दशकों बाद एक बार फिर मंडल-कमंडल की राजनीति देश में हावी होती नजर आ रही है। चेन्नई के प्रेसिंडेंसी कॉलेज में पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की मूर्ति के अनावरण के समय अखिलेश यादव की मौजूदगी ने उत्तर भारत की राजनीति में सुगबुगाहट पैदा कर दी है।
दशकों बाद एक बार फिर मंडल-कमंडल की राजनीति देश में हावी होती नजर आ रही है। चेन्नई के प्रेसिडेंसी कॉलेज में पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की मूर्ति के अनावरण के समय अखिलेश यादव की मौजूदगी ने उत्तर भारत की राजनीति में सुगबुगाहट पैदा कर दी है। उनकी मौजूदगी को पीडीए के विस्तार की राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है।
सियासी पंडितों का मानना है कि विपक्ष देश में एक बार फिर आरक्षण, जातीय जनगणना और जात-पात की राजनीति से सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने के सपने देख रहा है जबकि सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी धर्म की बैसाखी के जरिए हैट्रिक लगाने की तैयारी में है।
अयोध्या में भव्य राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा, काशी धाम कॉरिडोर, उज्जैन महाकाल महालोक, विंध्यवासिनी धाम कॉरिडोर जैसे कामों के जरिए भाजपा अपना संकल्प पत्र पूरा करने के दावे से दो चार होने वाला है।
विपक्ष की पटना से उठी जातीय जनगणना और पीडीए की सियासी आंच चेन्नई तक पहुंचती नजर आ रही है। कहा जाता है कि राजनीति में हाव भाव और इशारों का भी बड़ा महत्व होता है। इस बात को केन्द्र में रखकर अखिलेश यादव की चेन्नई यात्रा को राजनीतिक पंडित आगामी लोकसभा चुनावों के लिए पिछड़ों के लिए हो रही लामबंदी से जोड़कर देख रहे हैं।
जिस तरह से समाजवादी पार्टी जातीय जनगणना और पीडीए के मसले पर मुखर होकर बात कर रही है। उससे ये साफ है कि सपा की रणनीति और सियासी एजेंडा तय हो चुका है। मध्य प्रदेश के चुनावों में भी जहां सपा की पकड़ तो दूर की बात, उपस्थिति ना के बराबर है, समाजवादी पार्टी ने 44 उम्मीदवार मैदान में उतार दिए थे। विधानसभा चुनाव हमेशा से ही लोकल मुद्दों पर लड़ा जाता है बावजूद इसके हर चुनावी रैली में अखिलेश का भाषण जातीय जनगणना के इर्द-गिर्द ही घूमता नजर आता था। यही नहीं उत्तर प्रदेश में अनुपूरक बजट पेश करने के दौरान सिराथु से विधायक पल्लवी पटेल ने विधानसभा में जातीय जनगणना का मुद्दा ज़ोरदार तरीक़े से उठाया और सत्तारूढ़ दल के ओबीसी विधायकों को पगूँ तक करार दे दिया।
भारतीय जनता पार्टी के पिछड़ा मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री निखिल आनंद अखिलेश की चेन्नई यात्रा पर चुटकी ली। वह कहते हैं कि अखिलेश या तो ‘बबुआ’ बनकर रहेंगे या ‘पिछलग्गू’ बनकर रह जाएंगे। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अखिलेश यादव को जिस तरह से दुत्कारा, उसकी खीझ निकालने के लिए अखिलेश ने कांग्रेस के सहयोगी स्टालिन के साथ मंच साझा किया और कांग्रेस को चिढ़ाने की कोशिश की है। वीपी सिंह से मुलायम सिंह यादव जी के कैसे सम्बन्ध थे, ये जगजाहिर है। तो मूर्ति के अनावरण के जरिए अखिलेश यादव चेन्नई प्रायश्चित करने गए थे।
गौरतलब है कि भाजपा के 303 सांसदों में से 85 ओबीसी सांसद है, 1358 विधायक पिछड़ी जाति से आते हैं, 163 एमएलसी और केन्द्र सरकार में 27 मंत्री पिछड़ी जाति के हैं। अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो 403 विधायकों वाली विधानसभा में 368 विधायक हिन्दू हैं, 34 विधायक मुस्लिम हैं और एक सिख समुदाय से विधायक चुन कर विधायिका तक पहुंचे हैं।
सबसे ज्यादा 151 विधायक पिछड़ी जाति के हैं जिसमें से भाजपा गठबंधन के 90 विधायक हैं और समाजवादी पार्टी के 60 विधायक पिछड़ी जाति से आते हैं। 1 विधायक कांग्रेस का है।समाजवादी पार्टी के नेता शिवपाल सिंह यादव ने विधानसभा में भी जातीय जनगणना के मुद्दे को जोर शोर से उठाया। शिवपाल यादव कहते हैं कि भाजपा एक जुमला पार्टी है। जनता अब इनके जुमलों से परेशान होकर विकल्प तलाश रही है। शिवपाल यादव भाजपा के पिछड़े नेताओं से मुखातिब होते हुए बोले कि उन लोगों को तो जातीय जनगणना को सपोर्ट करना चाहिए और चर्चा करनी चाहिए।
शिवपाल के बयान पर पलटवार करते हुए यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने कहा कि सपा को सत्ता में रहते हुए पिछड़ों की याद नहीं आती। सत्ता से बेदखल होते ही जाति जनगणना याद आ गई। यूपी सरकार ने अपने यहां स्थानीय निकायों में पिछड़ों को आरक्षण दिया जबकि महाराष्ट्र, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल की सरकारें अभी भी इस मसौदे पर विचार कर रही हैं। विपक्ष की कथनी और करनी में बहुत फर्क है।