एकाग्रता को क़ामयाबी की कुंजी कहा गया है. किसी एक काम पर ध्यान लगाना सफलता की पहली शर्त है.
लेकिन, आधुनिक समय में हमारा दिमाग किसी एक जगह नहीं लगता. एक काम को छोड़कर दूसरे काम की तरफ इसका ध्यान भटकता रहता है.
मैगज़ीन में छपने वाले लेखों के साथ अब यह भी बताया जाता है कि उसे पढ़ने में कितना समय लग सकता है.
ब्रिटेन में हुए एक सर्वे में हिस्सा लेने वाले करीब एक चौथाई लोगों का कहना था कि चलते हुए कुछ और सोचते रहने के कारण उनके साथ कोई न कोई हादसा हो चुका है.
स्मार्टफोन की तरफ देखते हुए चलने के कारण लैंप पोस्ट से टकराने जैसी घटनाएं आम हैं.
ऐसा लगता है कि हम ध्यान भटकने के संकट का सामना कर रहे हैं. क्या इस समस्या का कोई निदान है? हमारा ध्यान कौन चुरा रहा है?
सोशल मीडिया, लक्षित विज्ञापन, यूट्यूब, ऐप्सः बड़ी टेक कंपनियों ने ध्यान भटकाकर पैसे कमाना सीख लिया है.
वे व्यवस्थित तरीके से और औद्योगिक स्तर पर हमारा ध्यान और समय चुरा रही हैं.
बेलिंडा परमार टेक्नोलॉजी के सहारे ईसाई धर्म का प्रचार करती थीं. वह कहती हैं, “हमारी एकाग्रता चुराने के लिए पूरी इंडस्ट्री खड़ी हो गई है. हममें से ज़्यादातर लोगों को अहसास भी नहीं है कि चल क्या रहा है.”
परमार अब वह काम छोड़ चुकी हैं. मानसिक सेहत पर तकनीक के दुष्प्रभावों को लेकर वह इतनी चिंतित हैं कि अब वह इस लत को छुड़ाने के अभियान का हिस्सा बन चुकी हैं.
वह कहती हैं, “टेक इंडस्ट्री दुनिया को करीब लाने का वादा करती है, लेकिन असल में उसका मुख्य लक्ष्य हमसे हमारा समय छीनना है.”
परमार का कहना है, “कुछ कंपनियां, जैसे कि नेटफ्लिक्स इसे छिपाती भी नहीं हैं. नेटफ्लिक्स के सीईओ रीड हेस्टिंग्स जब यह कहते हैं कि उनकी सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी नींद है तो आपको दो बार सोचना पड़ेगा.”
बेलिंडा परमार अब “द इम्पैथी बिजनेस” की सीईओ हैं. वह मानती हैं कि तकनीक के कई सकारात्मक पहलू हैं, लेकिन इसका एक काला पक्ष भी है.
तकनीक के बारे में जेम्स विलियम्स की राय भी बदल गई है.
विलियम्स पहले गूगल में काम करते थे. उन्होंने महसूस किया कि बड़ी टेक कंपनियों के लक्ष्य उनके स्वयं के मूल्यों के अनुरूप नहीं हैं.
कंपनियों का फ़ोकस क्लिक और व्यूज़ को ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ाने और अपने उत्पादों के साथ लोगों को अधिकतम समय तक व्यस्त रखने पर है.
विलियम्स तकनीक के उपयोगकर्ताओं को कृषि दास और बड़ी टेक कंपनियों को जागीरदार की तरह मानते हैं. वह कहते हैं, “यह दासता शारीरिक श्रम की नहीं, बल्कि हमारे ध्यान की है.”
वैसे तो कई डिजिटल उत्पाद मुफ़्त हैं, लेकिन वे हमारा सबसे कीमती संसाधन ले रहे हैं. वह संसाधन है समय.
