लोकसभा में हुआ अपराधियों का बायोलाजिकल सैंपल इकट्ठा करने का विधेयक पेश, तिलमिलाया विपक्ष

विपक्षी दलों के भारी विरोध के बीच पुलिस को अपराधियों का बायोलाजिकल डाटा लेने और संरक्षित करने का अधिकार देने का विधेयक लोकसभा में पेश हो गया। विपक्ष का कहना था कि विधेयक संविधानप्रदत मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मानवाधिकार के भी खिलाफ है। वहीं सरकार की ओर से गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी ने बदलते दौर के हिसाब से कानून में नए प्रावधानों की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि इससे अपराधियों के खिलाफ त्वरित और सटीक कार्रवाई सुनिश्चित हो सकेग
दंड प्रक्रिया शिनाख्त विधेयक सोमवार को लोकसभा को लोकसभा में पेश हुआ तो विपक्ष हमलावर था। विपक्ष का कहना था कि विधेयक सदन में विचार के लिए स्वीकार्य करने के योग्य ही नहीं है। विधेयक को पेश करने का विरोध करते हुए कांग्रेस के मनीष तिवारी ने कहा कि यह आजादी का मौलिक अधिकार सुनिश्चित करने वाले संविधान के अनुच्छेद 20(3) और 21 के खिलाफ है
उन्होंने आजादी के बाद से विभिन्न हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि पुलिस किसी आरोपी की मर्जी के खिलाफ बायो लाजिकल सैंपल नहीं ले सकती है और यह व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। तृणमूल कांग्रेस को सौगत राय, कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी और आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन ने भी इन्हीं तर्कों के साथ विधेयक का विरोध किया
सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक के बीच अधीर रंजन चौधरी ने लखीमपुर खीरी की घटना की ओर इशारा करते हुए कह दिया कि गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी का भी फिं‍गर प्रिंट लिया जाना चाहिए। इसके जवाब में टेनी ने चुनौती देते हुए कहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान वे अपने सारे रिकार्ड चुनाव आयोग के सामने पेश कर चुके हैं और यदि उनके खिलाफ एक भी केस हो या उन्हें किसी थाने या जेल में एक मिनट के लिए भी रखा गया हो, तो वे राजनीति से सन्यास ले लेंगे

विपक्ष की आशंकाओं को खारिज करते हुए अजय मिश्रा टेनी ने बताया कि मौजूदा बंदी शिनाख्त कानून 1920 है। इस कानून के तहत सिर्फ सजायाफ्ता कैदियों का फिं‍गर प्रिंट और फुट प्रिंट लेने का प्रविधान है जबकि 102 सालों में अपराध के तरीके और अपराधियों की गतिविधियां काफी बदल चुकी हैं। 1980 में विधि आयोग ने भी इस कानून में बदलाव की जरूरत बताई थी, लेकिन उसके बावजूद 42 सालों तक कुछ नहीं किया गया
इसलिए पुलिस को बदलते दौर से अपराधों की जांच और अपराधियों को सजा सुनिश्चित कराने के लिए विशेष प्रावधानों की जरूरत है, जिसे यह विधेयक पूरी करता है। उनके अनुसार विधेयक लाने के पहले पुलिस अनुसंधान व विकास ब्यूरो ने सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों से राय मशविरा किया था और उनकी सहमति के साथ ही इसे तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि महिलाओं और बच्चों के साथ अपराधों के अलावा सिर्फ सात साल से अधिक सजा वाले मामले में अपराधियों के बायोलाजिकल सैंपल लेने का प्रविधान किया गया ह

इसके बावजूद विपक्ष विधेयक के पेश किये जाने के खिलाफ अड़ा रहा और मत विभाजन की मांग की। रोचक तथ्य यह है कि उस वक्त सत्तापक्ष के सांसदों की संख्या अधिक नहीं थी लेकिन घंटी और उसके बाद सदन से बाहर मौजूद सत्तापक्ष के सांसदों को आगाह किया गया तो फटाफट संख्या जुटती चली गई। सरकार 58 के मुकाबले 120 सदस्यों के समर्थन के साथ विधेयक पेश करने में सफल रही।