वक्त चाहे जैसा हो, सत्ता में रहें या न रहें पर बसपा प्रमुख मायावती पार्टी अपने तरीके से ही चलाती हैं। चुनाव करीब हैं और पार्टी में अपने-पराए की पहचान करने, किसी को अर्श से फर्श पर तो किसी को फर्श से अर्श तक ले जाने की उनकी चिर परिचित शैली सबको याद आ रही है। मायावती अपनी रणनीति बनाने में लगी हैं। एक बार फिर उनके कुछ विश्वस्त सिपहसालारों के दिन लदने लगे हैं। चाहे वो राम अचल राजभर हों या फिर लालजी वर्मा।
पुराने पन्ने पलटें तो स्वामी प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक को समय रहते बसपा प्रमुख मायावती की बेरुखी का अहसास हो गया था और उन्होंने समय रहते बसपा छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। वह फायदे में हैं और मोलभाव करके गए। राज्य सरकार में मंत्री भी हैं, लेकिन बसपा के तमाम ऐसे नेता हैं, जिन्हें मायावती ने दूध की मक्खी की तरह पार्टी से निकाल फेंका और वे देखते रह गए।
बसपा प्रमुख मायावती ने समय की चाल देखकर तमाम नेताओं को फर्श से अर्श पर पहुंचाया। इनमें बाबू सिंह कुशवाहा, नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे नेता प्रमुख हैं। अब इसी कड़ी में रामअचल राजभर और लालजी वर्मा का नाम लिया जा सकता है। मायावती ने इन सभी को फर्श से उठाया और सीधे अर्श पर पहुंचा दिया और जैसे ही मन भरा अर्श से सीधे फर्श पर उतार दिया। खास बात यह भी कि अर्श पर उतारने के साथ सीधे वह ऐसे नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा देती हैं।
मायावती के सेक्रेट्रिएट में कभी बाबू सिंह कुशवाहा की तूती बोलती थी। कुशवाहा से पार्टी के सांसद, मंत्री, विधायक तक संभलकर रहते थे। बाबू भाई का बसपा में गजब का रुतबा था। वह मायावती के कार्यक्रम से लेकर मिलने वालों की सूची तक तय करते थे। इसी हनक में बाबू सिंह कुशवाहा ने रुतबे के साथ काफी संपत्ति भी बना ली। लेकिन कहते हैं कि प्रसिद्धि बढ़ते ही नेताओं में अहंकार घर करने लगता है। उत्तर प्रदेश के दो सीएमओ बीपी सिंह और वीके आर्या की हत्या के प्रकरण के बाद मायावती नाराज हो गईं। कुशवाहा के खिलाफ शिकायतें पहले से आ रही थीं। मायावती ने अचानक निर्णय लिया, उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देने को कहा और पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। कटी पतंग बने कुशवाहा ने भाजपा भी ज्वाइन की। कुछ ही समय तक भाजपा में रह पाए और फिर निष्कासित कर दिए गए। फिर कभी पुराने रुतबे वाले दिन नहीं लौट पाए।
बसपा से निकाले जाने के बाद नसीमुद्दीन ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। कभी नसीमुद्दीन सिद्दीकी का बसपा में गजब का रुतबा था। मायावती के बाद वह दो नंबर के नेता ही नहीं बल्कि असरदार भी माने जाते थे। नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने भी इस रुतबे का फायदा उठाया, काफी संपत्ति बनाई। घोटालों, कदाचार में नाम आया। तब मायावती का नसीमुद्दीन सिद्दीकी से भी मन भर गया और उन्होंने एक दिन ऑपरेशन नसीमुद्दीन सिद्दीकी कर दिया। उसके बाद से सिद्दीकी कभी नहीं उठ पाए।
हाथरस से रामवीर उपाध्याय बसपा के बड़े और मायावती के विश्वास पात्र नेताओं में गिने जाते थे। कभी हाथरस जिला पंचायत पर भी रामवीर उपाध्याय परिवार का दबदबा रहता था। पत्नी सीमा उपाध्याय, भाई मुकुल उपाध्याय, विनोद उपाध्याय सब राज करते थे, लेकिन मायावती ने रामवीर उपाध्याय को पार्टी से निलंबित करने में अधिक समय नहीं लगाया।
हालांकि बसपा के कुछ नेता इसे मायावती की उमाकांत यादव से पुरानी नाराजगी बताते हैं। इसे नब्बे के दशक में हुए गेस्ट हाउस कांड से भी जोड़कर देखा जाता है। लेकिन मायावती 2007-2012 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थी। उमाकांत यादव बसपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीतकर सांसद बने थे। वह एक अपराधिक मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस के वांछित थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने उमाकांत को मिलने के लिए आवास पर बुलाया। उमाकांत पहुंचे तो वहां पहले से पुलिस मौजूद थी और उन्हें गिरफ्तार करके ले गई।