बांदा -,इस भूमि अधिग्रहण से,ग्राम मवई बुजुर्ग का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।
पूर्व में भी मवई बुजुर्ग की 4140 बीघा भूमि अधिग्रहण की जा चुकी है।
बांदा आज दिनांक 14 जून को लगभग एक सैकड़ा ग्राम पंचायत मवई बुजुर्ग के ग्रामीणों ने अपनी पीड़ा से अवगत कराते हुए जिला अधिकारी बांदा को ज्ञापन देकर
मवई बुजुर्ग के छोटे भूमि काश्तकारों के साथ, भूमि अधिग्रहण पर रोक लगाने का आह्वान किया है।
साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि किस तरह से मवई बुजुर्ग के छोटे भूमि काश्तकार (ग्रामीणों) का भविष्य सुरक्षा होना ज़रूरी है।
बाँदा शहर से जुड़ा ग्राम है।
ग्राम मवई बुजुर्ग में खेतिहर मजदूर अल्प भूमिहीन कृषिक लोग निवास करते हैं।
99% लोगों का जीवन यापन का साधन केवल कृषि है।
पेट रोटी का साधन खर्चा ब्याह शादी दवा इलाज की आय का साधन केवल कृषि
है।
अगर कृषि भूमि कारीडोर योजना में चली गयी तो सभी ग्रामवासी भूमिहीन
बेरोजगार हो जायेगे आर भुखमरी की कगार पर पहुँच जायेगे।
ग्राम-मवई बुजुर्ग में लगभग 1000 बीघा जमीन कृषि विश्वविद्यालय मे चली गयी 400 बीघा जमीन सूती कताई मिल में चली गई,
450 बीघा जमीन बुन्देलखण्ड एक्सप्रेसवे में चली गई।
बाईपास रोड में 200 बीघा चली गयी, सर्किट हाउस में 50 बीघा,राजकीय पॉलीटेक्निक में लगभग 40 बीघा,खनिज ऑफिस में चली गई।
सोसाइटी में चली गयी तथा बाँदा शहर की आबादी भी लगभग 2000 बीघा में चली गयी 10 एकड़ में देहली स्कूल बना है तथा अन्य तरह से भी जमीन चली गईं।
अब कृषि योग्य मरवा भूमि लगभग 2000 बीघ शेष बची है और अगर यह जमीन चली गयी तो पूरे ग्राम में कुछ भी नहीं बचेगा।
वर्तमान में बाँदा से चिल्ला रोड बाईपास एक्सप्रेस में रोड के किनारे की जमीन का मूल्यांकन सर्किल रेट स्टाम्प विभाग द्वारा निर्धारित रेट के अनुसार गाटा सं. 747 वर्तमान एक करोड़ 20 लाख प्रति बीघा में हिसाब से व भगवानदीन पुत्र चुन्नू का गाटा 749 का सर्किल रेट/बाजारू रेट 4000/- रू. प्रतिवर्गमीटर से विक्रय हुआ है। भगवानदीन ने 4000/- रू. प्रति वर्गमीटर के हिसाब से 23 लोगों को बैनामा किया है। अर्थात् लगभग एक करोड के आस पास है। अगर जमीन अधिग्रहित की गई तो बहूमूल्य जमीन चली जायेगी, जिससे ग्राम का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा
और लोग बेरोजगार हो जायेगे। जो ग्राम वासियों को असहनीय क्षति होगी। जिसकी भरपाई कभी नहीं हो पायेगी।
नियमतः ग्राम की उपजाऊ भूमि अधिग्रहीत नहीं होनी चाहिए क्योंकि भारत सरकार द्वारा हरित क्रान्ति का भाग दिया गया है, अधिक उत्पादन से भारत की समृद्धि बढ़ेगी, वैसे नियम यह है, कि अनउपजाऊ भूमि अधिग्रहीत की जानी चाहिये
जैसे बाँदा शहर का दक्षिणी भाग ग्राम दुरेड़ी जहाँ पर राष्ट्रीय राजमार्ग, रेलवे स्टेशन,
असिंचित रकबा है।
हजारों एकड़ भूमि खाली पड़ी है। जहाँ पर केन नदी व नाला से पानी भी मिलेगा ऐसी भूमि भुरेड़ी, त्रिवेणी, सिलेहटा, लोहरा, दूरवा में भी है। दूसरे ग्राम जहाँ से जमीन अधिग्रहीत होना है, जैसा कि चहितारा, दुरेड़ी त्रिवेणी, भुरेड़ी आदि यहाँ से बुन्देलखण्ड एक्सप्रेसवे भी नजदीक है। राज्य सरकार का कर्तव्य है, कि किसी ग्राम के निवासियों का अस्तित्व बनाये रखना आवश्यक है। ताकि रोजी रोटी भी बची रहे।युमुना केन के किनारे कई ग्राम हैं। जहाँ जमीन मिल सकती है। पर्यावरण के हिसाब से भी जमीन शहर से 20 किमी दूर ही औद्योगिक क्षेत्र होना चाहिये। ताकि शहर को प्रदूषण से बचाया जा सके और से बिना NOC लिए शहर के किनारे उद्योग नहीं लगाया जा सकता है। इन ग्रामों में वन क्षेत्र भी नहीं है। जबकि वन क्षेत्र के हिसाब से फारेस्ट एक्ट के तहत प्रत्येक ग्राम में वन क्षेत्र अनिवार्य है। यदि वन क्षेत्र रहेगा।
तो प्रदूषण के कारण कई बीमारियां पैदा होगी जो गम्भीर समस्या हो जायेगी। पीढ़ी दर पीढ़ी अस्वास्थता की स्थिति बनी रहेगी। जबकि सरकार का उद्देश्य यह है, कि प्रत्येक व्यक्ति को स्वच्छ हवा पानी मिले, भूगर्भ जल भी प्रदूषित होगा। ऐसी स्थिति में अधिग्रहण अन्य ग्राम सभा में एक्सप्रेसवे के पास बहुत से ग्राम हैं।
अतः कृषि योग्य भूमि का अधिग्रहण रोकना न्याय हित में आवश्यक है।
ज्ञापन देने में रामकिशोर सिंह पुत्र बृजलाल सिंह,बलवीर सिंह पुत्र बद्री सिंह,शिवदर्शन पुत्र कुंजा,विनोद पुत्र सभाजीत,विश्वम्भर सिंह पुत्र बैजनाथ सिंह ,संतोष वर्मा , सुखलाल बौद्ध, के साथ , विजयपाल, रामसजीवन सिंह, बद्री प्रसाद, समरजीत सिंह, जयकरन पाल , बच्चा खान , मोतीलाल, छेदिया , गोरेलाल, नवाजी, रामकिशोर, सहित अन्य एक सैकडा ग्रामीण मौजूद रहे हैं।
रिपोर्ट राजकुमार दस्तक बांदा