हलचल के बीच किसानों को खामोशी से साध रही भाजपा, समझिए सियासी दलों की रणनीति

तीन कृषि कानून को लेकर इन दिनों किसान राजनीति में चल रहे ज्वार-भाटा ने सियासी दलों को भी प्रभावित कर दिया है। भारतीय किसान यूनियन (BKU) के प्रवक्ता राकेश टिकैत के आंसुओं ने किसान आंदोलन को संजीवनी दी है। इसमें अधिकतम आक्सीजन बटोरने के लिए रालोद, सपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी उतर गई हैं। दूसरी ओर उबलती सियासत पर नजर रखते हुए भारतीय जनता पार्टी किसानों को साधने के लिए सधे पांव आगे बढ़ रही है।

फरवरी माह के दूसरे सप्ताह से प्रदेश सरकार के मंत्री गांवों में पहुंचकर चौपाल लगाएंगे। इसके साथ ही पंचायत चुनावों की जमीन पर किसानों को साधने की पूरी रणनीति बन चुकी है। बैठकों के बहाने भाजपा गांवों में डेरा डाल रही है। कैबिनेट मंत्री भूपेंद्र चौधरी पश्चिम उप्र में सहकारिता निकाय की सिलसिलेवार बैठक कर रहे हैं। जिसमें भाजपा किसानों को न सिर्फ कृषि कानून के फायदे बता रही है, बल्कि यह भी समझा रही है कि विरोधी दल किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर अपना हित साध रहे हैं।

पंजाब और हरियाणा के साथ ही पश्चिम उप्र के किसान संगठन कृषि कानून के विरोध में करीब दो माह से आंदोलनरत हैं। केंद्र सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों ने न सिर्फ मोदी सरकार को घेरा, बल्कि इसी बहाने किसानों पर भी डोरे डाले। हालांकि 26 जनवरी को नई दिल्ली में बवाल के बाद राजनीति में भारी हलचल मची। गाजीपुर बार्डर पर चौधरी राकेश टिकैत के आंसुओं ने आंदोलन को नई ताकत दे दी। मुजफ्फरनगर की महापंचायत में बड़ी संख्या में किसान गए, बल्कि रालोद के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने भी उनके बीच पहुंचकर भावनात्मक तार जोड़ा।

भाकियू अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत ने मुजफ्फरनगर में आयोजित महापंचायत में दो बार कहा कि चौधरी अजित सिंह को हराना बड़ी भूल थी, जिसे रालोद संजीवनी मानकर चल रही है। इसका पश्चिम उप्र की सियासत में बड़ा सियासी संदेश गया है। आगामी पंचायत चुनावों में किसानों के वोट से ही विधानसभा चुनावों की दिशा और दशा तय होगी। ऐसे में पहली बार पंचायत चुनावों में टिकट देने जा रही भाजपा उन्हें साधने की नई पटकथा बनाने में जुटी है।

भाजपा के रणनीतिकारों का कहना है कि पंचायत चुनावों में टिकट लेने की होड़ में आंदोलन का पारा गिरने लगेगा। पश्चिम उप्र में 450 जिला पंचायत वार्डो में पार्टी उम्मीदवार उतारेगी, जिसमें कई नए सियासी समीकरण बनेंगे। ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत और बीडीसी के चुनावों में भाजपा भले ही टिकट नहीं देगी, लेकिन उम्मीदवार सरकार का साथ पाने का प्रयास करेंगे। चुनावी दौर में प्रदेश सरकार के मंत्री गांवों में पहुंचकर चौपाल लगाएंगे, जहां किसानों का मलाल दूर करने के साथ ही उन्हें बड़े सियासी मौके देने की बात उठेगी।

पश्चिम उप्र की राजनीति मेरठ से तय होती है। भाजपा यहां खास होमवर्क कर रही है। पार्टी ने मेरठ को केंद्र मानकर एमएलसी चुनावों में बड़ी जीत दर्ज की। यहां से किसान आंदोलन पर भी नजर रखी जा रही है। भाजपा ने प्रदेश में दो सह संगठन मंत्री नियुक्त किए हैं, जिनमें से एक यानी कर्मवीर मेरठ में रहेंगे। यहां पर क्षेत्रीय इकाई मुख्यालय और संघ मुख्यालय भी है, साथ ही प्रभारी के रूप में कद्दावर नेता पंकज सिंह को जिम्मेदारी दी गई है। प्रदेश इकाई के करीबी जेपीएस राठौर क्षेत्रीय प्रभारी बनाए गए हैं।

विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार को घेरना शुरू किया, तो जवाब में भाजपा ने केंद्रीय मंत्रियों और कद्दावर नेताओं की सभी क्षेत्रों में रैली कराई। अब, भाजपा जमीन पर आंदोलन की थाह लेने में जुटी है। 28 और 29 जनवरी को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने हापुड़, मेरठ, मुजफ्फरनगर व सहारनपुर पहुंचकर किसानों की नब्ज टटोली। पार्टी के नेता कृषि कानून की पैरवी तो कर रहे हैं, लेकिन किसानों के आंदोलन पर नकारात्मक टिप्पणी बिल्कुल नहीं कर रहे। पंचायत चुनावों की रणनीति के बहाने भाजपा ने संगठन और सरकार के दिग्गजों को गांव में चौपाल लगाकर विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लाभाíथयों से संवाद करने के लिए कहा है। 

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आदर्श कुमार

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