हैं। कन्नौज से अकील अहमद पट्‌टा को उम्मीदवार बनाया है। पीलीभीत से पूर्व मंत्री अनील अहमद खां फूलबाबू को चुनावी मैदान में उतारा है। इससे पहले अमरोहा से मुजाहिद हुसैन और मुरादाबाद से इरफान सैफी को टिकट मिला है।