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और “द अटेंशन मर्चेंट्सः द एपिक स्क्रैंबल टू गेट इनसाइड अवर हेड्स” के लेखक टिम वू बार-बार फोन चेक करने की आदत को वैरिएबल रिवॉर्ड शेड्यूल से जोड़ते हैं.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और मनोवैज्ञानिक बी.एफ. स्किनर ने कई प्रयोगों के बाद दिखाया कि अगर कबूतरों को दाना मिलने का समय पता न हो तो वे उस बटन को बार-बार दबाते हैं जिससे दाना आता है.
वू का कहना है कि पुरस्कारों की असंगत उत्तेजनाओं को जुए की स्लॉट मशीन की लत की तरह समझा जा सकता है.
जिस तरह से कबूतर दाना देने वाले बटन पर चोंच मारते रहते हैं, उसी तरह हम अपने फोन को टैप करते रहते हैं.
कई बार हम निराश हो जाते हैं, लेकिन कभी-कभी कुछ ऐसा मिलता है जो हमें रोमांचक लगता है, जैसे कोई अच्छा लेख. यह हमें वापस फोन की तरफ खींचता रहता है.
टिम वू कहते हैं, “इस तरह से आप दिन के कई घंटे, सप्ताह के कई दिन और ज़िंदगी के कई महीने ऐसी चीजों पर बर्बाद कर देंगे जिनकी वास्तव में आपको परवाह भी नहीं थी.”
तो क्या हमारे दिमाग को भटकने से बचाने का कोई तरीका है?
निर ईयल एक लोकप्रिय लेखक हैं जो आदत संबंधी सूचनाओं का अध्ययन करते हैं.
वह उपभोक्ताओं के व्यवहार के विशेषज्ञ भी हैं जो जानते हैं कि टेक कंपनियां हमारा ध्यान खींचने के लिए कैसी-कैसी तरकीबें अपनाती हैं. पहले ईयल भी उन्हें सिखाते थे कि यह सब कैसे करना है.
उनका कहना है कि आप कुछ निजी प्रयासों से अपना समय और एकाग्रता वापस पा सकते हैं.
यह पूरी तरह व्यक्तियों पर निर्भर है, क्योंकि हमें बचाने के लिए हमारी सरकार नहीं आएगी, न ही टेक कंपनियां यह काम करेंगी.
तकनीक के प्रभाव में आकर विचलित होने से बचने के लिए निर ईयल 4 चरण वाली योजना सुझाते हैं.
पहला चरण:आंतरिक ट्रिगर का प्रबंधन– जब हम ध्यान से भटकते हैं तो आम तौर पर हम असहज काम से बचना चाहते हैं. पता लगाएं कि यह क्या है और इसे प्रबंधित करने का प्रयास करें.
दूसरा चरण: भटकाव के लिए समय का निर्धारण– अपने दिन का कुछ समय निकालें जब आप अपने मुख्य काम से भटक सकते हैं. इस तरह से यह नहीं लगेगा कि आपके समय में अतिक्रमण हो रहा है. खुद के लिए एक घंटा समय दें जो आपके लिए सोशल मीडिया का समय होगा.
तीसरा चरण: बाहरी ट्रिगर्स को हटाना– सभी तरह के नोटिफिकेशन, रिंग, पिंग और डिंग को बंद कर दें जो आपको बताते रहते हैं कि क्या करना है.
चौथा चरण: भटकाव रोकने के लिए समझौते– एक ऐसा ऐप चुनें जो फोन पर ख़र्च किए जाने वाले आपके समय को सीमित करने की कोशिश करे.
मुख्य कारक अपनी जागरुकता है. एक बार जब आपको पता चल जाता है कि आप फोन या टैबलेट से भटक रहे हैं तो आप इससे पीछा छुड़ाने लगेंगे.
ऑस्ट्रेलिया की पत्रकार सुसान मौशार्ट के परिवार के बच्चे और बड़े सभी लोग आपसी संवाद करने की जगह स्क्रीन से चिपके रहते थे.
