बिमल रॉय सिनेमा के एक ऐसे फिल्मकार जिन्हें अलग और खास तरह की फिल्में बनाने के लिए जाना जाता था। उन्होंने अपनी फिल्मों से न केवल बड़े पर्दे पर अमिट छाप छोड़ी बल्कि कई कलाकारों को खास पहचान भी दिलाई। 12 जुलाई 1909 को बांग्लादेश के ढाका में पैदा हुआ बिमल रॉय हिंदी सिनेमा के उन फिल्मकारों में से एक रहे हैं जिन्होंने सिनेमा में अपना खास योगदान दिया है।
बिमल रॉय ने दो बीघा जमीन, परिणीता, सुजाता और बंदिनी सहित कई फिल्मों के जरिए ने विभिन्न सामाजिक मुद्दों को उठाया। बिमल रॉय की फिल्मों से हाल ही में दुनिया को अलविदा कह चुके दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार ने हिंदी सिनेमा में अपनी खास पहचान बनाई। दिलीप कुमार ने बिमल रॉय की फिल्म देवदास और मधुमति में काम किया। इतना ही नहीं फिल्म मधुमति उनके करियर की ऐसी फिल्म रही जिसने हिंदी सिनेमा के इतिहास नया रिकॉर्ड दर्ज किया।
फिल्म ‘मधुमती’ साल 1958 को रिलीज हुई थी। यह अपने दौर से आगे की फिल्म कही जा सकती है, क्योंकि इसने बाद के दशकों में तमाम कलाकारों और फिल्मकारों को प्रेरित किया है। भारतीय सिनेमा के बेहतरीन निर्देशकों में शुमार बिमल रॉय ने इसका निर्देशन किया था। दिलीप कुमार, वैजयंती माला और प्राण ने मुख्य किरदार निभाए थे। ‘मधुमती’ से जुड़े कई पहलू ऐसे हैं, जो इसे भारतीय सिनेमा की फ्लैगबेयरर फिल्म बनाते हैं।
फिल्मफेयर अवॉर्ड्स के इतिहास में मधुमती उन फिल्मों में शामिल है, जिसने सबसे अधिक पुरस्कार जीते हैं। छठे फिल्मफेयर अवॉर्ड्स समारोह में इसे 9 अवॉर्ड्स मिले थे। यह रिकॉर्ड 37 साल बाद शाहरुख और काजोल की फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे’ ने तोड़ा, जिसे कुल 10 अवॉर्ड्स मिले थे। छठे नेशनल अवॉर्ड्स समारोह में मधुमती को बेस्ट फीचर फिल्म इन हिंदी के लिए प्रेसीडेंट के सिल्वर मेडल से नवाजा गया था। मधुमती को बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज केटेगरी में एकेडमी अवॉर्ड्स के लिए भी भेजा गया था, मगर नॉमिनेट नहीं हो सकी।
बिमल रॉय की फिल्में आज भी क्लासिक मानी जाती हैं और सिनेमा के विद्यार्थियों के लिए एक इंस्टीट्यूट की तरह हैं। आपको यह बात जान कर हैरानी होगी कि उस दौर में भी बिमल रॉय एक कलाकार के साथ बकायदा दो फिल्मों की डील किया करते थे और वह भी बकायदा राइटिंग कांट्रैक्ट के साथ। बिमल रॉय को उस दौर में बाकी निर्देशक इन कारणों से भी तवज्जो देते थे क्योंकि उन्होंने फिल्मों में एक्टिंग का स्टाइल भी बदला था। उन्होंने थियेरिटकल मेथेड को बदल कर नेचुरल एक्टिंग पर जोर दिया था।