बहराइच। अपने लिए तो सभी लोग जीवन जीते हैं । लेकिन जो प्राकृतिक पर्यावरण के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दें । ऐसे लोग बहुत ही कम समाज में देखने को मिलते हैं । हम आपको एक ऐसे व्यक्तित्व के बारे में बताना चाहते हैं जिन्होंने अपने पूरे जीवन को प्राकृतिक के रूप में समर्पित कर दिया। थाना मोतीपुर क्षेत्र निवासी मिथिलेश जायसवाल प्राकृतिक पर्यावरण के लिए निरंतर संघर्ष कर रहे हैं।दिब्यांग मिथिलेश जायसवाल के जीवन के पांच हैं प्रमुख लक्ष्य उद्देश्य।
1 गौरैया को दाना पानी से लेकर घर भी उपलब्ध कराना।
2 गौरैया संरक्षण के लिये पूरा जीवन समर्पित करना।
3 नन्हीं गौरैया को बचाने के लिए सहयोग वसमाज के सभी लोगो को प्रेरित करना।
4 अनवरत 17 साल तक गौरैया संरक्षण पर रात दिन कार्य करना।
5 गौरैया संरक्षण पर तन मन धन न्योछावर तथा मन को सुकून मिलना ।
मिहींपुरवा बहराइच। सुबह सवेरे घर कें आंगन में ची ची की आवाज से मन को जो सुकून मिलता है वह आज दौड़ भाग भरी जिंदगी तथा वाहनों के तेज हार्न शोर-शराबे मे कहां मिलेगा। अत्याधिक आधुनिकीकरण तथा पक्के मकानों के निर्माण से जहां फूस खपरैल के मकान नष्ट हो गए वहीं गौरैया का आशियाना भी खत्म हो गया ।धीरे-धीरे गौरैया विलुप्त प्रजाति के रूप में जाने जाने लगी । लेकिन प्रकृति प्रेमियों की पहल से गौरैया की वापसी हुई है और अब काफी संख्या में गौरैया देखने को मिल रहे ही ।गौरैया बचाने के लिए 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है । तहसील मिहींपुरवा मोतीपुर के ग्राम पंचायत गुलरा के भज्जापुरवा गाँव निवासी प्रकृति प्रेमी मिथिलेश जायसवाल सन 2005 से गौरैया संरक्षण के लिए कार्य कर रहे हैं ।मिथिलेश जहां गौरैया के लिए खाना पानी का इंतजाम करते हैं वहीं उनके रहने के लिए लकड़ी के वैकल्पिक घोंसले भी लगाते हैं ।इसके साथ ही गौरैया को बचाने के लिए गांव-गांव तथा विद्यालय में जाकर जन जागरूकता कार्यक्रम कर लोगों को घोंसले भी वितरित करते हैं ।जिससे नन्ही गौरैया को विलुप्त होने से बचाया जा सके ।फल स्वरुप गौरैया दिखने लगी है । काफी संख्या में गौरैया की वापसी हुई है। मिथिलेश ने बताया कि मुझे बचपन से ही नन्ही चिड़िया गौरैया से लगाव था जो आज भी कायम है ।मैं गौरैया संरक्षण के लिए लंबे समय से कार्य कर रहा हूं ।गौरैया के लिए दाना पानी से लेकर उनके रहने के लिए घर का भी इंतजाम करता हूं। गौरैया को कैसे बचाया जाए इसके लिए गांव गांव तथा विद्यालय में जाकर लोगों को जागरूक करने के लिए गौरैया जागरुकता पंपलेट बांटता हूँ तथा गौरैया बॉक्स भी उपलब्ध कराता हूँ। अब तक मैंने जिला अधिकारी डॉ दिनेश चंद्र ,उप जिलाधिकारी मिहींपुरवा ज्ञान प्रकाश त्रिपाठी, सीएचसी अधीक्षक डॉ अनुराग वर्मा सहित सैकड़ों लोगों को मैंने गौरैया बॉक्स उपलब्ध कराया है। मेरा मानना है कि यदि सभी लोग अपने अपने आंगन तथा छतों पर चिड़ियों के लिए चावल पानी का इंतजाम करें ,घर के छज्जे में लकड़ी के घोंसले लगाएं तथा आंगन दुवारे पर नींबू अनार अमरुद के पौधे लगाए तो गौरैया की वापसी होगी और काफी संख्या में गौरैया देखने को मिलेगी । मेरे अभियान को अब पूरे जनपद में लोग पसंद कर रहे है तथा चिड़ियों के लिए दाना पानी का इंतजाम कर रहे हैं । यदि इसी तरह सभी का सहयोग मिलता रहा तो आने वाले समय में गौरैया की संख्या और भी इजाफा होगा ।जब मैंने अभियान को शुरू किया था उस समय इक्का-दुक्का ही गौरैया दिखाई देती है। लेकिन आज सैकड़ों की संख्या में गौरैया दिखाई दे रही है। ज्ञात हो कि मिथिलेश जायसवाल दोनों पैरों से दिव्यांग है । दिव्यांगता के बावजूद मिथिलेश परचून की दुकान का संचलन करने के साथ ही साहित्य सृजन गौरैया संरक्षण पर्यावरण तथा वन्य जीवों को बचाने के लिए कार्य कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने 2020 में इन्हें राज्य स्तरीय पुरस्कार देकर सम्मानित किया था। इसके साथ ही दर्जनों संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मिथिलेश की रचनाएं आकाशवाणी लखनऊ तथा रेडियो नेपाल पर निरंतर प्रसारित होती रहती है ।