बाराबंकी : दरियाबाद क्षेत्र के ग्राम गोपालपुर में चल रही सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा में लखनऊ से पधारें कथा व्यास चन्द्रशेखर जी महाराज ने कथा के दूसरे दिवस दोपहर की पाली में राम बनवास का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि एक बार महाराज दशरथ शीशे में अपना मुंह देखते हैं तों कान के पास कुछ बालों को सफेद देखा। श्रवण समीप भयेऊ श्रित केसा, मनहुं जरठ पन अस उपदेसा तो सोचने लगें कि मेरे ऊपर चौथापन हैं और अपने बेटे राम को राज्य तिलक देकर बन को जाऊं यहीं विचार कर अपने गुरु के पास जातें हैं गुरुदेव भी इस विचार को श्रेष्ठ कहते हैं वन जानें से मना करतें हैं नृपति सभी जनता को एकत्र किया सभी ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया राम राज्याभिषेक की घोषणा की जाती हैं देवताओं की प्रेरणा से सरस्वती मंथरा की बुध्दि में बैठ जाती हैं मंथरा कैकेई को भड़काती है कैकेई कोप भवन में जाकर राजा दशरथ से देवासुर संग्राम में दिये हुये वरदान स्वरूप भरत को राजगद्दी और राम को चौदह वर्ष का बनवास मांगती है। तापस वेष विशेष उदासी, चौदह वर्ष राम वनबासी, कैकेई व्याकरण नीति की बहुत बड़ी ज्ञाता थीं जिसने राम लक्ष्मण सीता तीनों को वनबास मांगा था विशेष उदासी से उपसर्ग उ हटालो तों दासी बचता राम जी की दासी सीता जी हैं। विशेष से विसर्ग वि हटालो तो शेष बचता है शेष हैं लक्ष्मण जी इसलिए तीनों को वनबास मांगा था पिताजी की आज्ञानुसार माता जी से विदाई लेकर प्रभु श्रीराम जी वन को प्रस्थान करतें हैं सिंह समेत हजारों की संख्या में भक्त विराजमान रहें।
संवाददाता : अंकित यादव