एलर्जी की चपेट में आने से बचाएंगी ये बातें, जानें कितने तरह की होती है एलर्जी

एलर्जी होने का कोई निश्चित मौसम नहीं होता है, लेकिन गर्मियों में तेज धूप और उमस के कारण एलर्जी के मामले काफी बढ़ जाते हैं। इस मौसम में वायु हल्की होने के कारण तेज चलती है, जिससे परागकण, धूल, मिट्टी और दूसरे प्रदूषक अधिक मात्रा में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंच जाते हैं। इनसे बचाव के लिए क्या करें और क्या नहीं, बता रही हैं शमीम खान

एलर्जी एक ऐसी स्थिति है, जो किसी चीज को खाने या उसके संपर्क में आने पर आपको बीमार अनुभव कराती है। किसी व्यक्ति को एलर्जी तब होती है, जब उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली यह विश्वास कर लेती है कि उसने जो चीज खाई है या जिस चीज के संपर्क में आया है, वह शरीर के लिए हानिकारक है। शरीर की रक्षा के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली एंटीबॉडी उत्पन्न करती है। एंटीबॉडी शरीर की ऊर्जा कोशिकाओं को प्रेरित करती है कि वे रक्त में विभिन्न रसायनों को जारी करें। इन रसायनों में से एक है हिस्टामिन। हिस्टामिन आंखों, नाक, गले, फेफड़ों, त्वचा या पाचन मार्ग पर कार्य करता है और एलर्जी संबंधी प्रतिक्रिया के लक्षण उत्पन्न करता है। जब शरीर एलर्जी पैदा करने वाली चीज अर्थात एलर्जन के विरुद्ध एंटीबॉडी का निर्माण कर लेता है, तो एंटीबॉडी उस चीज को पहचान जाती है। उसके बाद शरीर हिस्टामिन को रक्त में जारी कर देता है, जिससे एलर्जी के लक्षण दिखने लगते हैं।

क्या यह आनुवांशिक होती है 
कुछ लोग एलर्जी के आसान शिकार होते हैं, क्योंकि उनमें एलर्जन के प्रति संवेदनशीलता जन्मजात होती है। लड़कों में लड़कियों के मुकाबले आनुवांशिक रूप से एलर्जी होने की आशंका ज्यादा होती है।

क्या सभी अस्थमा एलर्जी के कारण होते हैं
एलर्जी के कारण होने वाला अस्थमा आम है, पर एलर्जी पैदा करने वाले पदार्थों के अलावा अन्य कई चीजों से भी अस्थमा की समस्या हो सकती है।

कैसी-कैसी एलर्जी
कई खाद्य पदार्थ, रसायन, धूल और फूलों के परागकण एलर्जी पैदा कर सकते हैं। एलर्जी पैदा करने वाले पदार्थ के आधार फर एलर्जी कई प्रकार की होती है।

फूड एलर्जी 
भारत में करीब 3 प्रतिशत वयस्क और 6 से 8 प्रतिशत बच्चे फूड एलर्जी के शिकार हैं। कई लोगों को गेहंू, राई, बाजरा, मछली, अंडे, मूंगफली, सोयाबीन के दूध से बने उत्पाद, सूखे मेवे आदि से भी एलर्जी होती है। जबकि बैंगन, खीरा, भिंडी, पपीता आदि से भी एलर्जी के मामले देखे गए हैं।

क्या हैं लक्षण
– उल्टी और दस्त की समस्या होना।
– भूख न लगना।
– मुंह, गला, आंख, त्वचा में खुजली होना।
– पेट में दर्द और मरोड़ होना।
– रक्त का दबाव कम हो जाना।

कैसे बचें
जिन चीजों से एलर्जी हो, व्यक्ति को उनसे परहेज करना चाहिए। जब आप घर से बाहर खाना खाएं, तो यह जरूर पता कर लें कि खाने में एलर्जी वाली चीज शमिल तो नहीं है।

पेट एलर्जी
जानवरों की लार, मृत त्वचा, फर और यूरीन में जो प्रोटीन होता है, वह एलर्जन कहलाता है। इससे एलर्जी हो सकती है। जानवरों के फर में परागकण, धूल और दूसरे एलर्जन भी भर जाते हैं, जिनसे एलर्जी और गंभीर रूप धारण कर लेती है। एलर्जी से पीड़ित 15 से 30 प्रतिशत लोगों को बिल्ली और कुत्ते जैसे पालतू जानवरों से एलर्जी होती है। अगर आपके घर में पालतू जानवर है और आप उसे कभी अपने पास भी नहीं आने देते, तब भी आपको एलर्जी हो सकती है। बिल्लियां कुत्तों से ज्यादा एलर्जी फैलाती हैं, क्योंकि वह खुद को ज्यादा चाटती हैं।

