लोकसभा चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस पार्टी ने बड़ा फेरबदल किया है। यूपी कांग्रेस के प्रभारी पद से प्रियंका गांधी को हटा दिया गया है। अविनाश पांडेय को यूपी का नया प्रभारी बनाया गया है। अविनाश पांडेय इसके पहले राजस्थान के प्रभारी रह चुके हैं। वह लंबे समय से कांग्रेस संगठन के साथ जुड़े हुए हैं।
अविनाश पांडेय राहुल गांधी की टीम के सक्रिय सदस्य बताए जाते हैं। मौजूदा समय में अविनाश पांडेय राष्ट्रीय कांग्रेस में जनरल सेक्रेटरी के पद पर हैं। बताया जा रहा है कि प्रियंका से यूपी कांग्रेस प्रभारी का पद इसलिए वापस लिया गय है, ताकि वह लोकसभा चुनाव लड़ सकें। कयास लगाया जा रहा है कि प्रियंका अमेठी या रायबरेली से चुनाव लड़ सकती हैं।
बता दें कि कांग्रेस पार्टी के संविधान के अनुसार जनरल सेक्रेटरी इंचार्ज, PCC मेंबर और AICC मेंबर अपने राज्य से चुनाव नहीं लड़ सकता है। अगर चुनाव लड़ना है तो पद छोड़ना होगा। कांग्रेस पार्टी में इस फेरबदल से साफ हो रहा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा के यूपी से चुनाव लड़ने की तैयारी है।
प्रियंका गांधी को 2019 के लोकसभा चुनावों के पहले यूपी प्रभारी बनाया गया था। 2019 के चुनाव में पार्टी सिर्फ एक सीट जीत सकी। उस समय कांग्रेस अध्यक्ष रहे राहुल गांधी भी अमेठी से चुनाव हार गए थे। हालांकि रायबरेली से सोनिया गांधी जीतीं जरूर पर उनकी जीत का अंतर पहले की जीतों से कम हो गया।
2022 का विधानसभा चुनाव अकेले प्रियंका गांधी के दम पर लड़ा गया। नारा दिया गया…लड़की हूं…लड़ सकती हूं। टिकट देने में महिलाओं पर ज्यादा फोकस किया गया। चुनाव प्रचार की पूरी कमान प्रियंका के हाथ में थी।
धूंआधार प्रचार किया, पर जब परिणाम आए तो निराशा हाथ लगी। पार्टी को विधानसभा में सिर्फ 2 सीटें ही मिलीं। 2022 के चुनाव परिणामों के बाद प्रियंका का रुझान यूपी की तरफ से कम हो गया।
अविनाश पांडे कांग्रेस कार्य समिति (CWC) के सदस्य हैं। अविनाश पांडेय युवा कांग्रेस के नेता भी रहे हैं। जब मनिंदर सिंह बिट्टा अध्यक्ष थे तब उन्होंने भारतीय युवा कांग्रेस में महासचिव का पद संभाला था। इसके साथ ही वह विधान परिषद महाराष्ट्र (उच्च सदन) के भी सदस्य रहे हैं और उन्हें महाराष्ट्र राज्य लघु उद्योग विकास निगम (एमएसएसआईडीसी) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।
अविनाश पांडेय मूल रूप से नागपुर के रहने वाले हैं। उन्होंने साल 2008 में उद्योगपति राहुल बजाज के खिलाफ महाराष्ट्र से राज्यसभा चुनाव लड़ा, लेकिन वह राज्यसभा के लिए राहुल बजाज से एक वोट से हार गए। फिर साल 2010 में जून के महीने में महाराष्ट्र से राज्यसभा चुनाव लड़ने के लिए नामांकन किया और निर्विरोध चुने गए।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव और उत्तर प्रदेश के प्रभारी के रूप में अविनाश पांडे को जिम्मेदारी मिलने पर बधाई दी है। अजय राय ने कहा है कि अविनाश पांडे पार्टी के वरिष्ठ अनुभवी नेता हैं, हम सभी उनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में 2024 में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को सफलता दिलाने के लिए काम करेंगे। अविनाश पांडे का अनुभव लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अभूतपूर्व सफलता दिलाएगा।
उत्तर प्रदेश की सियासत में भले ही ब्राह्मणों की ताकत सिर्फ 8 से 10 फीसदी वोट तक सिमटी हुई है, लेकिन ब्राह्मण समाज का प्रभाव इससे कहीं अधिक है। ब्राह्मण समाज सूबे में प्रभुत्वशाली होने के साथ-साथ राजनीतिक हवा बनाने में भी काफी सक्षम माना जाता है।
सूबे की करीब 5 दर्जन से ज्यादा सीटों पर ब्राह्मण वोटर निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। एक दर्जन जिलों में इनकी आबादी 20 फीसदी से ज्यादा है। वाराणसी, चंदौली, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, भदोही, जौनपुर, बस्ती, संत कबीर नगर, अमेठी, बलरामपुर, कानपुर, प्रयागराज में ब्राह्मण मतदाता 15 फीसदी से ज्यादा हैं। यहां पर ब्राह्मण वोटर्स किसी भी उम्मीदवार की हार या जीत में अहम रोल अदा करते हैं।
उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोटर कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता है, लेकिन सत्ता से बेदखल होने के बाद वो दूसरे दलों के साथ चला गया। यूपी में ब्राह्मण सीएम कांग्रेस के राज में ही मिला है। ऐसे में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी अपने पुराने और परंपरागत ब्राह्मण वोटों को वापस लाने के लिए तमाम जतन कर रही हैं, लेकिन उससे पहले सूबे में मजबूती के साथ अपने सियासी पैरों को जमा लेना चाहती हैं।
कांग्रेस ने प्रमोद तिवारी को सूबे में आगे कर रखा है और उनकी बेटी आराधना मिश्रा को प्रियंका गांधी अपने साथ लेकर यूपी में घूमती हैं। उत्तर प्रदेश में अब तक 6 मुख्यमंत्री ब्राह्मण समाज से बने हैं और कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी यही मिसाल देते हुए सपा-बसपा और बीजेपी को चैलेंज करते हैं कि कोई एक भी ब्राह्मण को सीएम बना कर दिखा दे। इस तरह दबे पांव कांग्रेस ब्राह्मणों को रिझाने में जुटी है।
आजादी के बाद से 1989 तक यूपी की सियासत में ब्राह्मण समाज का वर्चस्व रहा। गोविंद बल्लभ पंत से लेकर नारायण दत्त तिवारी तक कुल 8 बार ब्राह्मण मुख्यमंत्री बने। लेकिन, मंडल कमीशन के बाद बदले सियासी समीकरण में ब्राह्मणों के हाथ से सत्ता खिसकी तो फिर आज तक नहीं मिली। ऐसे में यूपी का ब्राह्मण समाज पिछले तीन दशक से महज एक वोट बैंक की तरह बनकर रह गया है, जिन्हें अपने पाले में लाने के लिए सभी दल मशक्कत कर रहे हैं।