नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में हिन्दू पक्षकारों में से एक ‘निर्वाणी अखाड़ा’ को श्रृद्धालु के रूप में मूर्ति की पूजा अर्चना के प्रबंधन के अधिकार के लिये लिखित नोट दाखिल करने की मंगलवार को अनुमति दे दी. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ के समक्ष ‘निर्वाणी अखाड़ा’ के वकील ने इस मामले का उल्लेख किया और कहा कि उनके मुवक्किल ने लिखित नोट दाखिल करने के लिये तीन दिन के समय की गणना करने में गलती कर दी और इसीलिए वह न्यायालय की रजिस्ट्री में राहत में बदलाव के बारे में लिखित नोट दाखिल करने की अनुमति चाहता है. ऐसा माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला 17 नवंबर से पहले सुना सकता है. क्योंकि चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया रंजन गोगोई इसी दिन सेवानिवृत हो रहे है.
संविधान पीठ ने 16 अक्टूबर को इस प्रकरण की सुनवाई पूरी करते हुये सभी पक्षों से कहा था कि वे सुनवाई के दौरान उठाये गये मुद्दों को समेटते हुये राहत में बदलाव संबंधी लिखित नोट तीन दिन के भीतर दाखिल करें. पीठ ने निर्वाणी अखाड़ा का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता से कहा, ”आप अब दाखिल कर दीजिये.”
इस प्रकरण में ‘निर्मोही अखाड़ा’ और उसका प्रतिद्वन्द्वी ‘निर्वाणी अखाड़ा’ दोनों ही राम लला विराजमान के जन्मस्थल पर पूजा अर्चना करने और प्रबंधन के अधिकार चाहते हैं. निर्मोही अखाड़ा ने अनुयायी के रूप में अधिकार की मांग करते हुये 1959 में वाद दायर किया था जबकि निर्वाणी अखाड़ा को उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड ने 1961 में प्रतिवादी बनाया जबकि देवकी नंदन अग्रवाल के माध्यम से राम लला की ओर से 1989 में दायर वाद में उसे प्रतिवादी बनाया गया है.
इससे पहले, मुस्लिम पक्षकारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन द्वारा तैयार किये गये इस नोट में कहा गया है, ”इस मामले में न्यायालय के समक्ष पक्षकार मुस्लिम पक्ष यह कहना चाहता है कि इस न्यायालय का निर्णय चाहे जो भी हो, उसका भावी पीढ़ी पर असर होगा. इसका देश की राज्य व्यवस्था पर असर पड़ेगा.”