नहीं रहे अटल विहारी वाजपई के ध्वजवाहक और मायावती के राखी भाई लालजी टंडन

सक्रिय राजनीति में सभासद से राज्यपाल के पद का सफर तय करने वाले ‘बाबू जी’ यानी लालजी पुरानी राजनीतिक परम्परा के नेता थे। देश भर के सभी दलों के लोगों से अच्छे रिश्ते रखने वाले टंडन ने राजनीति की हर विधा को बेहद करीब से देखा और उनको सभी समुदाय के लोग वोट देते थे। भाजपा के साथ लम्बा जीवन जीने वाले लालजी टंडन ने अंतिम सांस भी भाजपा के नाम की ली।

बसपा मुखिया मायावती के राखी भाई लालजी टंडन के समाजवादी पार्टी के सरंक्षक मुलायम सिंह यादव से भी बेहद मधुर संबंध थे। विद्वेष वाली राजनीति से कोसों दूर रहने वाले लालजी टंडन तो लखनऊ के इनसाइक्लोपीडिया थे।

लालजी टंडन भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच ही नहीं बल्कि दूसरे दलों के नेता तथा कार्यकर्ताओं के बीच भी लोकप्रिय थे। उन्होंने मदद के लिए आए किसी भी व्यक्ति को निराश नहीं किया। लालजी टंडन एक ऐसे नेता थे जो लखनऊ में जाति, धर्म और मजहब से ऊपर उठकर देखे जाते थे। वह दो बार उत्तर प्रदेश विधानपरिषद तथा तीन बार विधानसभा के सदस्य रहे। इसके अलावा यूपी में पहली बार भाजपा सरकार बनने पर उन्हे वित्तमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी।
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती उन्हेंं राखी बांधती थीं। लालजी टंडन को वह अपना राखी भाई मानती थीं। दरअसल, उत्तर प्रदेश के चॢचत गेस्ट हाउस कांड के समय लालजी टंडन ने स्वर्गीय ब्रह्मदत्त द्विवेदी के साथ मिलकर मायावती की जान बचाई थी। यही कारण है कि बहनजी उन्हेंं अपना भाई मान बैठी थीं और राखी बांधती थीं। चौक की पुरानी गलियों में मायावती बतौर मुख्यमंत्री दो बार टंडन को राखी बांधने उनके घर गईं। 22 अगस्त 2002 को मुख्यमंत्री रहते हुए मायावती ने नेता लालजी टंडन को राखी बांधी थी। वो राखी भी कोई आम राखी नहीं बल्कि चांदी की राखी थी। भाजपा नेता उमा भारती ने खुद एक बयान में कहा था कि ब्रह्मदत्त द्विवेदी और लालजी टंडन ने भाजपा कार्यकर्ताओं की मदद से मायावती को उस समय बचाया था। इसके बाद मायावती ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी और मुख्यमंत्री बनी थी। यहीं से मायावती और लालजी टंडन के बीच भाई-बहन का रिश्ता कायम हुआ।

90 के दशक में जब उत्तर प्रदेश में भाजपा और बसपा की सांझी सरकार बनी थी, तब इसमें लालजी टंडन का अहम योगदान था। लालजी टंडन बसपा प्रमुख मायावती को अपनी बहन मानते थे। वह पिछले कई साल से उनसे राखी बंधवाते थे। एक बार इसको लेकर काफी चर्चा हुई थी और विपक्ष ने तंज कसा था तो स्वयं उन्होंने मायावती को अपनी बहन बताया था।

मायावती भी उन्हेंं अपना भाई मानती रही हैं। इनकी पार्टी भले दोनों की अलग-अलग रही लेकिन दोनों के रिश्ते में कभी खटास नहीं आई। उत्तर प्रदेश में भाजपा बसपा की साझा सरकार बनने पर लालजी टंडन की बड़ी भूमिका रही। पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी रहे लालजी टंडन लखनऊ से लोक सभा सांसद रहे। बसपा मुखिया मायावती उन्हेंं राखी बांधती थीं तो नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव भी उनको भाई ही मानते थे। कल्याण सिंह के साथ ही मायावती तथा राजनाथ सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे लालजी टंडन को जमीन से जुड़ा नेता माना जाता है।
लालजी टंडन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भी बहुत करीबी रहे। लालजी टंडन कहते थे कि अटल बिहारी वाजपेयी मेरे बड़े भाई और पिता हैं। दोनों ने करीब पचास वर्ष साथ काम किया। लालजी टंडन कोई भी बड़ा काम अटलजी के आशीर्वाद से ही शुरू करते थे। पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्व. अटल विहारी वाजपेयी और लाल जी टंडन की सात दशक की दोस्ती पर तमाम उतार चढ़ाव के बावजूद कभी राजनीतिक रंग नहीं चढ़ा और आखिरी सांस तक रिश्तों की गर्माहट पहले दिन की तरह ही बरकरार रही।

लखनऊ और अटल का रिश्ता अटूट था तो टंडन के दिल में भी केवल लखनऊ बसता था। दोनों का लखनऊ से अल्लड़ प्यार ही उनके बीच सेतु का काम करता था। लखनऊ में वह अटल जी के वारिस रहे। उनकी सीट से सांसद बने और 2014 में उनकी जगह जब राजनाथ सिंह को टिकट दिया गया तो उन्होंने उफ तक नहीं किया। वह पार्टी के काम में व्यस्त रहे। भाजपा के साथ जीने वाले लालजी टंडन ने अंतिम सांस भी भाजपा के नाम की ली।