चाचा शिवपाल की घर वापसी का संकेत देकर अखिलेश ‘पार्टी में लोकतंत्र’ की बात करते हैं!

समाजवादी पार्टी के मुखिया और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को लगता है दो-दो बड़े चुनाव हारने के बाद समझ आ गया है कि अपनों को साथ लेकर चलने में ही भलाई है। कभी उन्होंने अपने चाचा शिवपाल यादव को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था, अब चर्चा है कि शिवपाल की घर वापसी हो सकती है।

सपा प्रमुख ने संकेत दिए हैं कि शिवपाल यादव अगर पार्टी में आते हैं तो उनके लिए भी पार्टी के दरवाजे खुले हैं। अखिलेश ने शिवपाल की वापसी को लेकर पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए कहा कि उनके परिवार में लोकतंत्र है। जिसको जहां जाना हो वो जा सकता है और हमारे दरवाजे खुले हैं जो आना चाहे वो आ सकता है। हर किसी का स्वागत है। उन्होंने कहा कि सदस्यता खत्म करने की याचिका वह वापस ले सकते हैं।

बता दें कि अखिलेश यादव ने लखनऊ स्थित पार्टी कार्यालय पर शुक्रवार को प्रेसवार्ता बुलाई थी। इस दौरान अखिलेश ने कहा कि हमारे ऊपर हमेशा परिवारवाद का आरोप लगता रहा है लेकिन परिवार में लोकतंत्र है। परिवार एक है। अलग नहीं है। हमारी पार्टी सबके लिए खुली है, जो भी आना चाहे सबका स्वागत है, हम मुकदमा भी नहीं देखेंगे।

अजब बात है, गजब सियासत है! चाचा शिवपाल की घर वापसी का संकेत देकर भी अखिलेश ‘पार्टी में लोकतंत्र’ की बात करते हैं!

खैर, इस संबंध में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव भी संकेत दे चुके हैं। उन्होंने कहा है कि परिवार में अभी भी एकता की गुंजाइश है। उनसे पूछा गया था कि परिवार में एकता की अभी कोई गुंजाइश बची है? इस पर उन्होंने कहा कि मेरी तरफ से पूरी गुंजाइश है, लेकिन कुछ षड्यंत्रकारी लोग परिवार को एक होने नहीं देना चाह रहे हैं।

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बीते लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद से ही समाजवादी कुनबे के दोबारा एकजुट होने की खबरें आ रही थीं। चुनाव में सपा के निराशाजनक प्रदर्शन को देखते हुए पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने बेटे अखिलेश और भाई शिवपाल के बीच सुलह कराने की फिर कोशिश की। आपसी मतभेद दूर करने के लिए मुलायम ने अखिलेश से, शिवपाल से और पूरे कुनबे से कई बार मुलाकात की थी। मुलायम ने अखिलेश और शिवपाल दोनों को समझाया कि अगर परिवार एक नहीं हुआ तो इसके राजनीतिक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

हालांकि मुलायम सिंह यादव की कोशिशें कामयाब नहीं हो पाई थीं, क्योंकि शिवपाल ने अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का सपा में विलय से इंकार कर दिया था। वह पिछले साल सपा से अलग हो गए थे और उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली थी। उन्होंने कुनबे में फूट के लिए रिश्ते के भाई एवं पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव को जिम्मेदार ठहराया था।

फिलहाल सियासी गलियारे में दोनों के एक मंच पर आने की चर्चाएं जोरों पर हैं। दोनों नेताओं ने संकेत भी दे दिए हैं। सपा को अगर 2022 के विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन् करना है तो मतभेदों को दरकिनार कर साथ आना ही होगा।

अखिलेश और शिवपाल भी इस बात को समझ रहे हैं। साथ आकर ही उनका सियासी वजूद बचा रह सकता है। अखिलेश ने तो अपने तईं अभी से तैयारी शुरू कर दी है। उन्होंने मायावती को झटका देते हुए बसपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दयाराम पाल के तीन पुत्रों सहित बसपा में बलिया के बड़े नेता मिठाई लाल पाल को भी समाजवादी पार्टी में शामिल कराया है। इन नेताओं का कहना है कि बसपा अब बाबा साहेब और कांशीराम के मिशन से भटक गई है। अब वहां रहने का कोई मतलब नहीं है।