अयोध्या , स्वयंंभू का मतलब प्रकट होना होता है, इसे किसी जगह से जोड़ना गलत: मुस्लिम पक्षकार

अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में हिंदू पक्ष की तरफ से दलीलें पूरी होने के बाद सोमवार से सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम पक्षकारों की बहस सुन रहा है . सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सभी हिन्दू पक्षों की बहस की सुनवाई 16 दिनों में पूरी कर ली है, जिसमें निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान शामिल हैं. सुन्नी वक्फ बोर्ड के वरिष्ठ वकील राजीव धवन सोमवार से निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान (देवता और उनका जन्म स्थान) के वकीलों की तरफ से पेश की गई बहसों का पाइंट वाइज जवाब अदालत के समक्ष पेश करेंगे.

राजीव धवन ने कहा कि 1939 में एक मस्जिद तोड़ी गई,1949 में एक मूर्ति को रखा गया, 1992 में मस्जिद को ध्वस्त किया गया , किस इक्विटी का कानून के तहत अखाड़ा अधिकारों को संरक्षित किया जा सकता है

मुस्लिम पक्षकार के वकील धवन ने कहा कि स्वयंभू का मतलब भगवान का प्रकट होना होता है, इसको किसी खास जगह से नहीं जोड़ा जा सकता है, हम स्वयंंभू और परिक्रमा के दस्तावेजों पर भरोसा नहीं कर सकते.
धवन ने कहा कि हम इस मामले में किसी अनुभवहीन इतिहासकार की बात नही मान सकते है, हम सभी अनुभवहीन ही है. डी वाई चंद्रचूर्ण ने कहा कि आप ने भी कुछ ऐतिहासिक साक्ष्य दिए है कोई ऐसा साक्ष्य है जिसपर दोनों ने भरोसा जताया हो.

राजीव धवन ने कहा कि हिन्दू पक्ष की तरफ से भारत आने वाले यात्रियों की हवाला दे कर कहा कि उन यात्रियों ने मस्जिद के बारे में नही लिखा है, क्या इस आधार पर यह मान लिया जाए कि वह मस्जिद नही था, मारको पोलो ने अपनी किताब में चीन की दीवार के बारे में लिखा था.

धवन ने कहा कि प्रायिकता का पूर्व विस्तार दर्शाता है कि विवाद में भवन औरंगजेब के कार्यकाल के दौरान बनाया गया था, क्यों कि अकबर, शाहजहां या हुमायुं के शासनकाल में इसकी रचना नहीं हो सकती थी.

धवन ने कहा कि मोर कमल की तस्वीर मिलने का यह मतलब नही की वह मस्जिद नही हो सकती, रोमन कल्चर में इसकी जगह है.

जजमेंट की कार्यप्रणाली की ये समस्याएं हैं. गज़ेटियर ने शुरुआत में क्या कहा है? उसने कहा है कि ये गैज़ेट उन्हें इसलिए तैयार करने के लिए दिया गया ताकि ब्रिटिश लोगों को जानकारी दे सकें. क्या हम 1858 से पहले केगज़ेटियर पर भरोसा कर सकते हैं- धवन

जस्टिस अग्रवाल ने अपने अनुमान और सम्भावनाओं के आधार पर मन्दिर के अस्तित्व पर अपनी प्रतिक्रिया दी हैं- धवन

धवन ने कहा काव्य तुलसीदास द्वारा कल्पना द्वारा लिखी गयी थी. जस्टिस बोबडे – कुछ तो साक्ष्य के आधार पर लिखा जाता होगा.

धवन ने कहा कि महाभारत एक इतिहास है और रामायण एक काव्य है. जस्टिस बोबडे ने पूछा इन दोनों में क्या अंतर है-

राजीव धवन ने कहा कि बाबर के विदेशी हमलावर होने पर वो कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते, धवन ने कहा कि साबित करने के लिए जिरह करूंगा कि वहां मस्ज़िद थी. राजीव धवन ने कहा कि आप कौन का कानून यह पर लागू करेंगे, क्या हमे वेदों और स्कंद पुराण को लागू करना चाहिए. राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट को धर्म ने न्याय, साम्यता और शुद्ध विवेक-व्यवस्था और कुछ यात्रियों का संक्षिप्त कॉम्पलीकेशन दिया

हम सिर्फ इसलिए इस पक्ष मज़बूती से देख रहे हैं क्योंकि वहाँ की शिला पर एक मोर या कमल था इसका मतलब यह नहीं है कि मस्जिद, से पहले एक विशाल संरचना थी- धवन

धवन ने शुरू में अदालत को बताया था कि वह अपनी बहस 20 दिनों में पूरी करेंगे. इसका अर्थ यह है कि मामले की दैनिक सुनवाई तकनीकी रूप से सितंबर के अंत तक खत्म होगी. इससे राजनीतिक रूप से विवादास्पद इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को एक महीने से अधिक का समय मिल जाएगा.

मामले की सुनवाई कर रही पीठ की अध्यक्षता कर रहे प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं. मुस्लिम पक्षकार इस मामले में अपनी बहस में विवादास्पद स्थल पर निर्मोही अखाड़े के दावे का प्रतिवाद कर सकते हैं. यह अयोध्या टाइटल सूट की सुनवाई में एक खास चरण हो सकता है, खासतौर से तब जब निर्मोही अखाड़ा ने सुप्रीम कोर्ट से कह दिया है कि वह रामलला विराजमान द्वारा दायर लॉसूट का विरोध नहीं कर रहा.

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