क्या हैं लक्षण
पलकों और नाक की त्वचा का लाल हो जाना, सूज जाना और उसमें खुजली होना।

कैसे बचें
पालतू जानवर के सीधे संपर्क में आने पर अपने हाथ साबुन से धोएं। ऐसे जानवर को नियमित नहलाएं।

डस्ट एलर्जी
एक अनुमान के अनुसार एलर्जी के शिकार लोगों में से करीब 80 प्रतिशत लोगों को डस्ट से एलर्जी होती है।

क्या हैं लक्षण
– आंखें लाल होना, उनमें खुजली होना और पानी बहना।
– नाक बहे, उसमें खुजली हो, सू-सू की आवाज आए।

कैसे बचें
– निर्माण कार्य वाली जगहों पर जाने से बचें।
– ऐसे लोग दोनों समय गुनगुने पानी से नहाएं।

एलर्जी पैदा करने वाली चीजें
खाद्य पदार्थ : डेयरी उत्पाद, मूंगफली, मक्का, अंडा, मछली, सोयाबीन, नट्स आदि।
दवाएं : टेट्रा साइक्लीन, पेनिसिलिन, डिलानटिन, सल्फोनामाइड्स।
पर्यावरणीय कारण : परागकण, फफूंद, धूल, आर्द्रता आदि।
पालतू जानवर : कुत्ते और बिल्ली समेत अनेक पालतू जानवर।
रसायन : कोबाल्ट, निकिल, क्रोमियम समेत अनेक रसायन।

क्या कहते हैं आंकड़े
-25% भारत की जनसंख्या एलर्जी से पीड़ित है और इनमें से पांच प्रतिशत लोगों की एलर्जी अस्थमा में बदल जाती है।
– 60% गर्मियों में होने वाले अस्थमा अटैक पर्यावरण में उपस्थित एलर्जन और इरिटेन्ट के कारण होते हैं। जैसे धुआं, पराग कण, पशुओं की मृत त्वचा आदि।
– 50% होता है बच्चों के एलर्जी की चपेट में आने का खतरा, अगर माता-पिता दोनों में से किसी एक को एलर्जी है।
– 75% तक बढ़ जाती है ऐसे बच्चों के एलर्जी की चपेट में आने की आशंका, जिनके माता-पिता दोनों एलर्जी के शिकार होते हैं।

गर्मियों में एलर्जी से बचने के उपाय
– मौसम में बदलाव होने पर सावधान रहें।
– एलर्जी की दवाओं का उचित समय पर सेवन करें। अगर लक्षण गंभीर हो जाएं, तो बिना डॉक्टर की सलाह के दवा की मात्रा न बढ़ाएं।
– घर और कार में एयरकंडीशनर का प्रयोग करें।
– भीड़भाड़ या अधिक ट्रैफिक वाले स्थान पर मास्क का प्रयोग करें।
– सोने से पहले अपने बालों को नियमित रूप से धोएं, ताकि उनसे एलर्जन निकल जाएं।
– जूतों को घर के बाहर ही उतारें।
– गर्मियों में घर के दरवाजे, खिड़कियां और कार के शीशे अधिक खुले रखने से एलर्जी फैलाने वाली चीजें आसानी से आप तक पहुंच सकती हैं। इसलिए पर्दे डालकर या दरवाजे बंद रखें।
– अस्थमा को सर्दियों का रोग मानकर इस मौसम में दवा लेने में लापरवाही न बरतें।
– मौसम बदलते ही एसी को इस्तेमाल करने से पहले उसे अच्छी तरह साफ कर लें।

नवीनतम उपचार पर भी दें ध्यान
पहले किसी भी उपचार पद्धति में एलर्जी का स्थायी उपचार नहीं था, लेकिन अब एलोपैथी में उपचार उपलब्ध है, जिसके द्वारा एलर्जी को जड़ से दूर किया जा सकता है। इसमें एलर्जी का पता लगाने के लिए रक्त और त्वचा की जांच की जाती है। इनसे इस बात की पुष्टि की जाती है कि मरीज को किस पदार्थ से एलर्जी है। फिर वही पदार्थ शुद्ध करके लगातार दिया जाता है। धीरे-धीरे शरीर उस पदार्थ के प्रति एलर्जिक से नान-एलर्जिक हो जाता है। इसे एलर्जन इम्युनोथेरैपी कहते हैं।

(श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ कंसल्टेंट डॉ. अनिवेश आर्य और क्यूआरजी हेल्थ सिटी हॉस्पिटल के रेस्पिरेटरी और एलर्जी विभाग के वरिष्ठ कंसल्टेंट डॉ. गुरमीत छाबड़ा से की गई बातचीत पर आधारित)

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