राज्यसभा में सोमवार यानी 7 अगस्त को दिल्ली सर्विसेज (अमेंडमेंट) बिल पास हो गया। इसे लेकर सदन में चर्चा के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा पर फ्रॉड का आरोप लगाया।
शाह ने कहा कि सरकार की तरफ से पेश किए गए इस बिल के विरोध में राघव चड्ढा ने जो मोशन प्रस्तावित किया था, उसमें पांच ऐसे सांसदों का नाम शामिल था, जिन्होंने इस पर सहमति दी ही नहीं थी। शाह ने कहा कि इन सांसदों के नकली साइन किए गए। संसद की प्रिविलेज कमेटी को इस फ्रॉड की जांच की जानी चाहिए।
राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश ने कहा कि उनके पास चार सांसदों ने शिकायत दर्ज कराई है। इस मामले की जांच की जाएगी। वहीं, राघव चड्ढा ने कहा कि इस आरोप का जवाब तभी देंगे जब प्रिविलेज कमेटी उन्हें नोटिस भेजेगी।
फ्रॉड का आरोप लगाने वाले इन सांसदों के नाम हैं- नरहनि अमीन (भाजपा), सुधांशु त्रिवेदी (भाजपा), फांगनोन कोन्यक (भाजपा), सस्मित पात्रा (बीजू जनता दल) और के. थांबिदुराई सूत्रों के मुताबिक, इन पांचों ने राघव चड्ढा के खिलाफ विशेषाधिकार भंग करने के अलग-अलग नोटिस दिए हैं।
बीजू जनता दल के सस्मित पात्रा ने कहा, ‘मैंने प्रिविलेज मोशन का नोटिस दिया है। राघव चड्ढा ने मेरा नाम उस मोशन में शामिल किया था, जिसमें प्रस्ताव दिया गया है कि दिल्ली सर्विसेज (अमेंडमेंट)) बिल को एक चुनी हुई कमेटी के पास भेजा जाए।’
उन्होंने कहा, ‘इस मोशन में पांच से छह सांसदों के नाम गलत तरीके से शामिल किए गए थे। मैं चाहता हूं कि इस मामले की जांच हो। मुझे यकीन है प्रिविलेज कमेटी इस मामले को देखेगी।BJD ने राज्यसभा में इस बिल का समर्थन किया था। इसके अलावा आंध्र प्रदेश की YSR कांग्रेस और तेलुगु देसम पार्टी ने भी बिल के समर्थन में वोट किया था।’
राज्य सभा में जब दिल्ली सर्विसेज (अमेंडमेंट)) बिल पर चर्चा पूरी हुई। इसके बाद उपसभापति हरिवंश ने इसे पारित कराने के लिए विपक्षी सदस्यों द्वारा लाए गए अमेंडमें को रखवाना शुरू किया। इसके बाद AAP सांसद राघव चड्ढा का प्रस्ताव आया। इन्होंने विधेयक को प्रवर समिति में भेजने का प्रस्ताव था। इसमें समिति सदस्यों के नाम भी थे।
मामले में गृहमंत्री अमित शाह ने आपत्ति जताते हुए कहा कि दो सदस्यों का कहना है कि उनकी सहमति के बिना प्रस्ताव में उनके नाम डाले गए। प्रस्ताव पर उन सदस्यों के हस्ताक्षर भी नहीं है। शाह का कहना है कि यह जांच का विषय है। बात अब सिर्फ दिल्ली के फर्जीपन की नहीं है बल्कि, सदन के अंदर फर्जीपन की है। यह विशेषाधिकार का उल्लंघन है। यह मामला विशेषाधिकार समिति के पास भेजा जाना चाहिए।