लोकसभा में सीए, सीएस और आइसीडब्ल्यूए संबंधी विधेयक मंजूर, बदलावों से तीनों निकायों की स्वायत्तता नहीं होगी प्रभावित

लोकसभा ने बुधवार को चार्टर्ड अकाउंटेंट, कास्ट अकाउंटेंट और कंपनी सचिवों के संस्थानों के कामकाज में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण विधेयक को मंजूरी दे दी। केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि परिवर्तन इन निकायों की स्वायत्तता को प्रभावित नहीं करेंगे। चार्टर्ड एकाउंटेंट्स, कास्ट एंड व‌र्क्स अकाउंटेंट्स और कंपनी सेक्रेटरी (संशोधन) विधेयक संबंधित संस्थानों की अनुशासनात्मक समितियों के पीठासीन अधिकारी के रूप में गैर-चार्टर्ड एकाउंटेंट (सीए), गैर-लागत लेखाकार और गैर-कंपनी सचिव की नियुक्त को सुगम करेगा है।
ये तीन संस्थान, इंस्टीट्यूट आफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स आफ इंडिया (आइसीएआइ), इंस्टीट्यूट आफ कास्ट अकाउंटेंट्स आफ इंडिया (पहले आइसीडब्लूएआइ के नाम से जाना जाता था) और इंस्टीट्यूट आफ कंपनी सेक्रेटरीज आफ इंडिया (आइसीएसआइ) हैं।

वित्त और कारपोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण ने विधेयक पेश करते हुए कहा कि इस संशोधन से तीनों संस्थानों की स्वायत्तता का उल्लंघन नहीं होगा। इसके बजाय, यह आडिट की गुणवत्ता को बढ़ाएगा और देश के निवेश के माहौल में सुधार करेगा। उन्होंने कहा कि संशोधन, संस्थानों को अधिक जिम्मेदार और जवाबदेह बनाएंगे और उन्हें वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। उन्होंने जोर देकर कहा कि सभी हितधारकों को आडिट स्टेटमेंट पर अधिक विश्वास होना चाहिए।
बिल, जो चार्टर्ड अकाउंटेंट्स एक्ट, 1949, कास्ट एंड व‌र्क्स अकाउंटेंट्स एक्ट, 1959 और कंपनी सेक्रेटरीज एक्ट, 1980 में संशोधन करता है, विपक्षी सदस्यों द्वारा पेश किए गए संशोधनों को खारिज करने के बाद निचले सदन द्वारा पारित किया गया।

अन्य बातों के अलावा, बिल कारपोरेट मामलों के मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में एक समन्वय समिति के गठन का प्रविधान करता है। इसमें तीनों संस्थानों के प्रतिनिधि होंगे। मंत्री ने कहा कि इससे पहले तीनों संस्थानों ने एक समन्वय समिति गठित करने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन प्रस्ताव पर अमल नहीं हो सका।
वित्त मंत्री ने कहा कि समिति संस्थानों के संसाधनों के प्रबंधन में मदद करेगी। आइआइएम और आइआइटी में भी समन्वय समितियां हैं। उन्होंने कहा कि विधेयक संस्थानों में फमरें के पंजीकरण का भी प्रविधान करता है। इससे भारतीय लेखा फर्मो के बड़े होने का मार्ग प्रशस्त करने में मदद मिलेगी। इसमें कदाचार के दोषी पाए गए भागीदारों और फमरें के लिए जुर्माने की राशि बढ़ाने का भी प्रस्ताव है।