लंबे अर्से से राजनीतिक चुनौतियों के चक्रव्यूह में घिरी कांग्रेस को राजस्थान में सचिन पायलट की बगावत से उपजे ताजा संकट ने पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में जल्द व्यापक बदलाव के लिए सोचने पर बाध्य किया है। पार्टी की गंभीर चुनौतियों के मद्देनजर ही पायलट प्रकरण का बवंडर थामने के बाद कई राज्यों में ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर संगठन में भी बड़े बदलाव होंगे, जिसका अंदरूनी खाका तैयार करने की पहल शुरू कर दी गई है। संगठन में होने वाले इन बदलावों में जाहिर तौर पर राहुल गांधी की राजनीतिक रीति-नीति की परोक्ष या प्रत्यक्ष छाप होगी, जो देर-सबेर कांग्रेस की कमान फिर संभालेंगे
पार्टी सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस संगठन के प्रस्तावित नये ढांचे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सियासी लड़ाई में ‘नरम’ रुख की पैरोकारी करने वाले चेहरों को तवज्जो मिलने की गुंजाइश बेहद कम है। राहुल गांधी को दुबारा कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सौंपने के उचित समय को लेकर पार्टी की दुविधा अभी खत्म नहीं हुई है। ऐसे में पार्टी के अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी अभी कुछ और समय तक पद पर रह सकती हैं, लेकिन एआइसीसी संगठन में बड़े बदलाव तो लगभग तय माने जा रहे हैं। संगठन में होने वाले इन बदलावों में जाहिर तौर पर राहुल गांधी की राजनीतिक रीति-नीति की परोक्ष या प्रत्यक्ष छाप होगी। इस लिहाज से राज्यों और एआइसीसी दोनों में जहां युवा चेहरों को तवज्जो मिलेगी। वहीं, कई पुराने नेता किनारे किए जाएंगे। पार्टी में चर्चा गरम है कि पीएम मोदी के खिलाफ सीधे राजनीतिक हमला करने से परहेज कर अपनी सियासत आगे बढ़ाते रहे कई बड़े पार्टी नेताओं की कांग्रेस संगठन से विदाई तय है। कर्नाटक में डीके शिवकुमार को अध्यक्ष और गुजरात में युवा हार्दिक पटेल को प्रदेश कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर पार्टी नेतृत्व ने इसका पुख्ता संदेश भी दे दिया है। इन दोनों ने अपने सूबों में भाजपा के खिलाफ न केवल आक्रामक जंग लड़ी है, बल्कि जेल तक गए हैं। इसी तरह कई बड़े चेहरों के बावजूद उत्तरप्रदेश में अजय कुमार लल्लू कांग्रेस नेतृत्व के भरोसे पर इसलिए खरा उतर रहे, क्योंकि वे सत्ता के डंडों के बावजूद सूबे की भाजपा सरकार के खिलाफ सियासी जंग में डटकर मुकाबला कर रहे हैं।
पार्टी में इस पर कोई संदेह नहीं कि देर-सबेर राहुल गांधी ही कांग्रेस की कमान फिर संभालेंगे। ऐसे में पीएम मोदी पर सीधे हमला नहीं करने की राहुल की रणनीति पर बार-बार सवाल उठाते रहे पार्टी नेताओं के लिए मौजूदा ढांचे में बने रहना मुश्किल होगा। सचिन पायलट के भाजपा से सियासी साठगांठ करने की वजह से ही करीबी दोस्ती के बावजूद राहुल ने पायलट को मनाने की एक सीमा से ज्यादा कोशिश नहीं की। मध्यप्रदेश के बाद राजस्थान में पायलट के सहारे तोड़फोड़ के जरिये सत्ता पलटने की कोशिशों को कांग्रेस अपने अस्तित्व पर गंभीर प्रहार की भाजपा की राजनीतिक कार्ययोजना का हिस्सा मान रही है।
शीर्ष संगठन में युवा पीढ़ी की नुमाइंदगी कर रहे एक कांग्रेस पदाधिकारी ने कहा कि जब सत्ताधारी पार्टी विपक्ष का अस्तित्व मिटाने के लिए राजनीतिक लड़ाई की बजाय विधायकों की तोड़फोड़, इनकम टैक्स, इडी के छापे और सीबीआई जैसी सरकारी एजेंसियों का दुरूपयोग करने की कार्रवाई कर रही हो तब नरम या मध्यमार्ग की सियासत का विकल्प ही कहां है?’ पूर्वी लद्दाख में चीनी घुसपैठ, कोरोना महामारी के बढ़ते कहर, अर्थव्यवस्था और रोजगार के धराशायी होने के मुद्दों को लेकर राहुल जिस तरह सीधे पीएम मोदी की नीतियों पर गंभीर सवाल उठा रहे, उसे देखते हुए साफ है कि नरमी की पैरोकारी करते रहे नेताओं के लिए कांग्रेस संगठन में अपनी जगह बचाना मुश्किल होगा।