असम, त्रिपुरा और नगालैंड से एक-एक राज्यसभा सीट जीतने के बाद संसद के उच्च सदन में भाजपा का आंकड़ा सौ पर पहुंच गया है। 245 सदस्यों के सदन में यह बहुमत से भले ही कम हो लेकिन कई अहम अवसरों पर राज्यसभा में मतदान के वक्त के आंकड़ों को आधार माना जाए तो अब भाजपा अपने दम किसी भी विधेयक को पारित कराने के करीब पहुंच गई है।
चाहे अनुच्छेद 370 को रद करने का मामला हो या फिर तीन तलाक का या फिर कृषि कानून का, ऐसे मौकों पर भी राज्यसभा में सदस्यों की उपस्थिति दो सौ के आसपास ही रही है। जाहिर है कि खासकर पिछले तीन वर्षों में बड़े और विवादित विधेयकों को पारित कराने वाली भाजपा सरकार के लिए अब स्थिति और आसान होगी।
केंद्र में पहली मोदी सरकार के वक्त राज्यसभा में भाजपा के सदस्यों की संख्या 50 के आसपास थी। पहली बार 2017 में भाजपा राज्यसभा में नंबर वन पार्टी बनी थी जब इसने कांग्रेस के 57 के आंकड़े को पार किया था लेकिन राज्यसभा मोदी सरकार के विधेयकों के लिए अवरोध बन कर खड़ी थी जहां विपक्षी दल ताकतवर थे।
वर्ष 2019 के बाद स्थितियां तेजी से बदलनी शुरू हुईं। हालांकि तब तक भी भाजपा अपने दम पर अस्सी के आसपास ही पहुंच पाई थी लेकिन राजनीतिक संवाद इतना तेज हुआ था कि अनुच्छेद 370 को रद करने और जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा हटाने जैसा विधेयक भी विपक्षी वोट के लगभग दोगुने नंबर से पारित करा लिया गया था। तब पक्ष में 125 और विपक्ष में 61 वोट पड़े थे।
यह हालत तब थी जबकि सहयोगी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने विरोध किया था। लेकिन कांग्रेस के कुछ सदस्य टूटे थे, युवजन श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी (वाइएसआरसीपी), बीजू जनता दल (बीजद) जैसे दल साथ खड़े हुए थे। तीन तलाक के मुद्दे पर भी जदयू और अखिल भारतीय द्रविड़ मुनेत्र षड़गम (अन्नाद्रमुक) ने मतदान का बहिष्कार किया था लेकिन सरकार को 99 वोट मिले थे और मुखर विपक्ष को 84 वोट।