मौशार्ट टेक्नोलॉजी के प्रति अपने परिवार की सनक से तंग आ चुकी थीं. वह कहती हैं, “तकनीक मेरे परिवार के ध्यान देने के तरीके को प्रभावित कर रही थी.”
उन्होंने फ़ैसला किया कि सभी उपकरणों को हटा दिया जाए. परिवार के लोग छह महीने तक बाहरी दुनिया से कट कर रहें.
सुसान मौशार्ट कहती हैं, “मैं चाहती थी कि लोग आंखें मिलाएं और एक-दूसरे से बातें करें. वे डिनर टेबल के आसपास बैठें और फोन पर टेक्स्ट भेजने या यूट्यूब देखने के लिए जल्दी-जल्दी खाना खाने की हड़बड़ी में न रहें. मैं अपने परिवार को वापस पाना चाहती थी.”
वह कहती हैं कि फोन और टैबलेट के ना रहने पर परिवार के लोगों ने एक-दूसरे से ज्यादा बातें कीं, लेकिन बोरियत भी बहुत हो रही थी.
स्क्रीन के साथ रिश्ते के बारे में वह फिर से सोचने के लिए मज़बूर हुईं. छह महीने बाद वह पिछली दुनिया में वापस लौटने के लिए तैयार थीं.
मौशार्ट मानती हैं कि जिस दिन वह फोन और टैबलेट पर वापस लौटीं, उस दिन उनको क्रिसमस जैसा अहसास हुआ.
तो अगर स्क्रीन बंद कर देने से भी काम नहीं बनता तो और क्या कर सकते हैं.
जेम्स विलियम्स का मानना है कि समस्या को सुलझाने की चाबी एक नई नैतिक प्रणाली बनाने में है जो ध्यान खींचने वाली इंडस्ट्री को चलाए.
वह कहते हैं, “हमें ऐसी दुनिया की कामना करनी चाहिए जहां सिर्फ़ किसी का ध्यान खींचने के मकसद से ध्यान खींचने को अपमान के रूप में देखा जाए. अगर टेक डिजाइन हमारी नैतिकता और हमारे मूल्यों से संचालित नहीं हो रही है तो इनको कुछ और दिशा दे रहा है.”
इसे ध्यान में रखकर उन्होंने इस इंडस्ट्री के बागियों के साथ मिलकर एक ग्रुप शुरू किया है जिसका नाम है “टाइम वेल स्पेंट”.
यह समूह ऐप कंपनियों के लिए एक अभियान चला रहा है ताकि वे अपने प्रोडक्ट को डिजाइन करने के तरीके बदलें.
वह कहते हैं, “इन कंपनियों का कहना है कि वे हमारी ज़िंदगी को बेहतर बनाना चाहती हैं, लेकिन वे हमसे हमारा ध्यान छीन रहे हैं जो कि इस दुनिया में किसी भी दूसरी चीज़ से ज़्यादा कीमती है.”
हमारी एकाग्रता कोई वस्तु नहीं है, जिसे खरीदा या बेचा जा सके. लेकिन इस पर हमारा नियंत्रण हो सकता है.
शायद टेक इंडस्ट्री से ज़्यादा हमें खुद को बदलने की जरूरत है.
बच्चों और किशोरों की मानसिक सेहत पर तकनीक की लत के असर को देख चुकी बेलिंडा परमार कहती हैं, “आप किसी चीज़ के हर पहलू को समझकर फ़ैसला लेने की कोशिश करते हैं, लेकिन आप इस बात से अनजान हैं कि हर ऐप के पीछे डेवलपर्स, गेमिंग एक्सपर्ट्स और मनोवैज्ञानिकों की एक टीम होती है, जिनका एकमात्र उद्देश्य आपका ध्यान चुराना होता है.”
बेलिंडा कहती हैं, “आप यह लड़ाई अपने दम पर नहीं लड़ सकते, खासकर तब जबकि आप बच्चे हैं. तो फिर सोचना यह है कि इन डिजिटल गैंगस्टर्स से कैसे लड़ा जाए.”