बिहार में बड़ा राजनीतिक उलटफेर! नीतीश की खामोशी के क्या मायने? तेजस्वी का नया दांव ?

बिहार की राजनीति करवट ले रही है। भाजपा अपने हिन्दुत्व के एजेंडे पर चलेगी। समाजवादी विचारधारा के दो प्रमुख दल अपनी नई राजनीतिक लाइन तय करने में जुट गए हैं। जेडीयू नेता और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने मुसलमानों पर को लेकर जो बयान दिया है या उनसे पहले सीतामढ़ी के सांसद देवेश चंद्र ठाकुर ने जो लोकसभा चुनाव के बाद कहा था, उससे जेडीयू की नई राजनीतिक धारा का अंदाज लगता है। दोनों ने बयान सार्वजनिक तौर पर दिया है। नीतीश कुमार खामोश हैं। इससे यही लगता है कि जेडीयू भी आने वाले समय में भाजपा की हिन्दुत्व की लाइन पर ही चलेगी। वक्फ बोर्ड संशोधन बिल पर जेडीयू का अब तक जैसा रुख रहा है, उससे भी यही संकेत मिलता है।

आरजेडी भी बदल सकता है अपनी लाइन

उपचुनाव में आरजेडी अपनी दो सीटें नहीं बचा सकी। सहयोगी सीपीआई (एमएल) को भी तरारी सीट बचाने में आरजेडी मददगार साबित नहीं हुआ। रामगढ़ में आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह अपने बेटे को नहीं जिता सके तो बेलागंज में राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की कवायद भी पार्टी उम्मीदवार के काम नहीं आईं। आरजेडी का पारंपरिक मुस्लिम-यादव (एम-वाई) समीकरण और तेजस्वी का बहुजन, अगड़ा, आधी आबादी और पूअर (बीएएपी) कंसेप्ट काम नहीं आया। इससे आरजेडी की चिंता बढ़ गई है। पार्टी के भीतर भी अब माय-बाप जैसे समीकरण के खिलाफ आवाज उठने लगी है। रामगढ़ में अपने बेटे को नहीं जिता पाने वाले जगदानंद सिंह को अध्यक्ष पद से हटाने की मांग भी होने लगी है। आरजेडी के पूर्व एमएलसी आजाद गांधी तो आश्चर्य जताते है कि जगदानंद सिंह ने अभी तक प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा क्यों नहीं दिया है।

तेजस्वी बना सकते हैं यूपी जैसा पीडीए

तेजस्वी यादव पर इस बात का दबाव बन रहा है कि अब वे तालमेल की राजनीति से परहेज करें। ऐसी स्थिति में अनुमान लगाया जा रहा है कि तेजस्वी यादव यूपी के पूर्व सीएम और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव की पीडीए (पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक) की तरह कोई नया समीकरण बनाएं। लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने इसी कंबिनेशन के सहारे यूपी में कामयाबी हासिल की थी। यानी तेजस्वी यादव की राजनीतिक धारा अब पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों को साथ लेकर चलने की हो सकती है।

लोस चुनाव में आरजेडी के दो सवर्ण कैंडिडेट

आरजेडी कोई भी समीकरण बनाए, मगर उसने लोकसभा चुनाव के समय से ही सवर्णों पर अंकुश लगाना शुरू कर दिया था। उसके कुल 23 उम्मीदवारों में सिर्फ दो ही सवर्ण उम्मीदवार थे। उनमें एक जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह भी थे, जो चुनाव जीत गए। आरजेडी के प्रति सवर्णों की नाराजगी भी रही है। खासकर लालू यादव के श्भूराबाल साफ करो आह्वान के साथ ही सवर्णों ने आरजेडी से किनारा कर लिया था। फिर भी जगदानंद सिंह और अनंत सिंह जैसे कुछ सवर्ण नेता आरजेडी के साथ खड़े थे।

तो सवर्ण वोटों का मोह छोड़ देगा आरजेडी!

तेजस्वी अगर पार्टी के पिछड़े-अति पिछड़े नेताओं की सलाह मान लेते हैं तो उन्हें सवर्ण वोटों का मोह त्यागना पड़ेगा। इसके लिए पार्टी में तेजस्वी के करीबी नेताओं का जोर भी है। अगर जगदानंद सिंह से आरजेडी ने इस्तीफा ले लिया तो यह साफ हो जाएगा कि पार्टी नए समीकरण पर काम कर रही है। इस नए समीकरण में तब पिछड़े-अति पिछड़ों के अलावा मुस्लिम और दलित ही रह पाएंगे, जो अखिलेश यादव के पीडीए का कंसेप्ट है।

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