नई दिल्ली। महाराष्ट्र और हाल के पश्चिम बंगाल उपचुनाव के झटके के बाद अगले हफ्ते हो रहे कर्नाटक विधानसभा उपचुनाव और झारखंड चुनाव पर सबकी नजरें टिकी रहेंगी। झारखंड में बहुकोणीय लड़ाई के बीच कर्नाटक का प्रदर्शन भाजपा के मनोबल पर प्रभाव डालेगा जहां इसी हफ्ते 15 सीटों पर उपचुनाव होने हैं। यही नतीजा तय करेगा कि पिछले डेढ़ दो साल से विवादों में रहे कर्नाटक में भाजपा बहुमत की स्थिर सरकार देगी या फिर से राजनीतिक बवंडर खड़ा होगा।
चुनाव नतीजे होंगे भाजपा का शक्ति परीक्षण
झारखंड में पहले चरण का मतदान हो चुका है। 7 दिसंबर को दूसरे चरण से पहले ही कर्नाटक में उन 15 सीटों पर उपचुनाव होने हैं जहां से कांग्रेस और जदएस के बागी विधायकों ने उनकी सरकार गिरा दी थी और सत्ता दूसरी बार भाजपा के हाथ आई है। लेकिन अभी भी भाजपा विधानसभा संख्या के अनुसार बहुमत में नहीं है। नौ दिसंबर को आने वाला नतीजा ही भाजपा का शक्ति परीक्षण होगा। फिलहाल भाजपा के पास 105 सीटें है। इन 15 सीटों पर होने वाले चुनाव के बाद भाजपा को कम से कम सीत सीटें चाहिए होंगी क्योंकि दो अन्य रिक्त सीट पर फिलहाल चुनाव नहीं हो रहे हैं। लेकिन भाजपा को कोशिश करनी होगी कुल 224 की संख्या के लिहाज से कम से कम आठ सीटें जीतकर न्यूनतम 113 की संख्या तक पहुंचे।
मुख्यमंत्री येद्दयुरप्पा लगातार कर रहे हैं दौरा
यूं तो भाजपा ने वहां बागियों को ही टिकट दिए हैं जो अपने क्षेत्रों में मजबूत हैं। खुद मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा लगातार दौरा कर रहे हैं। खास कर ओल्ड मैसूर क्षेत्र की दो सीट- केआर पेटा और हुंसूर क्षेत्र में अपने पुत्र विजयेंद्र को लगाया है जो येद्दयुरप्पा का राजनीतिक प्रबंधन देख रहे हैं। ये वही विजयेंद्र हैं जो विधानसभा चुनाव के वक्त वरुणा सीट से लड़ना चाहते थे लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला। विजयेंद्र वहीं कैंप किए हुए हैं। पेटा का खास महत्व इसलिए भी है क्योंकि येद्दयुरप्पा का जन्म यहीं हुआ था। इस जीत का सांकेतिक महत्व होगा क्योंकि पहले यह जदएस का खाते में था।
कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी लगा रही जोर
सूत्रो के अनुसार कांग्रेस और जदएस इस चुनाव को एक अवसर के रूप में देख रही है। खासकर महाराष्ट्र में शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के बाद जिस तरह जदएस के नेताओं की ओर से बयान आए और यह संकेत दिया गया कि उन्हें भाजपा के साथ आने में परहेज नहीं होगा। जबकि कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व की ओर से अब पूरा जोर लगाने का संकेत दिया जा रहा है ताकि भाजपा को असहज किया जा सके। सूत्रों के अनुसार भाजपा के अंदर भी एक धड़ा ऐसा है जो शुरू से जदएस को साथ लेकर चलने की हिमायत करता रहा है। अटकलें ऐसी भी लगाई जाती रही है कि पिछले चुनाव में जदएस को सकारात्मक संदेश देने के लिहाज से कुछ सीटों पर कमजोर उम्मीदवार उतारने की बात भी हुई। लेकिन नेतृत्व ने इसे नकार दिया। हालांकि झारखंड में पुराने सहयोगी सुदेश महतो के खिलाफ उम्मीदवार न देकर भाजपा ने यही संदेश देने में संकोच नहीं किया कि चुनाव बाद स्थिति में दोनों दोस्त ही होंगे।
येद्दयुरप्पा के लिए बड़ी चुनौती
येद्दयुरप्पा के लिए जाहिर तौर पर आठ से ज्यादा सीटें जिताकर खुद को साबित करने की चुनौती है। वहीं भाजपा के लिए यह जीत स्थानीय हार जीत से बड़ा मनोबल का सवाल है। नौ दिसंबर को आने वाले नतीजे के बाद भी झारखंड में तीन चरणों का चुनाव बाकी होगा और ऐसे में यह चुनावी मनोबल से भी जुड़ा है।
ध्यान रहे कि महाराष्ट्र की तरह ही कर्नाटक मे भी भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर आई थी। भाजपा मुख्यमंत्री ने शपथ भी लिया लेकिन दोनों जगहों पर बहुमत साबित नहीं कर पाए। दोनों जगह शक्ति परीक्षण से पहले मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दिया। दोनों राज्यों में दो विरोधी खेमों ने हाथ मिलाकर भाजपा को झटका दिया। कर्नाटक में दूसरी बार मौका मिला है और बहुमत से आगे बढ़ना भाजपा के मनोबल के लिए आवश्यक शर्त है।