उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की जबरदस्त वापसी हुई है। भाजपा गठबंधन ने 273 सीटें हासिल की हैं और अकेले भगवा दल को ही 255 सीटें मिली हैं। साफ है कि 5 साल के शासन की एंटी-इनकम्बैंसी ऐसी नहीं थी कि वह हार जाए। यही नहीं सीटों का आंकड़ा भले ही 2017 के मुकाबले कम हो गया है, लेकिन भाजपा के वोट प्रतिशत में करीब 2 फीसदी का इजाफा हुआ है। भाजपा को 41 फीसदी से ज्यादा वोट मिला है, जो 2017 में 39 पर्सेंट ही था। यही नहीं सपा का वोट भी 22 फीसदी से बढ़कर 32 तक आ गया है, जो उसका एक रिकॉर्ड है। इससे पहले सबसे ज्यादा 29 फीसदी वोट शेयर सपा को 2012 में मिला था, जब उसने बहुमत के साथ सरकार बनाई थी। इन आंकड़ों से साफ है कि यह चुनाव पूरी तरह से दो ध्रुवीय हो गया और पूरी लड़ाई भाजपा और सपा के बीच ही थी, लेकिन अंत में फायदा भगवा दल को ही मिल गया। विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा को वोट शेयर में यह फायदा बसपा की कमजोरी के चलते मिला है। हालांकि इसका एक उलटा असर सीटों पर दिखा है, जहां मुकाबला दो ध्रुवीय होने की वजह से उसकी सीटें कम हो गईं।
सपा को 32 फीसदी के रिकॉर्ड वोट शेयर के बाद भी सीटें उतनी ज्यादा नहीं मिली हैं। वहीं, भाजपा को लगभग उतना ही वोट शेयर पर मिला, फिर भी सीटें घट गईं। इसकी वजह यह थी कि बसपा हद से ज्यादा कमजोर हो गई और कई सीटों पर सपा को जीत मिल गई। मुस्लिम बहुल पश्चिम उत्तर प्रदेश की जिन सीटों पर बसपा को बड़ा वोट मिला था, वहां इस बार वह मामूली प्लेयर के तौर पर ही नजर आई। सहारनपुर, शामली, संभल, मुजफ्फरनगर, आजमगढ़ जैसे जिलों में बसपा बेहद कमजोर नजर आई और इसी के चलते सपा गठबंधन को कई सीटों पर जीत मिल गई। हार और जीत से इतर भी देखें तो सपा भले ही सरकार से फिर बाहर रहेगी, लेकिन वोट शेयर के मामले में वह बड़ी गेनर रही है। इसके अलावा बसपा को अपने इतिहास की सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। 2007 में सत्ता में रहने वाली बसपा जब 2012 में हारी थी, तब भी उसका वोट 25 फीसदी से ज्यादा था। यही नहीं 2017 में तो उसका वोट सपा से भी ज्यादा 22 फीसदी था, लेकिन 2022 के चुनाव उसके लिए बड़ी निराशा लेकर आए। एक तरफ 403 सीटों वाले प्रदेश में उसे महज एक ही सीट मिली है तो वहीं दूसरी तरफ वोट प्रतिशत में 10 फीसदी की गिरावट आई और यह 12 पर्सेंट ही रह गया। एक तरफ बसपा 10 फीसदी घट गई तो दूसरी तरफ सपा उतना ही आगे निकली और रिकॉर्ड वोट हासिल किया।