यह लेख वैसे तो सर्वसमाज के लिए है किन्तु विशेषतः बहुजन समाज के सामान्य लोगों और उन बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए है जो समझ चुके हैं कि जाति-जाति की पार्टियां बनने के कारण बहुजन समाज की राजनीतिक एकता टूट गई है और बहुजन पार्टियां सत्ता में नहीं पहुंच पा रही हैं। इसलिए चाहते हैं कि बहुजन समाज की विभिन्न पार्टियां गठबंधन करके एक साथ आ जाएं ताकि वोट एक जगह पड़ें और बहुजन सत्ता में पहुंच सकें।
पहली बात तो यह कार्य असम्भव लग रहा है क्योंकि यह बहुजन नेता स्वार्थी और घमंडी हैं, सभी एक साथ मुख्यमंत्री बनना चाह रहे हैं। इनमें इतनी भी त्याग की भावना नहीं है कि बारी-बारी से मुख्यमंत्री बन लें। बिहार का उदाहरण हम सभी देख सकते हैं जहां पर पांच गठबंधन बने और उन पांचों में बहुजन समाज की पार्टियां शामिल हैं जिनमें से दो गठबंधनों में ब्राह्मणवादी पार्टियां भी शामिल हैं।
यदि तिकड़मबाजी करके अर्थात् एक दूसरे से अपने स्वार्थ छिपाकर कुछ समय के लिए गठबंधन कर भी लेते हैं तो भी सामान्य जनमानस, यहाँ तक कि मुट्ठी भर ऊपर के लोगों को छोड़कर किसी का फायदा नहीं होने वाला है। यहां तक कि उन बुद्धिजीवियों और सामाजिक चिंतकों का भी नहीं जो नेताओं में गठबंधन करवाने के लिए आगे आ रहे हैं क्योंकि यह पार्टियां जातिवादी पार्टियाँ न होकर परिवारवादी पार्टियां हैं। यदि यह जातिवादी पार्टियाँ होतीं तो पार्टी प्रमुख उस जाति के विभिन्न परिवारों में तो बदलता रहता किन्तु इनमें पार्टी का मालिक एक व्यक्ति ही रहता है। उसके बूढ़े होने या उसकी मृत्यु होने पर उसका बेटा या परिवार का कोई व्यक्ति पार्टी का प्रमुख बनता है। यदि ऐसी पार्टियों में गठबंधन होता है तो सरकार बनने पर महत्वपूर्ण मंत्रालयों और पदों पर इनके परिवार के लोग और रिस्तेदार बैठेंगे। एक नहीं बल्कि जितनी बार सरकार बनेगी, हर बार वही लोग बैठेंगे। जैसे कि 2019 में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन सफल हो जाता तो प्रधानमंत्री मायावती जी और 2022 में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी बनते। 2019 और 2022 ही नहीं, 2024 में पुनः प्रधानमंत्री मायावती जी और 2027 में पुनः मुख्यमंत्री अखिलेश जी ही बनते और बाद में भी यह दशा बनी रहती| प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के अलावा महत्वपूर्ण मंत्रालयों और पदों पर आकाश आनंद और मायावती जी के करीबी और सैफई परिवार का कब्जा रहता| अन्य परिवारों और अन्य जातियों को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तथा अन्य महत्वपूर्ण मंत्रालयों और पदों पर पहुंचने का अवसर नहीं मिल पाता| ऐसी दशा में उन्हें संविधान में वर्णित राजनैतिक न्याय भी नहीं मिल पाता। दूसरे लोगों के महत्वपूर्ण पदों पर न होने के कारण नौकरियों में भी उनकी भागीदारी कम हो जाती तथा समाज में झगड़े होने पर उनके साथ अन्याय भी होता रहता, जैसा कि बसपा और सपा की सरकारों के समय हुआ है। बिहार में भी यदि परिवारवादी दलों के गठबंधन सफल हो जाते हैं तो यही दशा होने वाली है। यदि रालोद गठबंधन सफल होता है तो तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनेंगे और परिवारवाद आगे बढ़ेगा। नीतीश और उपेन्द्र कुशवाहा भी अपनी पार्टियों की स्थापना से लेकर आज तक अपनी पार्टियों के प्रमुख बने हुए हैं| इनके सफल होने पर सामंतवाद ही आगे बढ़ेगा। ऐसी दशा में यह अच्छा ही हुआ कि सराब गठबंधन सफल नहीं हुआ और कांग्रेस लगभग खत्म हो गई। बिहार में भी इस प्रकार के गठबंधन सफल न हों तो अच्छा है क्योंकि यह गठबंधन की राजनीति नहीं है, बल्कि यह ठगबंधन की राजनीति है जो सामान्य जनता और दूसरे लोगों को ठगने के लिए की जा रही है| यदि गठबंधन हों भी तो वह लोकतांत्रिक पार्टियों के ही बनने चाहिए ताकि सामान्य जनों को सत्ता में हिस्सेदारी मिल सके और वर्तमान में भारत की राजनीति में चल रहे सामंतवाद से मुक्ति मिल सके तथा राजनैतिक न्याय कि अवधारणा सफल हो सके।
इस प्रकार दीर्घकाल में लोकतंत्र की सफलता को ध्यान में रखते हुए भारत की एक मात्र लोकतांत्रिक पार्टी भाजपा को ही वोट देना सही है। जिन्हें भाजपा की विचारधारा पसंद नहीं है और जिन्हें भाजपा ब्राह्मणवादी लगती है उन्हें पूर्ण लोकतंत्र वाली नवस्थापित सम्यक पार्टी को वोट और समर्थन देना चाहिए।
श्री राम सिंह जी प्रोफेसर हैं (जवाहर लाल नेहरू डिग्री कॉलेज, एटा)