आज़मगढ़: खेतों में पराली (फसल अवशेष) जलाने वाले किसान सावधान! सरकारी तृनेत्र से छिपाना मुश्किल

आरएसएसी ने एक क्रॉप रेजीड्यू ऑटोमेटेड बर्निग मॉनिटरिंग सिस्टम पोर्टल बनाया है, जो उपग्रहीय आंकड़ों (मोडिस सेटेलाइट डेटा) के जरिए तत्काल पता लगा लेगा कि कहां और किस खेत में पराली जलाई गई है। और गूगल मैप इसका पता बताएगा। उत्तर प्रदेश में कृषि अवशेष (पराली) जलाना अब दंडनीय अपराध घोषित हो गया है। पहली बार पकड़े जाने पर 2500 रुपये से लेकर 15000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। दोबारा नाम आने पर प्राथिमिकी दर्ज किये जाने का प्रावधान है। बावजूद चोरी-छिपे किसान खेतों में पराली जलाते हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा।
दरअसल, आरएसएसी ने एक क्रॉप रेजीड्यू ऑटोमेटेड बर्निग मॉनिटरिंग सिस्टम पोर्टल बनाया है, जो उपग्रहीय आंकड़ों (मोडिस सेटेलाइट डेटा) के जरिए तत्काल पता लगा लेगा कि कहां और किस खेत में पराली जलाई गई है। इसके बाद अधिकारी गूगल मैप के जरिए ठीक उस स्थान पर पहुंच सकेंगे, जहां आग लगाई गई होगी। भारत सरकार व कृषि विभाग द्वारा इस परियोजना को हरी झंडी दे दी गई है। रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में निगरानी कर रोजाना रिपोर्ट भेजेगा।
उत्तर प्रदेश रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर मोडिस सेटेलाइट डेटा के जरिए पराली जलाये जाने की सूचना प्रशासन एवं सम्बंधित अधिकारियों तक पहुंचाएगा। मोडिस सेटेलाइट डेटा 24 घंटों में तीन से पांच बार टेरा एवं एक्वा सेंसर्स की मदद से आग वाले स्थानों का अक्षांश-देशांतर सहित पूरा डेटा उपलब्ध कराता है। जिसके बाद उन स्थानों को आसानी से चिन्हित किया जा सकता है, जहां पर आग लगी होती है। इसके बाद गूगल मैप एप्लीकेशन की मदद से उस स्थान की लोकेशन व रोड मैप का पता लगाया जाता है। इसके बाद संबंधित जनपदीय अधिकारियों के मोबाइल पर एसएमएस से सूचना भेजी जाती है।
रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर के कृषि संसाधन विभाग के प्रभागाध्यक्ष डॉ. राजेश उपाध्याय व नोडल अधिकारी डॉ. एसपीएस जादौन बताते हैं कि 24 घंटे मॉनिटरिंग शुरू कर दी गई है, जो पूरे सीजन जारी रहेगी। खरीफ की फसल के बाद किसान खेत में ही पराली जला देते हैं। अक्टूबर की शुरुआत से ही खेतों में पराली और कृषि अवशेष जलाने की घटनाएं सामने आने लगी हैं। पराली जलाने से रोकने के लिए सरकार किसानों जहां लगातार जागरूक कर रही है, वहीं जुर्माने और केस दर्ज करने की कार्रवाई भी की जा रही है।खेतों में पराली और कृषि अवशेष जलाने से धुआं उठता है और आसमान पर मोटी धुंध बना लेता है। जो प्रदूषण का रूप ले लेता है। वैसे तो प्रदूषण में वृद्धि के लिए घटता तापमान, नमी आदि जिम्मेदार हैं, लेकिन पराली व कृषि अवशेष जलाने की घटनाएं समस्या को और गंभीर बनाते हैं।
हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर पराली जलाने के वैकल्पिक प्रबंध नहीं किए गए तो प्रदूषणकारी तत्व, कार्बन मोनोऑक्साइड और मीथेन जैसी जहरीले गैसों के कारण श्वसन संबंधी गंभीर समस्याओं में बढ़ोतरी हो सकती है, जिसके चलते कोविड-19 के हालात और बिगड़ जाएंगे क्योंकि कोरोना वायरस श्वसन प्रणाली को प्रभावित करता है।
अजय कुमार शाक्य
आज़मगढ़
जिला ब्यूरो चीफ
The dastak 24