22 राज्यों से ज्यादा मतदाता निकाय चुनाव में, भाजपा ने 350 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे

यूपी में नगर निकाय के 14,684 पदों पर चुनाव हो रहे हैं। इन्हीं में 17 महापौर, 200 नगर पालिका अध्यक्ष, 545 नगर पंचायत अध्यक्ष और 1420 पार्षदों के चुनाव भी हैं। चुनाव तो नगर निकाय के हैं, लेकिन ये 2024 आम चुनाव से पहले यूपी की 80 लोकसभा सीटों का सेमीफाइनल भी है। इस चुनाव के रिजल्ट बता देंगे कि यूपी 2024 में दिल्ली के सिंहासन पर जनता किसे विराजने का मन बना रही है। तो इस बार की संडे बिग स्टोरी में पढ़िए… 80 सीटों का सेमीफाइनल।
निकाय चुनाव में सवर्ण वोटर्स भाग्य विधाता हैं, क्योंकि 17 नगर निगम में 11 में सवर्ण वोटर्स 50% से ज्यादा हैं। वहीं, मुस्लिम वोटर्स निकाय में गेमचेंजर हैं। इसीलिए सभी पार्टियों ने मुस्लिमों पर फोकस किया है। यहां तक भाजपा ने 350 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। बसपा ने 64%, कांग्रेस-सपा ने 23%-23% मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिए हैं।
निकाय चुनाव की अहमियत इस बात से भी समझ सकते हैं कि सीएम योगी पिछले 6 दिन से ताबड़तोड़ जनसभाएं कर रहे हैं। वह अब तक 75 में से 20 जिलों में चुनावी रैली कर चुके हैं। दोनों डिप्टी सीएम, सभी मंत्री, विधायक, सांसद भी मैदान में हैं।
यूपी में 2022 विधानसभा चुनाव तक कुल 15 करोड़ वोटर्स थे। इस निकाय चुनाव में 4.32 वोटर्स वोट डालेंगे। इसमें 2.02 करोड़ महिलाएं, 2.29 पुरुष हैं। यूपी में निकाय चुनाव के वोटर्स देश के 22 राज्यों के कुल वोटर्स से ज्यादा हैं। यानी सिर्फ देश के 8 राज्यों में वोटर्स, यूपी के निकाय चुनाव के मतदाताओं से ज्यादा हैं। यूपी में निकाय चुनाव के ये 4.32 करोड़ वोटर्स करीब 150 विधानसभा सीटों को कवर करते हैं।
निकाय चुनाव में पहले फेज की वोटिंग 4 मई और दूसरे फेज की 11 मई को है। राज्य की चारों प्रमुख पार्टियां भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस की साख दांव पर है। यूपी में हर 5 साल में निकाय चुनाव आम चुनाव के ठीक पहले होता है। शहरी निकाय चुनाव में जिस भी दल की जीत होती है, आम चुनाव में वही दल दिल्ली की राजनीति के केंद्र में होता है। इसीलिए इस बार का यूपी निकाय चुनाव 2024 का सेमीफाइनल माना जा रहा है।

नगर निकाय चुनाव में सबसे ज्यादा प्रतिष्ठा भाजपा की दांव पर लगी है। क्योंकि शहरी इलाके हमेशा से भाजपा के गढ़ रहे हैं। पिछली बार भाजपा का नगर निकाय चुनाव में बेहतर प्रदर्शन था, लेकिन नगर पालिका और नगर पंचायत में पिछड़ गई थी।

भाजपा को सपा और निर्दलीयों से कड़ी टक्कर मिली थी। नगर पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा से दो गुना ज्यादा निर्दलीय जीते थे। इस बार बसपा और कांग्रेस सीधे चुनावी मैदान में हैं। विधानसभा में सपा का प्रदर्शन अच्छा रहा है, इसलिए भाजपा के सामने इस बार चुनौती भी बड़ी है
2017 के निकाय चुनाव में यूपी में मेयर की 16 सीटें थीं। भाजपा इन 16 में से 14 नगर निगम में अपना मेयर बनाने में कामयाब रही थी। मेरठ और अलीगढ़ में बसपा के मेयर बने थे। इस बार शाहजहांपुर नया नगर निगम बना है, इस वजह से 17 नगर निगम सीटों पर मेयर चुनाव हो रहे हैं।
भाजपा के लिए सबसे कड़ी चुनौती नगर पालिका और नगर पंचायत सीटों पर है। नगर पालिका चेयरमैन की 200 सीटों और नगर पंचायत अध्यक्ष की 545 सीटों पर चुनाव होने हैं। इनमें से 20% सीटें मुस्लिम बहुल हैं। पार्टी इन सीटों पर जीत का नया फॉर्मूला तलाश रही है।
पार्टी ने आधी आबादी यानी महिला वोटर्स पर फोकस बढ़ाया है। चूंकि निकाय चुनाव में 37 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इसलिए पार्टी ने महिला मोर्चा को काफी पहले से काम के लिए जमीन पर उतार रखा है।
भाजपा महिलाओं के लिए ‘सहभोज’ का आयोजन कर रही है। इस सहभोज में मुस्लिम और दलित महिलाओं को खास तौर कर बुलाया जा रहा है। भाजपा मुस्लिम महिलाओं को जोड़ने के लिए ट्रिपल तलाक बिल के बारे में उन्हें जागरूक कर रही है।
निकाय चुनाव में पहली बार भाजपा ने तकरीबन 350 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। इनमें नगर निगम में पार्षद उम्मीदवार, नगर पालिका में सभासद, नगर पंचायत में अध्यक्ष पद के उम्मीदवार तक शामिल हैं। जिन जिलों में मुस्लिम कैंडिडेट उतारे हैं, उनमें प्रयागराज, वाराणसी, गोरखपुर, लखनऊ, झांसी, आगरा, फिरोजाबाद और मथुरा नगर निगम शामिल हैं।
पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी नगर निगम में भी भाजपा ने 4 वार्ड में मुस्लिमों को पार्षद टिकट दिए हैं। वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के क्षेत्र गोरखपुर में भी पार्षद का टिकट मुस्लिम समाज के लोगों को दिया गया है।
भाजपा का खास फोकस पसमांदा मुस्लिम समाज पर है, क्योंकि यूपी में 2024 के लिए भाजपा ने मिशन 80 का लक्ष्य रखा है। इसीलिए भाजपा लगातार पिछले कई महीनों से पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने की कवायद में लगी रही, जिसके लिए पहले पसमांदा संवाद सम्मेलन, पीएम मोदी के मन की बात का उर्दू संस्करण, ईद के मौके पर इफ्तारी और मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में लाभार्थियों के साथ संवाद कर इस समुदाय को जोड़ने की कवायद की है।